देहली इन्स्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल सायन्सेस एंड रिसर्च का निष्कर्ष
नई देहली- प्रत्येक व्यक्ति को लगता है हम गोरे दिखें । इसलिए वह कोई भी उपाय करने के लिए तैयार रहता है । इसके परिणामस्वरूप फेअरनेस क्रीम की भारी मात्रा में मांग है; परंतु त्वचा को गोरा बनानेवाली ये क्रीम व्यक्ति के आरोग्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं और अनेक रोगों के उत्पन्न होने की संभावना है । यह निष्कर्ष देहली इन्स्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल सायन्सेस एंड रिसर्च नामक संस्था द्वारा किए गए परीक्षण से सामने आया है ।
१. इस संशोधन संस्था ने बाजार में मिलनेवाली ११ प्रसिद्ध आस्थापनों की फेअरनेस क्रीम का परीक्षण किया ।
२. इस संस्था के अनुसार भारत में कॉस्मेटिक के उत्पादनों में पारे (Mercury) का उपयोग वर्जित होते हुए भी इन आस्थापनों के उत्पादनों में भारी मात्रा में पारा पाया गया है ।
३. पारा एक प्रकार का न्यूरोटॉक्सिन है । यह किडनी, लीवर और गर्भ में बढते बच्चों को हानि पहुंचा सकता है ।
४. पारा शरीर में जाने से वह कर्करोग (Cancer) का कारण बन सकता है ।
५. वैश्विक स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार क्रीम और साबुन में मिलनेवाला पारा त्वचा से संबंधित रोगों के साथ निराशा, घबराहट जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है ।
६. पारा पानी में मिल जाने से पर्यावरण की हानि होती है ।
७. वैश्विक स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मतानुसार चीन में ४० प्रतिशत महिलाएं और भारत में ६१ प्रतिशत लोग गोरापन लाने के लिए क्रीम का उपयोग करते हैं ।
८. क्रीम के विज्ञापनों में अनेक बार गोरेपन को व्यक्ति की सफलता से जोडा गया है । इसका भारतीयों पर बहुत प्रभाव है । देश में चेहरा गोरा बनाने की क्रीम का व्यापार ३ सहस्र कोटी (३००० करोड) रुपयों का है ।