अधिकांश हिन्दू महिलाएं एवं कुछ पुरुष माथे पर कुमकुम अथवा गंध लगाते हैं । उनकी लगाने की पद्धति प्रांत अथवा संप्रदाय के अनुसार भिन्न होती है । स्त्रियों एवं पुरुषों का माथे पर कुमकुम अथवा गंध लगाने का आध्यात्मिक महत्त्व आगे दिएनुसार है ।
१. माथे पर कुमकुम एवं गंध लगाने की पद्धति
१ अ. आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत से अल्प रहनेवालों के आज्ञाचक्र की जागृति हेतु माथे पर शक्तिवर्धक गोल अथवा खडा तिलक लगाना आध्यात्मिक दृष्टि से योग्य !
जिनका आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत से भी अल्प है, उन्हें भ्रूमध्य में स्थित आज्ञाचक्र की जागृति के लिए अपने माथे के भ्रूमध्य पर शक्तिवर्धक कुमकुम लगाना योग्य है । स्त्रियों को श्री दुर्गादेवी की शक्ति का प्रतीक गोलाकार कुुकुम माथे पर लगाना और पुरुषों का शिवज्योति के प्रतीक स्वरूप ज्योतिसमान दिखाई देनेवाला कुमकुम का खडा तिलक माथे पर लगाना आध्यात्मिकदृष्टि से योग्य है ।
१ आ. संतों की यात्रा ईश्वर के निर्गुण रूप की ओर आरंभ होने से उनके ज्योतिर्मय तेज का पूजन करने हेतु अपने माथे पर कुमकुम न लगाते हुए गोल अथवा खडा गंध लगाना योग्य !
गंध दो भौहों के मध्य के आधे सें.मी. ऊपर लगाएं । आज्ञाचक्र से सहस्रारचक्र की ओर कुंडलिनी की यात्रा के चलते उसमें विद्यमान तेजतत्त्व प्रकट अवस्था में होता है इसलिए वह गोलाकार बिंदुसमान और अप्रगट अवस्था में होने से ज्योति समान रूप धारण करता है । उन्नतों की यात्रा ईश्वर के निर्गुण रूप की ओर आरंभ हो जाने से उन्होंने ज्योतिर्मय तेज का पूजन करने के लिए अपने माथे पर कुमकुम न लगाते हुए गोल अथवा खडा गंध लगाना योग्य है । गंध में कुमकुम की तुलना में अधिक मात्रा में निर्गुण चैतन्य धारण और प्रक्षेपित करने की क्षमता होने से, संतों द्वारा (७० प्रतिशत और उससे भी अधिक स्तर वालों को) माथे पर चंदन, गोपीचंदन, रक्तचंदन, अष्टगंध इत्यादि का गंध लगाना आध्यात्मिक दृष्टि से योग्य है ।
कु. मधुरा भोसले
२. माथे पर कुमकुम अथवा गंध खडा लगाते समय उसकी उंचाई कितनी होनी चाहिए ?
२ अ. कुमकुम के खडे तिलक का ऊपरी सिरा मांथे की ऊंचाई के आधा रखना योग्य
७० प्रतिशत की तुलना में न्यून स्तरवालों को आध्यात्मिक स्तर पर सक्रिय होने के लिए आध्यात्मिक शक्ति मिलना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है । कुमकुम में बहुत आध्यात्मिक ऊर्जा होती है । इसलिए ऐसे व्यक्तियों को अपने माथे पर कुमकुम का खडा तिलक लगाना चाहिए । कुमकुम के खडे तिलक की ऊंचाई माथे की ऊंचाई के आधी रखना योग्य है । ऐसा करने से कुमकुम के तिलक में क्रियाशक्ति कार्यरत होती है और कुमकुम का तिलक लगानेवाला व्यक्ति आध्यात्मिक स्तर पर अधिक मात्रा में सक्रिय होता है ।
२ आ. गंध का ऊपरी सिरा माथे की ऊंचाई के आधा होना
गंध का ऊपरी सिरा माथे की ऊंचाई के संदर्भ में कहां तक होना चाहिए ? ऐसा प्रश्न सभी के मन में उठता है । गंध की ऊंचाई लगभग एक इंच होनी चाहिए । गंध, आत्मज्योति का प्रतीक होने से उसकी ऊंचाई माथे की ऊंचाई के आधी होने से उसमें ज्ञानशक्ति अधिक मात्रा में कार्यरत होती है । गंध की ऊंचाई एक इंच से अल्प हो तो इच्छाशक्ति और एक इंच से अधिक हो तो क्रियाशक्ति कार्यरत होती है ।
३. कुमकुम एवं गंध लगाने की पद्धति
३ अ. कुमकुम लगाने की पद्धति
कुमकुम लगाने की दो प्रमुख पद्धतियां हैं ।
३ अ १. गोलाकार में कुमकुम लगाना
इससे स्त्रियों में श्री दुर्गादेवी का तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत होता है और उसकी शक्ति वातावरण में बहुत भारी मात्रा में प्रक्षेपित होता है । ऐसी स्त्रियों को धर्माचरण एवं साधना करने के लिए श्री दुर्गादेवी की सगुण शक्ति एवं चैतन्य अधिक मात्रा में मिलती है ।
३ अ २. ज्योति समान कुमकुम का खडा तिलक लगाना
इससे पुरुषों में शिवज्योतिस्वरूप शक्ति एवं चैतन्य अधिक मात्रा में कार्यरत होकर उन्हें धर्माचरण एवं साधना करने के लिए शिव की निर्गुण शक्ती एवं चैतन्य अधिक मात्रा में मिलते हैं ।
३ आ. गंध लगाने की पद्धति
गंध लगाने की आगे दी हुई दो प्रमुख पद्धतियां हैं ।
३ आ १. गोलाकार में गंध लगाना
इससे ज्ञानशक्ति से संबंधित शक्ति कार्यरत होती है । इसलिए बौद्धिक स्तर पर सेवा, उदा. ग्रंथलेखन करना सुलभ होता है ।
३ आ २. अंग्रेगी के U आकार समान (U के दोनों भाग एक समान मोटाई के) खडा गंध लगाना
इससे गंध की ओर विष्णुतत्त्व अधिक मात्रा में आकृष्ट होकर कार्यरत होता है । इससे पूजक में श्रीविष्णु के प्रति भक्तिभाव शीघ्र जागृत होता है ।
४. पूजा के लिए माथे पर और शरीर पर अन्यत्र लगाए जानेवाले विविध प्रकार के तिलकों में आकृष्ट होनेवाली देवताओं की तरंगें
हलदी | कुमकुम | अष्टगंध | चंदन | भस्म | |
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१.कार्यरत शक्ति | इच्छा | क्रिया | क्रिया + ज्ञान | ज्ञान + क्रिया | ज्ञान |
२. विशेषता | कामनादायी (इच्छापूर्ति करनेवाले) | सौभाग्यदायी | सर्वसिद्धिदायी | आनंददायी | वैराग्यदायी |
३.लगाने की पद्धति | गोल | स्त्रियों के लिए गोल और पुरुषों के लिए खडा तिलक | गोल अथवा खडा | खडी गंध अथवा अंग्रेजी के U आकार में गंध | आडे पट्टे |
४. कहां लगाएं ? | माथा | माथा | माथा एवं माथे के दोनों ओर कान के समीप/ दोनों कान के बाजू में | माथा एवं माथे के दोनों ओर कान के समीप | माथा, कंठ, दोनों भुजाएं, कलाइयां एवं जांघें |
५. सूक्ष्म परिणाम | श्री दुर्गादेवी की तारक शक्ति ग्रहण होना एवं सात्त्विक इच्छा जागृत होना | श्री दुर्गादेवी की मारक शक्ति कार्यरत होकर मस्तक के सर्व ओर सुरक्षाकवच निर्माण होना | विविध देवताओं की मिश्र तरंगों का लाभ होकर मन स्थिर होकर बुद्धि सात्त्विक होने में सहायता मिलना | श्रीविष्णु का तत्त्व ग्रहण होकर आज्ञाचक्र जागृत होना, मन अंतर्मुख होना एवं ज्ञानतरंगें ग्रहण करने की क्षमता बढना और देह के सर्व ओर विष्णुतत्त्व का सुरक्षाकवच निर्माण होना | मन शांत एवं स्थिर होकर अंतर्मुख होना और मन में वैराग्य प्रबल होकर देह के सर्व ओर शिवकवच निर्माण होना |
६. उपयोग कब करते हैं ? (टिप्पणी) | व्रतवैकल्य, देवताओं की पूजा, हलदी-कुमकुम | पूजा एवं यज्ञ जैसे विविध धार्मिक विधियों के समय | विविध धार्मिक विधियां एवं उपासना | श्रीविष्णु की उपासना | शिव की उपासना एवं श्राद्ध आदि मृत्युत्तर/मृत्योत्तर धार्मिक विधि |
टिप्पणी : धार्मिक कार्य के समय हलदी एवं कुमकुम का अधिक मात्रा में उपयोग करें । व्यक्तिगत स्तर पर देवता की उपासना करते समय अष्टगंध, चंदन, गोपीचंदन, रक्तचंदन इत्यादि का उपयोग करें । अंत्येष्टी अथवा श्राद्धादि कर्म करते समय भस्म का उपयोग करें । ऐसा करने से संबंधित धार्मिक कार्य करने के लिए आवश्यक उस देवता के तत्त्व एवं शक्ति उपासक को मिलकर उनसे प्रत्येक धार्मिक कर्म अचूक एवं परिपूर्ण होने में सहायता मिलती है ।
कृतज्ञता : हे ईश्वर, आप ही हमें कुमकुम एवं गंध संबंधी ज्ञान देकर उनका महत्त्व हमारे ध्यान में लाकर दे रहे है, इसके लिए हम आपके श्रीचरणों में कृतज्ञ हैं ।
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१.५.२०१९, रात्रि १०.४०)
Om namay shivay
हर हर महादेव !
हर हर महादेव