वैद्य मेघराज पराडकर
१. सेमल (शाल्मली, सिमर) वृक्ष के फूल
सेमल के फूल
१ अ. पहचान
साधारणत: फरवरी – मार्च माह में पत्तों रहित, परंतु लाल रंगों के फूलों से लदा और जड पर मोटे कांटों से युक्त एक वृक्ष तुरंत हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । इसे सेमल कहते हैं । (छायाचित्र ‘१’ एवं ‘२’ देखें ।) यह वृक्ष सर्वत्र पाया जाता है । फरवरी – मार्च माह में इस वृक्ष के नीचे अनेक फूल गिरे पाए जाते हैं । ये फूल पशु बडी ही रुचि से खाते हैं । इस पुष्प पर आगे कुछ दिनों में ही फल तैयार होते हैं । इन फलों के खिलने से कपास निकलता है । इस कपास का उपयोग तकिया, गद्दे इत्यादि बनाने के लिए उपयोग करते हैं । सेमल के कपास का गुणधर्म ठंडा होता है ।
सेमल के पेड
१ आ. सेमल के फूलों का औषधीय उपयोग
पुणे के श्री. अरविंद जोशी नामक एक सद्गृहस्थ हैं जो विविध भारतीय उपचारपद्धतियों का अभ्यास करनेवाले हैं । उन्होंने अपनी शोध वृत्ति से इन फूलों का औषधीय गुणधर्म ढूंढा और अनेकों को उससे लाभ हुआ । उनके पास इसके अनेक उदाहरण हैं । उनका एक लेख पढकर मैंने भी कुछ रोगियों को ये फूल दिए, तो ध्यान में आया कि उन्हें भी बहुत लाभ हुआ है । श्री. अरविंद जोशी के इस विशिष्ट शोध के लिए मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।
सेमल के फूलों का उपयोग आगे दिएनुसार करें । वृक्ष से जो पुष्प स्वच्छ स्थान पर गिरे हैं, उन्हें एकत्र कर बिना धोए धूप में सुखा लें । फिर मिक्सर से उसका बारीक चूर्ण बनाकर रखें । यह चूर्ण सवेरे-शाम खाली पेट प्रतिदिन १ चम्मच लें । ऐसा लगभग ३ माह करें । ये फूल लगभग एक मास तक ही उपलब्ध रहते हैं । इसलिए अपनी आवश्यकतानुसार उसे एकत्र कर उसका चूर्ण बनाकर रखें । ऐसा अनुभव है कि यह चूर्ण नियमित लेने से स्नायु, जोडों और हड्डियों की वेदना कम हो जाती है । गठिया, घुटनों में वेदना, सीढियां उतरते समय घुटनों में वेदना, पैरों की एडियों में वेदना अथवा सूजन, कंधों में वेदना, कुहनियों में वेदना, कलाइयों में वेदना, गर्दन में वेदना, पीठदर्द, कमरदर्द इत्यादि विकारों में इस चूर्ण का बहुत लाभ होता है ।
२. मक्के के भुट्टे के केश (बाल)
सर्दियों के दिनों में मक्के के भुट्टे सर्वत्र उपलब्ध होते हैं । देहली में वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध वैद्यराज सुभाष शर्मा के अनुसार ये मक्के के भुट्टे के केश मूत्रमार्ग के विकारों पर बहुत उपयोगी हैं । उनसे मुझे इसके गुणधर्म सीखने मिले, इसके लिए में उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं।
मक्के के भुट्टे के केश प्रोस्टेट ग्रंथी की वृद्धि पर अत्यंत उपयुक्त औषधि है । पथरी (renal stones) गिराने के लिए इनका उपयोग होता है । पेशाब में जलन, गले और छाती में जलन होना, पेशाब रुक-रुककर होना, पेशाब पर नियंत्रण न रख पाना, पेशाब आरंभ होने में समय लगना, पेशाब में दुर्गंध आना, इन विकारों में यह अत्यंत उपयोगी है । इसका उपयोग आगे दिए अनुसार करें।
मक्के के भुट्टे के केश फेंके नहीं, अपितु उन्हें एकत्र कर, धोकर और सुखाकर रखें । अपने हाथ की उंगलियों को पूर्णत: अंदर मोडकर, उसके नाखून उसे तलवेपर टिकने से तैयार मुठ्ठी में जितने केश आएं (इसे आयुर्वेद में ‘अंतर्नखमुष्टि मात्रा’ कहते हैं ।) मक्के के केश लेकर उसमें २ कटोरी पानी डालकर उबालें । उसे तबतक उबालें कि वह १ कटोरी रह जाए । फिर इस काढे को छानकर सवेरे खाली पेट लें । काढा बनाने के पश्चात जो चोथा शेष रहता है, उसमें शाम को पुन: २ कटोरी पानी डालकर १ कटोरी काढा बनाएं और उसे छानकर चोथा फेंक दें । ऐसा अधिकाधिक १ माह करें । (इसके आगे यह औषधि लेना जारी रखना हो, तो वैद्य की सलाह लें ।)’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१३.२.२०२१)