सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान

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अनुक्रमणिका

१. आपातकाल की पूर्वतैयारी हेतु घर-घर
हरी सब्जियां, फलों के वृक्ष एवं औषधि वनस्पतियों का रोपण करें !

संत-महात्मा, ज्योतिषी आदि के मतानुसार आपातकाल का प्रारंभ हो गया है और उसकी तीव्रता अगले ३-४ वर्षों में बढती ही जाएगी । कोरोना के काल में हमने भीषण आपातकाल की झलक अनुभव की । आपातकाल में अनाज, तैयार औषधियों की कमतरता होनेवाली है । इसलिए अभी से हमें उसकी तैयारी करना आवश्यक है ।

आजकल बाजार में मिलनेवाले हरी सब्जियां, फल इत्यादि पर हानिकारक रसायनों के फव्वारे किए जाते हैं । ऐसी सब्जियां एवं फल खाने से प्रतिदिन विषैले पदार्थ हमारे पेट में जाते हैं । इससे रोग होते हैं । साधना के लिए शरीर स्वस्थ रखना आवश्यक है । हानिकारक रसायनों से मुक्त, अर्थात विषमुक्त अन्न खाने के लिए आज के काल में घर के घर ही में थोडी-बहुत हरी सब्जियां उगाना आवश्यक हो गया है ।

 

२. रोपण में समस्या हो, तब भी उस पर उपाययोजना कर घर-घर रोपण करना आवश्यक !

घर के समीप रोपण करने के लिए भूमि उपलब्ध न होना, रोपण करने के लिए समय न होना, ‘रोपण कैसे करते हैं ?’, यह जानकारी न होना, ‘बीज, खाद इत्यादि कहां से लाना है ?’, इसकी जानकारी न होना इत्यादि अनेक समस्याओं के कारण घर में हरी सब्जियां उगाना अनेकों को अंसभव लगता है; परंतु इन सभी पर उपाययोजना निकालकर अवश्य ही हम घर में ही हरी सब्जियां, फल एवं औषधि वनस्पति का रोपण कर सकते हैं । भीषण आपातकाल की पूर्वतैयारी हेतु प्रत्येक को यह करना ही होगा ।

 

३. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कृपाशीर्वाद से
कार्तिकी एकादशी पर सनातन के ‘घर-घर रोपण’ अभियान का शुभारंभ !

परात्पर गुरु डॉक्टर आठवले

सर्वत्र के साधक उपरोक्त समस्याओं पर मात कर घर के घर ही में हरी सब्जियां, फल के वृक्ष एवं औषधि वनस्पतियों का थोडा-बहुत तो रोपण करें, इस हेतु कार्तिकी एकादशी (१५.११.२०२१) से परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कृपाशीर्वाद से सनातन ‘घर-घर रोपण अभियान’ आरंभ किया जा रहा है । इस अभियान के अंतर्गत पूर्णतः प्राकृतिक पद्धति से रोपण करना सिखाया जाएगा और करवाया भी जाएगा ।

 

४. ३० वर्षों से भी अधिक काल घर की छत पर
बिना किसी रासायनिक खाद के विषमुक्त खाद्यान्न उगानेवाली पुणे की श्रीमती ज्योती शहा

पुणे की श्रीमती ज्योती शहा विगत ३० वर्षों से अपने घर की छत पर प्राकृतिक पद्धति से हरी सब्जियां, फल के पौधे एवं औषधि वनस्पतियों की रोपण कर रही हैं । थोडे-से स्थान में उन्होंने १८० से भी अधिक प्रकार के पौधे लगाए हैं । केवल एक ईंट की भूमि के टुकडे में उन्होंने सूखे पत्ते, रसोई का कचरा (श्रीमती शहा इसे ‘कचरा’ न कहते हुए ‘पौधों का खाद्यान्न’ संबोधित करती हैं), इसके साथ ही देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र से बनाए ‘जीवामृत’ नामक विशिष्ट पदार्थ का उपयोग कर उन्होंने ‘बिना मिट्टी की खेती’ की है । उनके घर की छत पर वे विषमुक्त खाद्यान्न उगा रही हैं । इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा करें, वह अल्प ही होगी ! उनके द्वारा की गई खेती के छायाचित्र प्रत्येक व्यक्ति के मन में ‘शहर में भूमि की समस्या पर मात कर, बिना किसी प्रकार की खाद का उपयोग किए रोपण करना संभव है’, ऐसा आत्मविश्‍वास निर्माण करते हैं । केवल अपने ही घर में रोपण करने तक श्रीमती ज्योती शहा सीमित नहीं रहीं, अपितु उन्होंने अब तक असंख्य लोगों को भी रोपण की पद्धति सिखाई है ।

फलों से लदा पपीते का पेड

 

छत पर केवल एक ईंट जितनी मिट्टी में लगा सहजन का पेड

 

गमले में लगाए अमरूद के पेड पर लगे अमरूद

 

छोटे से पेड में लगे नींबू

 

केले के पेड में लगे केले के गुच्छे

 

छत की लौकी के बेल पर लगी लौकी

 

पुराने कार्पेट से बनाई थैली में लगाई शिमला मिर्ची

 

‘रसोईघर के कचरे को ‘पौधों का आहार’ संबोधित करने पर, उस कचरे की ओर देखने का हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है । केवल शब्द बदलने से स्वयं की कृति में भी परिवर्तन होता है और हम इस ‘आहार’ को फेंकते नहीं अपितु ‘पौधों को खिलाते हैं ।’ – श्रीमती ज्योती शहा, पुणे (२४.१०.२०२१)

 

कृतज्ञता

गत ३० वर्षों से ‘शहर खेती’ का अनुभव प्राप्त पुणे की श्रीमती ज्योती शहा को सनातन के साधकों ने जब संपर्क किया तो उन्होंने सनातन के ‘घर-घर में रोपण’ अभियान के लिए किसी भी समय नि:शुल्क मार्गदर्शन करने की तैयारी दर्शाई । उन्होंने ‘यूट्यूब’पर अपने घर किए हुए रोपण के वीडियो रखे हैं । इन वीडियों की लिंक आगे दी हैं । उनके द्वारा बनाए गए वीडियो के कारण ‘प्राकृतिक पद्धति से रोपण कैसे करना चाहिए’, यह समझना बहुत सरल हो गया है । श्रीमती ज्योती शहा द्वारा किए गए अमूल्य सहयोग के लिए हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं !

 

५. ‘किसी भी रासायनिक खाद के बिना
अपने घर में रोपण कर सकते हैं’, ऐसा आत्मविश्‍वास
निर्माण करनेवाली श्रीमती ज्योती शहा की ‘शहर खेती’ !

(सूचना : रोपण के निम्न सभी वीडियो मराठी भाषा में है । इन वीडियो का सारांश हिन्दी भाषा में दिया है । यदि वीडियोे की भाषा समझ में नही आई, तो भी यह सारांश पढकर इस वीडियोे में क्या बताया है ?, यह ध्यान में आएगा । कृति समझने हेतु वीडियो उपयोगी होगा ।)

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

 

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

 

वीडियो की कालावधि : ५ मिनट

 

६. घर की खिडकी में भी रोपण कैसे कर सकते हैं, इसका उदाहरण

साभार : श्री. राहुल रासने, पुणे
वीडियो की कालावधि : ११ मिनट

वीडियो का सारांश : घर की खिडकियों में भी खंड (क्यारी) बनाकर रोपण (खंडीय रोपण/segmental farming) कर सकते हैं । ४.५ इंच वृक्ष से गिरे सूखे पत्तों की सतह एवं उस पर १ इंच गीले कचरे की (पौधों के लिए आहार) सतह रखने पर, किसी भी प्रकार की दुर्गंध नहीं आती । (गीले कचरे की सतह /थर १ इंच से ऊपर न हो ।) जीवामृत छिडकने से कचरे का शीघ्र विघटन होता है और रोपण के लिए स्थान उपजाऊ बनता है । छोटी-सी जगह में भी हरी सब्जियां इत्यादि लगा सकते हैं ।

 

७. जीवामृत बनाने एवं उसके उपयोग की पद्धति

वीडियो की कालावधि : ४ मिनट

वीडियो का सारांश : प्राकृतिक खेती में जीवामृत सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है । यह जीवामृत प्रत्येक सप्ताह बनाकर ताजा ही उपयोग करें ।

अ. १००० वर्ग फुट (१०० फुट x १० फुट) रोपण के लिए आवश्यक १० लीटर जीवामृत बनाने के लिए लगनेवाले घटक

१. १० लीटर पानी

२. देशी गाय का आधा से १ किलो ताजा गोबर

३. आधा से १ लीटर गोमूत्र (कितना भी पुराना हो)

४. १ मुठ्ठी मिट्टी

५. १०० ग्राम प्राकृतिक अथवा रसायनविरहित गुड

६. १०० ग्राम किसी भी दलहन का आटा (पिसी दाल)

आ. जीवामृत धातु के बर्तन में नहीं, अपितु मिट्टी अथवा प्लास्टिक के बर्तन में बनाएं ।

इ. जीवामृत का मिश्रण किसी बोरी अथवा सूती कपडे से ढककर रखें ।

ई. ३ दिन प्रतिदिन सवेरे शाम लकडी से घडी की सुई की दिशा में हिलाएं और चौथे दिन उसका उपयोग करें ।

उ. उपयोग करते समय १० गुना पानी मिलाएं ।

वीडियो की कालावधि : ४ मिनट

वीडियों का सारांश : प्रत्येक वृक्ष को जीवामृत देते समय १ मग जीवामृत में १० मग पानी मिलाएं । जीवामृत देते समय प्रत्येक छोटे पौधे को एक कप, तो बडे पौधों को प्रत्येक को १ लीटर इस प्रमाण अनुरूप दें । सप्ताह में १ दिन सभी पौधों को जीवामृत दें ।

 

८. ईंट, सूखे पत्तों एवं सूखी घास की सहायता से खंड बनाने की पद्धति
(खंड अर्थात पौधे लगाने के क्यारी)

वीडियों की कालावधि : ६ मिनट

वीडियो का सारांश : खंड अधिकाधिक २ फुट चौडाई के बनाएं, अर्थात उसमें काम करना सरल हो जाता है । खंड की लंबाई कितनी भी हो । ईंट रचकर खंड बना सकते हैं । इसमें घास, नारियल के छिलके अथवा सूखे पत्ते फैलाएं । फिर उसे पैर से दबा दें । इस पर साधारणत: १ इंच मिट्टी की सतह रखें । मिट्टी न हो, तो केवल घास अथवा वृक्ष के सूखे पत्ते भी रख सकते हैं । तदुपरांत १ भाग जीवामृत एवं १० भाग पानी ऐसा मिश्रण बनाकर उसे थोडा-थोडा इस पर छिडकें । इन खंडों पर प्रतिदिन थोडा-थोडा पानी छिडकें, जिससे उनमें सदैव नमी बनी रहे । इसके साथ ही सप्ताह में एक बार जीवामृत बनाकर, उसे इन खंडों पर छिडकें । (घास अथवा सूखे पत्ते नम रहने से, इसके साथ ही जीवामृत के उपयोग से वे शीघ्र सडकर मिट्टी बन जाते हैं ।)

एक ईंट का खंड बनाने से बरमादे को अधिक वजन नहीं होगा । घास अथवा सूखे पत्ते से बनी ऊपजाउ मिट्टी में गीलेपन को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए पौधों को अत्यधिक अल्प पानी दिया, तो भी पर्याप्त है ।

 

९. मिट्टी बिना गमला भरने की अथवा पौधा लगाने की पद्धति

वीडियो की कालावधि : ५ मिनट

वीडियो का सारांश : गमले के तले में स्थित छिद्र पर फूटे हुए गमले का अथवा कौल (टिपरी) का टुकडा रखें । गमले में सूखे पत्ते दबा-दबा कर भरें । थैली में लगाने के लिए तैयार पौधे को यदि गमले में लगाना हो, तो उसकी थैली काट लें । मिट्टी के ढेर सहित पौधा गमले में रखें । मिट्टी न निकालें । मिट्टी का ढेर पूर्णत: गमले के अंदर रहना चाहिए । वह गमले के ऊपर न आने पाए । सब ओर से सूखे पत्ते ठूंस-ठूंसकर भरें । सबसे ऊपर एक इंच (इससे अधिक नहीं) रसोईघर का कचरा फैलाएं । इस पर १ कप जीवामृत का घोल (१ भाग जीवामृत एवं १० भाग पानी) छिडकें । (वीडियो में इसके स्थान पर घन जीवामृत का उपयोग किया है ।) तदुपरांत इस पर थोडा पानी छिडकें । पौधों को पानी देते समय थोडा-सा ही पानी छिडकें । पौधों को स्नान न कराएं !

वीडियो की कालावधि : ४ मिनट

विडियो का सारांश : सप्ताह में एक बार गमले में अथवा खंड में सूखे पत्ते, नारियल के छिलके समान काष्ठ आच्छादन हम ४.५ इंच तक भी कर सकते हैं; केवल गीला ‘आहार’ (रसोईघर का गीला कचरा) १ इंच की अपेक्षा अधिक न भरें । पहले डाला गया काष्ठ आच्छादन (घास अथवा सूखे पत्ते इत्यादि) नीचे बैठने पर नया डालें ।

 

१०. पहले किए रोपण में प्राकृतिक पद्धति कैसे अंतर्भूत करना चाहिए, इसका प्रात्यक्षिक

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

वीडियो का सारांश : पहले से गमले में पौधे लगाएं हो, तो उस गमले की मिट्टी ऊपर की परत थोडी-सी निकालें । गमले की मिट्टी पर १ भाग जीवामृत और १० भाग पानी का १ कप मिश्रण छिडकें । गमले का रिक्त भाग घास अथवा सूखे पत्ते इत्यादि से भरें । इस पर पानी छिडकर फसल गीली रखें ।(पानी केवल छिडकें । पौधे को स्नान करवाने समान अत्यधिक पानी न डालें ।)

 

११. घर के घर में रोपण कर सकें, ऐसी वनस्पतियों के बीज

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

वीडियों का सारांश : इसमें घर के घर में किन-किन प्रकार की सब्जियों का बीज द्वारा रोपण कर सकते है, यह दिखाया है ।

 

१२. बीजामृत बनाने की कृति

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

अ. १००० वर्ग फुट (१०० फुट x १० फुट) रोपण के लिए आवश्यक आधा लीटर बीजामृत बनाने के लिए लगनेवाले घटक

१. आधा लीटर पानी

२. देशी गाय का ५० से १०० ग्राम ताजा गोबर

३. ५० से १०० मिलि (आधा से १ कप) गोमूत्र

४. चुटकी भर मिट्टी

५. चुटकी भर खाने का चूना

आ. बीजामृत धातु के बर्तन में न बनाते हुए मिट्टी के अथवा प्लास्टिक के बर्तन में बनाएं ।

इ. बीजामृत का मिश्रण बोरी अथवा सूती कपडे से ढककर रखें ।

ई. बीजामृत का मिश्रण सवेरे शाम लकडी से घडी के कांटे की दिशा में घुमाएं एवं २४ घंटों में उपयोग में लाएं ।

 

१३. बीजसंस्कार (बीज बोने से पहले किए जानेवाले संस्कार)

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

वीडियो का सारांश : बीज बोते समय उसे बीजामृत में भिगाकर बोएं । इसे ‘बीजसंस्कार’ कहते हैं । ऐसा करने से फफुंद के कारण होनेवाले रोगों से बीज व्यर्थ होने की संभावान अल्प होती है । फसल अधिक होती है । घास अथवा सूखे पत्ते इत्यादि सडकर जो अत्यधिक ऊपजाउ मिट्टी तैयार होती है, उसे अंग्रेजी में ‘ह्यूमस’ कहते है । यह ‘ह्यूमस’ अत्यधिक भूसभूसी होती है और इसमें उंगलियों से सहजता से रेखा बनाकर बीज लगा सकते हैं । हम खंड बनाते है, तब कुछ पौधे अपनेेआप उगते हैं । इनका पुर्नरोपण भी बीजामृत में भिगोकर करें । (इस वीडियो में चेरी, टमाटर पौधों का पुर्नरोपण दिखाया गया है ।) राजमा, मूग इत्यादि अंकुरित बीज खंड में लगाने से हवा की नत्रवायु (नायट्रोजन) मिट्टी में मिलाने के लिए इसका उपयोग होता है । पौधों के विकास के लिए मिट्टी में पर्याप्त नत्र (नायट्रोजन) होना आवश्यक होता है ।

 

१४. प्रत्यक्ष रोपण कैसे करें ?

वीडियो की कालावधि : ३ मिनट

वीडियो का सारांश : इसमें प्रत्यक्ष रोपण कैसे करें, वह दिखाया गया है । अदरक, आलू, प्याज जैसे कंद बीजामृत में भिगोकर ‘ह्यूमस’ में लगाएं ।

 

१५. रोपण के लिए बीज कैसे एकत्र करें ?

वीडियो की कालावधि : ५ मिनट

वीडियो का सारांश : जंगली तुलसी के मंजरी में उसके बीज होते हैं । परागभवन के लिए (पॉलिनेशन के लिए) जंगली तुलसी सहायक होती है । जंगली तुलसी की मंजरी की ओर मधुमक्खियां आकृष्ट होती है । मधुमक्खियों में आसपास के पौधों में परागभवन (पॉलिनेशन) होता है । जितना अधिक परागभवन उतना अधिक सृजन ! जंगली तुलसी अथवा तुलसी के मंजरी निकालकर हाथ पर मसले और हाथ पर धीरे से फूंक मारें । ऐसा करने से छिलके अलग होकर बीज अलग निकलते हैं । घर में रोपण किए गए गाजर, पालक, मक्का, लाल माठ, हरी माठ इत्यादि पौधों के बीज हम ले सकते हैं ।

 

१६. प्राकृतिक खेती के मूलभूत तत्त्व

पद्मश्री सुभाष पाळेकर ने ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक खेती’ नामक प्राकृतिक खेती व्यवस्था का अत्यधिक प्रसार किया । इस व्यवस्था के ४ मूलभूत तत्त्व निम्नानुसार है ।

अ. जीवामृत

आ. बीजामृत

इ. वाफसा

ई. आच्छादन

१६ अ. जीवामृत

 

जीवामृत बनाने पर ७ दिनों तक उसका उपयोग कर सकते हैं । जीवामृत बनाने पर उसका उपयोग बिना मिलाए करें, अर्थात केवल ऊपर का पानी निकाला और नीचे के कचरे में पुन: १० गुना पानी डालें । ऐसा करने वे ४ दिनों उपरांत पुन: नया जीवामृत तैयार होता है । १ चौरस फुट स्थान के लिए १० गुना पानी में मिलाकर १०० मिलि (१ कप) जीवामृत का उपयोग करें । जीवामृत धूप में न रखकर छांव में रखें ।

१६ आ. बीजामृत

१६ इ. वाफसा

मिट्टी की अथवा ‘ह्यूमस’ की २ कतारों के बीच रिक्ति होती है । (रसायनिक खाद का उपयोग करने पर यह रिक्ति नहीं रहती । इसलिए रसायनिक खाद का उपयोग न करें) इस रिक्ति में घूमनेवाली हवा और सूर्य की उष्णता के कारण हुई पानी की निर्मिती के एकत्रीकरण के कारण जो स्थिति बनती है, उसे ‘वाफसा’ कहते हैं । वाफसा की स्थिति बनने के लिए मिट्टी ऊपजाउ चाहिए । घास अथवा सूखे पत्ते इत्यादि, नारियल की छाल, सूखी हुई फसल के आच्छादन बनाकर उस पर जीवामृत छिडकने पर कुछ समय उपरांत जो मिट्टी सदृश घटक तैयार होते हैं, उसे ‘ह्यूमस’ कहते हैं । ‘ह्यूमस’ पौधों के लिए जीवनद्रव का बडा स्रोत है । घास अथवा सूखे पत्ते इत्यादि का आच्छादन जितना अच्छे से करेंगे उतना ह्यूमस अच्छे से तैयार होता है । ह्यूमस जितना अधिक उतनी मिट्टी ऊपजाउ बनती है । उत्तम ह्यूमस बनाने के लिए पहले का रोपण भी ऊपर दिए वीडियो में बताए अनुसार ‘प्राकृतिक’ बना लें ।

१६ ई. आच्छादन

वाफसा की स्थिति आने के लिए जो मिट्टी बनानी होती है, उसके लिए हम घास अथवा सूखे पत्ते इत्यादि, नारियल की छाल, सूखी हुई फसल, बाग के पौधों की काटी हुई ‘कटिंग’ इत्यादि जो फैलाते हैं, उसे आच्छादन कहते हैं । सूखी हुई फसल का आच्छादन ४.५ इंच तक, तो ‘पौधों के लिए खाद (रसोईघर के गीले कचरे का)’ आच्छादन अधिकाधिक १ इंच तक करें । गीले कचरे का आच्छादन १ इंच से अधिक बडा न करें ।

 

१७. रोपण के संदर्भ में कुछ शंका हो तो वह जालस्थल (वेबसाइट) पर पूछें !

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१८. शंकासमाधान की कार्यपद्धति

इस अभियान में निर्धारित दिनों पर साधकों के शंकानिरसन करने के लिए ऑनलाइन अभ्यासवर्ग लिए जाएंगे । इन अभ्यासवर्गों में जालस्थल पर पूछे गए प्रश्‍नों के उत्तर दिए जाएंगे । सभी के लिए उपयुक्त प्रश्‍नों के उत्तर सनातन प्रभात में दिए जाएंगे ।

 

१९. श्री गुरु के आज्ञापालन के रूप में
इस अभियान में श्रद्धापूर्वक और भावपूर्वक सहभाग लें !

श्रीगुरुचरित्र के चालीसवें अध्याय में एक प्रसंग है । नरहरि नाम के ब्राह्मण को कुष्ठ रोग होता है । श्री गुरु नृसिंहसरस्वती उसे ४ वर्षों से सूखी एक गूलर की लकडी देकर उसे दिन में ३ बार पानी देने के लिए कहते हैं । लोगों द्वारा उपहास उडाए जाने पर भी भक्त नरहरि गुरु की आज्ञा का पालनकर ७ दिन मन में बिना कोई शंका लाए उस सूखी हुई लकडी को श्रद्धापूर्वक पानी डालता है । उस समय श्री गुरु उस पर प्रसन्न होकर स्वयं के कमंडल का तीर्थ उस लकडी छिडकते हैं । तभी उस सूखी हुई लकडी में पत्ते निकलते है और नरहरि का कुष्ठ रोग भी ठीक होता है । भक्त नरहरि के समान हम भी श्रद्धापूर्वक और भावपूर्वक इस अभियान में सहभाग लेंगे । ‘श्री गुरु ही हमसे यह सेवा करवा रहे हैं’, ऐसा भाव रखेंगे !’

9 thoughts on “सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान”

  1. गच्चित झाडे लावल्याने घराच्या भिंतित पाणी मुरते, भिंति खराब होतात, घर गळते, छत खराब होते असा अनेकांचा समज आहे. काय उपाय आहे, कृपया मार्गदर्शन करावे.

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    • नमस्कार सौ. प्रांजली ब्रम्हेजी,

      पाण्याचा अति वापर टाळला तर या समस्या उद्भवत नाहीत. काळजी म्हणून छताचे वॉटरप्रूफिंग व्यवस्थित आहे ना ते पाहू शकतो. मर्यादित पाणी आणि पाण्याचा निचरा नीट होत असेल तर गळतीची अडचण येणार नाही.

      आपल्याला नैसर्गिक शेतीत फक्त वाफसा स्थिती टिकून राहील एवढेच पहायचे आहे, ‘वाफसा’ म्हणजे काय हे लेख वाचून आणि व्हिडीओ पाहून परत एकदा समजून घेऊया म्हणजे गळतीची भीती मनात राहणार नाही.

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  2. गच्चित बाग तयार केली आहे, गुरुकृपेने तुम्ही सांगितल्या प्रमाणे ह्यूमसच्या सहाय्याने कुंडयांमधे झाडे लावली आहेत, पण फुल व फळ फारच थोडी येतात, झाडांची वाढ समाधान कारक नाही.

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    • नमस्कार सौ. प्रांजली ब्रम्हेजी,

      कोणती झाडे लावली आहेत ? किती दिवस झाले ? पुरेसा सूर्यप्रकाश (सकाळी 3-4 तास) मिळतो का ? कुंडीतील पाण्याचा चांगला निचरा होतो ना ? हे पहावे. नियमीत जिवाम्रुत घातले जाते का ते पहावे.

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  3. अतिशय सुंदर माहिती अगदी सोप्या भाषेत सांगितली आहे. याचा लाभ आम्हा सर्व साधकांना होऊ देत. आपल्या अपेक्षेप्रमाणे होऊ देत. गुरुदेवा.

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  4. १. गोगल गाई भाज्यांची पाने खाऊन टाकते आहे, कितीही गोगल गाईंना मातीतून काढले तरी कुठून तरी त्या परत मातीत आढळतातच. कृपया गोगल गाईंपासून कायमची सुटका होण्यासाठी मार्गदर्शन करावे ही विनंती

    २. बागेतील वागण्याला कीड लागली आहे, वांग्याच्या बाहेरील बाजूस एक काळे द्रव बाहेर पडत आहे, त्याला औषध कोणते द्यावे, ते की तयार करावे तसेच इतर वांग्याचे ही त्यापासून कसे रक्षण करावे यासाठी कृपया मार्गदर्शन करावे ही विनंती

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    • नमस्कार,

      १. गोगल गाईंच्या नियंत्रणासाठी
      अ) जमिनीतील ओलावा नियंत्रीत असावा, पावसाळ्यात हे शक्य होत नाही पण इतर वेळेस याकडे लक्ष असावे.
      आ) आपल्या बागेत पक्षी येऊन बसण्यासाठीची (पक्षी थांबे) व्यवस्था म्हणजे एक-दोन काठ्या उभ्या करुन ठेवाव्या, त्याला आडवी काठी बांधली की पक्षी त्यावर येऊन बसतात आणि गोगलगाई खातात. पक्षांसाठी पाण्याचे भांडे ठेवले तर पाणी पिण्यासाठीही पक्षी आकर्षित होतात. खुरप्याने जमीन थोडी हलवली तर गोगलगाई वर येतात आपण त्या वेचुन पक्षांना देऊ शकतो किंवा वर आलेल्या गोगलगाई पक्षीही टिपतात.
      इ) अगदी शेवटचा पर्याय म्हणुन पेठेत मिळणारे औषध वापरावे.

      २. वांग्याच्या फळ पोखरणाऱ्या अळीसाठी अग्निअस्त्राची (अग्निअस्त्र म्हणजे तंबाखु, मिरची, लसुण, कडुलिंबाची पाने यांचे मिश्रण गोमुत्रात उकळून घेऊन तयार केलेले औषध) फवारणी विशेषत: पौर्णिमा, अमावास्या व अष्टमी या तिथींना करावी.

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  5. आमच्या घराजवळ एकांची शेती आहे, त्यामुळे उंदीर, घुस आमच्या बागेत ही येतात आणि नासधूस करून जातात. लावलेल्या आळूचे सर्व कांदे आणि लावलेला कांदा त्यांनी उपटून संपवला असल्याने आता बाहेर आळू अथवा कांदा लावता येत नाही. उंद्राचे ४ वेळा वेगवेगळी औषधे आणून ती घालूनही काही फरक पडत नाही. त्यासाठी प्रभावी औषध कोणते हे कृपया सांगावे ही विनंती

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    • नमस्कार,

      उंदीर, घुस यांचा त्रास कमी होण्यासाठी खालीलप्रमाणे उपाय करता येतील:
      1. सापळे, पिंजरे लावणे
      2. औषधांचा वापर सातत्याने करणे
      3. औषधांचा वापर करतांना उंदरांचा जास्त त्रास केव्हा होतो याचे निरीक्षण करावे उदा. शेजारील शेतात पीक नसतांना किंवा शेताच्या मशागतीच्या वेळेस उंदिर जास्त येतात का ? तर त्या वेळेस औषधांचा वापर करावा.
      4. उंदिर, घुस जमिनीखाली वाढणाऱ्या अळु सारख्या वनस्पतींचे जास्त नुकसान करतात तर पर्यायी पिकांची लागवड करावी.
      5. मोगली एरंडाचे (jatropha) बागेत झाड लावल्यास उंदिर त्याच्या वासामुळे आसपास येत नाहीत.
      6. शक्य असल्यास मांजर पाळावे. शेजारील शेतातून उंदिर येत असतील तर त्यांना खाण्यासाठी सापही येण्याची शक्यता असते. मांजरामुळे उंदिर तसेच सापाचेही नियंत्रण होऊ शकते.
      अशा वेगवेगळ्या प्रकारे उंदरांचे किंवा त्यांच्याकडून होणाऱ्या नुकसानीचे नियंत्रण होऊ शकते. तारतम्याने आपल्याला शक्य असेल त्या पर्यायाचा वापर करावा.

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