परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का साधकों के संदर्भ में प्रीतिस्वरूप व्यापक दृष्टिकोण !
परात्पर गुरु डॉ. आठवले
१. रामनाथी, गोवा के सनातन का आश्रम हिन्दू राष्ट्र की प्रतिकृति होना
रामनाथी, गोवा के सनातन का आश्रम आस्तित्व में आने के एक दशक पूर्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी का वर्ष १९९५ में संपूर्ण जगत के लिए यह आश्रम हिन्दू धर्म का विश्वदीप बनेगा, ऐसा कृपाशीर्वाद दिया था । हिन्दू राष्ट्र की प्रतिकृति, इस भूमिका से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम की निर्मिति की है । रामनाथी का सनातन आश्रम एक तीर्थक्षेत्र है, ऐसे गौरवोद्गार अनेक संत एवं देवताओं ने किए हैं । यहां प्रत्येक छोटी-छोटी बात का आध्यात्मिक स्तर पर विचार कर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने यह आश्रम आदर्श बनाया है । इसका एक उदाहरण है रामनाथी के सनातन के आश्रम का ध्यानमंदिर !
रामनाथी के सनातन के आश्रम का ध्यानमंदिर
२. संप्रदाय के आश्रम में केवल उनके उपास्यदेवता के चित्र अथवा मूर्ति होना
हिन्दूधर्म में अनेक संप्रदाय हैं । प्रत्येक संप्रदाय में उस संप्रदाय के उपास्यदेवता की उपासना करने के लिए बताया जाता है । उस अनुसार उनके आश्रम के अथवा मठ के देवघर में प्रमुखरूप से उस देवता का चित्र अथवा मूर्ति मिलती है । संप्रदाय का प्रत्येक व्यक्ति अपने संप्रदाय की सीख के अनुसार केवल वही एक उपासना करता है ।
कु. प्रियांका लोटलीकर
३. प्रत्येक साधक को उसकी प्रकृति के अनुसार आवश्यक तत्त्व का लाभ मिले,
इस प्रीतिस्वरूप व्यापक विचार से सनातन के आश्रम के ध्यानमंदिर में अनेक देवता होना
सनातन संस्था यह संप्रदाय न होकर हिन्दू धर्मानुसार अध्यात्मशास्त्र बताता है । हिन्दू धर्म में देवताओं के कार्यानुसार उनकी उपासना बताई है । इस उपासना के माध्यम से वह अमुक तत्त्व उस उपासक को प्राप्त होता है । अनेक जिज्ञासु, शुभचिंतक, पाठक एवं साधक आश्रमदर्शन, इसके साथ ही साधना करने के उद्देश्य से सनातन के आश्रम में आते हैं । आश्रम का ध्यानमंदिर देखने पर कुछ लोगों के मन में विचार आता है कि आश्रम के ध्यानमंदिर में अनेक देवी-देवताओं के चित्र अथवा मूर्तियां क्यों हैं ? इस संदर्भ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का विचार अत्यंत प्रीतिस्वरूप एवं व्यापक है । वे कहते हैं, अनेक से एक में आना, इस साधना के मूलभूत तत्त्वानुसार प्राथमिक स्तर के साधकों को अनेक देवताओं का पूजन करने के स्थान पर अपने कुलदेवता का (एक देवता का) पूजन करने के लिए बताया जाता है । सनातन के आश्रम में २५० से अधिक साधक साधना कर रहे हैं । जितने व्यक्ति, उतनी प्रकृति, उतने साधनामार्ग इस साधना के अन्य एक मूलभूत तत्त्व के अनुसार आश्रम में साधना कर रहे अनेक साधकों में से प्रत्येक के उपास्यदेवता अलग-अलग हो सकते हैं । इसलिए प्रत्येक को उसके उपास्यदेवता का तत्त्व उपलब्ध हो, इसलिए सनातन के आश्रम के ध्यानमंदिर में अनेक देवताओं की रचना की गई है । ध्यानमंदिर के देवताओं की रचना के इस छोटे-से सूत्र से परात्पर गुरु डॉ. आठवले प्रत्येक साधक के आध्यात्मिक लाभ के विषय में कितना सखोल एवं व्यापक विचार करते हैं, यह दिखाई देता है ।
– कु. प्रियांका लोटलीकर, शोध समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२८.५.२०२०)