अनुक्रमणिका
बाढ, भूकंप, दंगे, महायुद्ध इत्यादि आपत्तियों के समय अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिति निर्माण होती है । ऐसे समय पर सर्वत्र विध्वंस होना, आग लगना, गली-गली मृतदेहें पडी होना, ऐसी स्थिति सर्वत्र दिखाई देती है । ऐसी घटनाएं देखकर अथवा सुनकर अनेकों का मन अस्थिर होना, तनाव आना, चिंता लगना, भय लगना, परिस्थिति न स्वीकार पाना इत्यादि कष्ट होते हैं । अनेक लोगों को भविष्यकाल में संभाव्य आपत्तियों की कल्पना से भी ऊपर दिए गए कष्ट होते हैं । इसके साथ ही सगे-संबंधियों में भावनिकदृष्टि से अटकना होता है । ऐसा होनेपर मानसोपचारतज्ञ की सहायता लें । ऐसे कष्ट न हों, अर्थात मन का संतुलन बिगडने ने देते हुए प्रतिकूल परिस्थिति का धैर्य से सामना कर सकें, इस हेतु की जानेवाली उपाययोजना आगे दी हैं ।
१. किसी भी प्रकार के आपातकाल के समय ली जानेवाली स्वसूचना
अ. जब आनेवाले आपातकाल की तैयारी के रूप में रखा गया अनाज एवं औषधियां आपातकाल के समाप्त होने से पूर्व ही समाप्त हो जाएंगी, इस विचार से मुझे चिंता होगी, तब जीवन के प्रत्येक कठिन प्रसंग में भगवान ने अब तक मुझे आवश्यक समस्त सामग्री की आपूर्ति की है, इसका मुझे भान होगा और मैं निश्चिंत होकर साधना पर ध्यान केंद्रित करूंगा ।
आ. जब आनेवाले आपातकाल की तैयारी के रूप में रखा अनाज एवं औषधियां, आपातकाल आने से पूर्व ही समाप्त हो जाएंगी, इस विचार से मुझे चिंता होगी, तब वरिष्ठ साधकों के मार्गदर्शनानुसार मैंने आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में संग्रह किया है, इसका भान होगा और मैं श्रद्धा से अन्य सकारात्मक प्रयत्न करूंगा /श्रद्धा से साधना के प्रयत्न करूंगा ।
२. आपातकाल के प्रसंग का सामना करने के लिए मन की
तैयारी हेतु वह प्रसंग होने से पूर्व ही ली जानेवाली स्वसूचना
अ. प्रसंग : आपातकाल में मुझे पर्याप्त अन्न-पानी मिलेगा ना ? इसकी चिंता होना !
अ. जब तीसरे विश्य युद्ध के समय मुझे आवश्यक अन्न-पानी मिलेगा न ?, इस विचार से मुझे चिंता होगी, तब भान होगा कि अब तक भगवान ने ही मुझे आवश्यक अन्न-पानी दिया है और इसके आगे भी वे इसकी आपूर्ति करने ही वाले हैं । इसलिए मैं अपनी साधना पर ध्यान केंद्रित करूंगा ।
आ. जब आनेवाले आपातकाल की तैयारी के रूप में संग्रहित अनाज एवं औषधियां, आपातकाल समाप्त होने के पूर्व ही समाप्त हो जाएंगी, इस विचार से मुझे चिंता होगी, तब भान होगा कि मैं वरिष्ठ साधकों के मार्गदर्शनानुसार स्थूल से आवश्यक नियोजन कर रहा हूं; परंतु इसकी अपेक्षा साधना और भगवान की कृपा से ही मेरी रक्षा होनेवाली है । मेरी शारीरिक और मानसिक तैयारी की तुलना में साधना ही अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह मेरे ध्यान में आएगा । इसलिए मैं निश्चिंत होकर आवश्यक प्रयत्न करूंगा और शेष सब भगवान के ऊपर छोड दूंगा ।
इ. जब तीसरे विश्व महायुद्ध के काल में मेरे पास आवश्यक अन्न और पानी होगा ना ?, इस विचार से मुझे चिंता होगी, तब अखिल ब्रह्मांड के पंचमहाभूतों पर भगवान का नियंत्रण है और भगवान साधकों की सहायता के लिए सदैव दौडे चले आते हैं, इसका मुझे भान होगा और मैं शांति से साधना पर ध्यान केंद्रित करूंगा ।
आ. प्रसंग आपातकाल में मुझे गंभीर बीमारियां तो नहीं होंगी ना ?, इसकी चिंता होना ।
स्वसूचना
जिस समय आपातकाल में गंभीर बीमारियां तो नहीं होंगी ना ?, इसकी मुझे चिंता होगी, तो भान होगा कि भगवान के लिए सब कुछ संभव है । इसलिए तीसरे महायुद्ध के समय भी वे गंभीर बीमारियों से मेरी रक्षा करेंगे । इसलिए मैं शांति से अपनी साधना पर ध्यान दूंगा और औषधियों का संग्रह करूंगा एवं भगवान पर श्रद्धा रखूंगा ।
इ. प्रसंग : आपातकाल में मेरा घर तो नहीं गिर जाएगा ?, इसकी चिंता होना ।
३. आपातकाल के समय आगे दी गई स्वसूचना दे सकेंगे !
स्वसूचना
जब मुझे चिंता होगी कि आपातकाल में कहीं मेरा घर तो नहीं गिर जाएगा ना ?, इसकी चिंता होगी, तब भान होगा कि भगवान ने मेरे जीवन निर्वाह का ध्यान रखा है । इसलिए युद्ध के समय भी मुझे सुरक्षित आश्रम मिले, इसकी भी वह निश्चितरूप से ध्यान रखेंगे । अत: मैं अपना ध्यान साधना पर केंद्रित करूंगा और शांत रहूंगा ।
स्वसूचना
जिस समय आपातकाल में मेरा घर तो नहीं गिर जाएगा ?, इसकी चिंता होगी, तब भान होगा कि पडोसियों एवं साधकों ने आपातकाल में मेरी सहायता की है । इसलिए मैं अपना ध्यान साधना पर केंद्रित करूंगा और शांत रहूंगा ।
अ. प्रसंग : अतिवृष्टि के कारण शहर में सर्वत्र पानी-पानी हो गया है ।
स्वसूचना
जिस समय शहर की बाढग्रस्त स्थिति देखकर अब अपना और घर का क्या होगा ?, ऐसे चिंताजनक विचार मेरे मन में आएंगे तब भान होगा कि घर का सामान पानी से सुरक्षित स्थान पर रखना, कुटुंबियों की सहायता करना और उन्हें आधार देना, ये वर्तमानकाल में मेरे कर्तव्य / मेरी साधना है । अत: मैं कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए उस-उस समय सीखने मिले सूत्रों का अवलंब कर नामजप करते हुए आवश्यक कृति करूंगा ।
४. भय लगे तो आगे दिए अनुसार प्रसंग का
अभ्यास करना आवश्यक ! (अ ३ स्वसूचना पद्धति)
जिस प्रसंग का डर लगता है, उस प्रसंग का सामना करने से पूर्व ‘अ ३’ इस स्वसूचना पद्धतिनुसार प्रसंग का अभ्यास करें । इस स्वसूचना का उदाहरण नीचे दिया है ।
अ. प्रसंग १
अनेक शहरों में बाढग्रस्त स्थिति है, इस विषय का समाचार मैंने दूरदर्शन संच पर देखा । तदुपरांत इस विचार से डर लगने लगा कि हमारे घर के पास भी नदी है, तो उसमें बाढ आएगी । बाढ आने पर हमें भी सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहेंगे । अन्यत्र स्थलांतरित होना मेरे लिए संभव होगा क्या ?, इस विचार से मुझे डर लगा ।
१. हमारे घर के निकट स्थित नदी में बाढ आने पर नगरपालिका के कर्मचारियों ने हमें दूसरी ओर स्थलांतरित होने के लिए कहा है ।
२. मैं भगवान से आर्त प्रार्थना कर रहा हूं कि वे इस स्थिति से मुझे सकुशल बाहर निकालें ।
३. मैं आवश्यक सामग्री लेकर कुटुंबियों सहित घर से बाहर निकल रहा हूं ।
४. आपातकालीन परिस्थिति से बाहर कैसे निकलना है ?, इसका जिन्हें ज्ञान है, ऐसे सहयोगी मेरे साथ हैं । उनकी सहायता से एवं मार्गदर्शन से मैं उपाययोजना कर रहा हूं । मैं मन ही मन प्रार्थना एवं नामजप कर रहा हूं ।
५. जब भी मुझे कुछ समस्या आती है, तब सहयोगियों की सहायता मिलती है । इससे मुझे भगवान की कृपा अनुभव होती है । इसलिए मन आश्वस्त होकर मेरी भगवान पर श्रद्ध बढ रही है ।
६. भगवान की कृपा से मैं सुरक्षित स्थान पर भली-भांति पहुंच गया हूं ।
७. भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर मैं सभी सामान ठीक से लगा रहा हूं ।
आ. प्रसंग २ : भयंकर बाढ आने से मैं और मेरा परिवार
घर में ही अटक गए हैं / अतिवृष्टि के कारण शहर में सर्वत्र पानी भर गया है ।
आगे दी गई स्वसूचनाएं दें !
स्वसूचना १
जब मैं और मेरा परिवार बाढ आने से घर के बाहर नहीं जा सकेंगे, तब भान होगा कि भगवन हमारा ध्यान रखने ही वाले हैं । इसलिए मैं ध्यानपूर्वक नामजप एवं साधना के अन्य प्रयत्न करूंगा ।
स्वसूचना २
जिस समय शहर की बाढग्रस्त स्थिति देखकर अब हमारा और घर का क्या होगा ?, ऐसे चिंता के विचार मेरे मन में आएंगे, तब भान होगा कि वर्तमानकाल में रहने से मैं इस समस्या का सामना कर सकूंगा । यह मेरी साधना है । भगवान को भी यही पसंद है । अत: नामजप करते हुए मैं योग्य कृति करूंगा ।
आपातकाल में गंभीर बीमारी तो नहीं होगी ना ? क्या खाने-पीने के लिए मिलेगा ? घर टूट तो नहीं जाएगा ना ? इत्यादि की चिंता हो रही हो, तो उसे दूर होने के लिए स्वसूचना दें !
इ. प्रसंग ३ : मैं जिस गांव में रहता हूं, वहां भूकंप हो चुका है ।
स्वसूचना
१. जिस समय मुझे सुनने में आएगा कि ज्वालामुखी का उद्रेक / भूकंप हो रहा है, तब मैं स्थिर रह पाऊं, इसके लिए मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा । मैं शांति से आवश्यक सर्व सामान एकत्र कर / अपने कुटुंबियों के साथ नामजप करते हुए सुरक्षित स्थान पर जाऊंगा ।
२. ज्वालामुखी का उद्रेक / भूकंप हो रहा है, ऐसा सुनने में आएगा, तब भान होगा कि जीवन में ऐसे प्रसंग आना, यह प्रारब्ध का भाग है, ऐसा विचार कर स्थिर रहकर इस प्रसंग का सामना कर सकूं, इसके लिए मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा ।