पानी की शक्ति और सकारात्मकता

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सभी लोगों की भांति मुझे भी रसोईघर को स्वच्छ किए बिना नींद नहीं आती; परंतु उसे स्वच्छ करने के पश्चात गत ६ माह से मैं एक बात अवश्य करती हूं, जिसका मुझे अत्यधिक लाभ हुआ है । मैं रात को सोते समय रसोईघर में स्थित पूजाघर में शाम को लगाया दीपक यदि बुझ जाए, तो उसे पुन: जला देती हूं; परंतु उसके साथ पीने के पानी के पास के बर्तन के निकट एक दीपक लगाती हूं और जिस दिन संभव हो, उस दिन वहां एक फूल भी चढाती हूं । इसके साथ ही मनोभाव से पीने के सभी बर्तनों को हाथ जोडकर कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।

कुछ लोगों को उपरोक्त भाग पढकर विचित्र अथवा हास्यास्पद लगेगा; परंतु मैं स्वयं एक डॉक्टर हूं । मैं सहसा किसी भी बात पर विश्वास नहीं रखती; परंतु ६ माह पूर्व ‘पानी’ इस विषय पर अत्यंत अभ्यासपूर्ण संशोधन मेरे हाथ लगा । तदुपरांत कुछ धार्मिक पुस्तकों में संदर्भ भी मिला । उसे यहां सरल भाषा में प्रस्तुत कर रही हूं ।

 

१. पानी में बाहर से आनेवाली प्रत्येक प्रकार की ऊर्जा अनुसार परिवर्तन होना

पानी अर्थात जीवन । पानी में स्वयं की विशिष्ट एक स्मरणशक्ति होती है । पानी पीते समय जिसप्रकार के अपने विचार होते हैं अथवा जिस मानसिक स्थिति में हम पानी पीते हैं, उसका भारी परिणाम पानी पर और हम पर होता है । पानी में बाहर से आनेवाली प्रत्येक प्रकार की ऊर्जा अनुसार परिवर्तन होता रहता है और उसके अनुरूप अपने शरीरपर परिणाम होता है ।

प्रत्येक व्यक्ति के शरीर पर पानी विविध प्रकार से कार्य करता है । अपने शरीर का ७० से ७५ प्रतिशत भाग पानी से बना है, अर्थात शरीर का कार्य कैसे चलाना है, यह मुख्यरूप से हम जो पानी ग्रहण करते हैं, वही निश्चित करता है । पानी पीते समय आपके विचार, पानी की ओर देखने की आपकी दृष्टि, पानी पीते समय आसपास से आनेवाली आवाज, पानी पीते समय आपके मन की भावनाएं अथवा आपके मुंह से निकलनेवाला उच्चार, इन सभी का पानी पर प्रचंड परिणाम होता है । इसे प्रत्यक्ष ‘मायक्रोस्कोप’ के नीचे भी देख सकते हैं । आपकी मानसिक स्थिति यदि प्रचंड सकारात्मक होगी और हाथ में लिए पानी के गिलास के प्रति आप अत्यधिक कृतज्ञ होेंगे, तो फिर मटमैला अथवा दूषित पानी भी आपका कुछ नहीं बिगाड सकता । इसके साथ ही यदि आपकी मानसिक स्थिति नकारात्मक होगी और पानी पीते समय यदि लापरवाह होंगे, तो अत्यंत शुद्ध पानी भी प्रचंड अपायकारक हो सकता है ।

 

२. पानी की ‘पेशीसंस्था’ का मानव की मज्जासंस्था समान कार्य करना

पानी ‘जीवित’ होने से मानव की मज्जासंस्था जिसप्रकार कार्य करती हैं, उसीप्रकार पानी और उसकी ‘पेशीसंस्था’ कार्य करती है । जो पानी हाथ में रखकर अथवा पास में रखकर प्रेम की भावना मन में लाई जाती है, उस पानी की पेशी अथवा कण का (मॉलेक्यूल) आकार अत्यंत ही सुंदर होता है और जो पानी हाथ में रखकर अथवा पास में रखकर क्रोध अथवा द्वेष की भावना मन में लाते हैं, उस पानी के कणों का आकार अत्यंत ही विचित्र और ऊबड खाबड होता है । पानी पीते समय जिसप्रकार आप पानी को ‘ट्रीट’ (बर्ताव) करेंगे, उसे पानी बहुत समय तक ध्यान में रखता है और उस अनुसार शरीर पर अच्छा अथवा बुरा परिणाम करता है ।

 

३. ‘वॉटर थेरपी’ का उदय होना

पानी का विचार आज ‘लिक्विड कॉम्प्युटर’ के रूप में किया जाता है और उसमें पानी की ‘मेमरी’ के गुणधर्म का उपयोग किया जाता है । आजकल पानी के इसी गुणधर्म का उपयोग कर आपको जो भी अच्छा उद्देश्य साध्य करना है, वह एक हाथ में पानी का ग्लास लेकर, फिर मन में बोलकर पानी पीना । इसप्रकार की विविध ‘वॉटर थेरपी’ का उदय हो रहा है । यह सब वैज्ञानिक जानकारी होने से जिन्हें और भी विस्तृत जानकारी चाहिए, वे इंटरनेट पर ‘डॉ. मसारू इमोतो के पानी पर किए शोध’ पढें ।

 

४. पानी की दिव्य और शक्तिशाली क्षमता ध्यान में आनेके लिए किए जानेवाले प्रयत्न

पानी की दिव्य और शक्तिशाली क्षमताओं को हिन्दू संस्कृति और प्रचलित प्रथाओं में बिठाने का प्रयत्न किया । उससे जो हाथ लगा, उसपर मैं निम्न बातें ६ माह से कर रही हूं ।

१. पीने का पानी तांबे के बर्तन में ही संग्रह करें और संभवत: तांबे के ग्लास से ही पिएं; कारण तांबा धातु ऊर्जा का ‘सुवाहक’ है ।

२. प्रतिदिन रात को उस तांबे के बर्तन को इमली और हलदी का उपयोग कर धोएं ।

३. तदुपरांत उसमें स्वच्छ पानी सूती कपडे से छानकर भरें ।

४. तदुपरांत इस पानी के बर्तन के समीप एक दीपक लगाकर बर्तन पर एक फूल रखें और पानी विषयी मन में अत्यंत कृतज्ञता का भाव लाकर हाथ जोडें ।

(‘मुझे जीवन और आरोग्य प्रदान करने के लिए कृतज्ञ हूं’, ऐसे अथवा इस प्रकार के कोई भी अच्छे विचार मन में लाकर कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं ।)

५. सवेरे उठने के पश्चात इसी बर्तन से पानी पीकर दिन का प्रारंभ करें ।

६. पानी पीने का सबसे योग्य मार्ग है दोनों हाथों की अंजुली में पानी लेकर पीना; परंतु वह हमारे लिए संभव नहीं होता । इसलिए पानी पीते समय जिस बर्तन में पानी पिएंगे, उसे दोनों हाथों से पकडकर पानी पीना ।

७. पानी पीते समय जानबूझकर कुछ सेकंड पानी का ग्लास दोनों हाथों में रखकर मन में अच्छे विचार, अच्छी भावनाएं हैं न, इसकी निश्चिती करके ही पानी पिएं ।

८. यही बात किसी के घर जाने पर अथवा बाहर कहीं जाने पर पानी पीना पडे, तो ध्यानपूर्वक थोडा अधिक समय करें ।

९. केवल प्यास लगने पर ही पानी पिएं । बिना कारण बार-बार पानी न पिएं ।

१०. आहार में ऐसे फलों का समावेश करें जिनमें पानी की मात्रा अधिक (८०-९० प्रतिशत) हो ।

 

५. योग्य प्रकार पानी पीने से हुए लाभ

उपरोक्त प्रकार से पानी पीने से और ६ माह सलग प्रयत्न करने से जो लाभ मुझे हुए वे आगे दिए अनुसार हैं :

अ. मेरी छोटी बेटी, जो प्रति माह बीमार पडती थी और उसे प्रत्येक माह ‘एंटीबायोटिक्स’ (प्रतिजैविक) देनी पडती थी, अब वह पूर्णतः बंद हो गई ।

आ. मेरा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो गया है, जो कुछ माह पूर्व अत्यधिक बिगडा था ।

इ. मेरे घर के लोगों को पित्त का (‘एसिडिटी’का) कष्ट लगभग बंद हो गया है ।

ई. प्रतिदिन सवेरे घर का वातावरण बहुत अच्छा, हंसता-खेलता और ऊर्जा से भरा होता है ।

उ. मेरा पानी के प्रति और कुल मिलाकर रसोईघर की ओर देखने का दृष्टिकोण बदल गया है ।

ऊ. किसी दिन दीप लगाना भूलने पर, पानी के स्वाद में बदलाव तुरंत ध्यान में आता है ।

ए. मैंने अपनी छोटी बेटी को इसकी आदत डाली है और वह बडे आनंद से सब करती है ।

 

६. पानी के विषय में किए प्रयोग वैज्ञानिक और तार्किक पद्धति से सिद्ध होना

ऐसी पद्धति से पानी पीना प्रारंभ करने पर कायम निरोगी रहने के लिए इसका उत्तम लाभ हो सकेगा । इस लेख को अंधश्रद्धा समझने का प्रश्न नहीं आता; कारण उपरोक्त सर्व सूत्र वैज्ञानिक और तार्किक पद्धति से प्रमाणित हुए हैं । अपने तीर्थक्षेत्र अथवा नदियों के कुंड अथवा मंदिरों में दिया जानेवाला तीर्थ अथवा भोजन से पहले पानी से ५ बार ली जानेवाली अपोष्णी आदि सर्व कुछ हिन्दू संस्कृति द्वारा पुरातन काल से पानी के अमर्याद और जीवित शक्ति के अभ्यास से ही हम तक पानी का महत्त्व और लाभ पहुंचानेके लिए बताए प्रकार हैं । इसका भान रखना, हमारा परम कर्तव्य है । रसोईघर में ही नहीं, जीवन में कोई भी काम बिना पानी के नहीं हो सकता । इसलिए आज से ही पानी की शक्ति जानकर उसका पूरा-पूरा लाभ उठाना प्रारंभ करें ।

– डॉ. गौरी कैवल्य गायकवाड, बार्शी, जिला सोलापुर.

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