१. गुरू द्वारा पत्ते तोडने के लिए कहने पर तुरंत
तोडना और पत्ते वृक्ष को लगाने के लिए कहने पर पुन: लगाना
संत तुकाई (ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराजजी के गुरु) एक बार खेत में बरगद के वृक्ष के नीचे बैठे थे । गणू (ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराजजी) पीछे खडे थे । तुकाईजी ने आज्ञा की, ‘‘अरे इस वृक्ष के पत्ते तोडो । देखूं तो ।’’ तब गणू ने वृक्ष पर चढकर पत्ते तोडे । तुकाईजी ने कुछ पत्ते हाथ में लेकर देखे, तो उन पत्तों से दूध निकल रहा था । उन्होंने चिल्लाकर कहा, ‘‘अरे, अब बस करो ! पत्ते तोडने से वृक्ष को कष्ट होता है । देखो उससे दूध निकल रहा है । अब इन तोडे हुए पत्तों को उनकी अपनी जगह पर लगा दो ।’
आज्ञा पाते ही गणू ने एक-एक पत्ता तोडे गए स्थान पर पुन: लगाना आरंभ किया । कुछ समय में ही सभी पत्ते अपनी जगह पर लग गए । संत तुकाई बोले, ‘‘शाबास ! इसे कहते हैं आज्ञापालन !’’
२. संत तुकाईं की आज्ञा अनुसार कुंड (डोह) में कूद
जाना और पुन: ऊपर आ जाने की आज्ञा होने तक कुंड के तले में ही पडे रहना
एक बार संत तुकाईं ने आज्ञा दी कि ‘कुंड में कूद जाओ’; परंतु ऊपर आने की आज्ञा न देने पर वे वैसे ही पडे रहे । संत तुकाई चिल्लाने लगे । इससे लोग एकत्र हो गए । उन्होंने कुंड में जाल फेंका; परंतु गणू का पता ही नहीं । लोग रोने लगे । यह सब दो-तीन घंटे चलता रहा । अंत में संत तुकाई चिल्लाकर कहा, ‘‘बेटा, अब यदि तू बाहर नहीं आया, तो मैं तालाब में छलांग लगाकर अपने प्राण त्याग दूंगा ।’’ गुरू के शब्द कानों में पडते ही गणू पानी से निकल आया । तुकाई ने उसे अपने गले लगा लिया ।’
– (सद्गुरु) डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (वर्ष १९९१)