१. भगवान दत्तात्रेय का नामजप करें ।
‘आजकल अनेक साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कष्ट हो रहे हैं । पितृपक्ष के काल में (२१ सितंबर से ६ अक्टूबर २०२० की अवधि में) इन कष्टों में वृद्धि होने से इस कालावधि में प्रतिदिन न्यूनतम १ घंटा ‘ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ ॐ’ नामजप करें ।
जो साधक स्वयं को हो रहे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट दूर होने हेतु आध्यात्मिक उपचार करते हैं, वे अपने उपचारों के नामजप के अतिरिक्त न्यूनतम १ घंटा भगवान दत्तात्रेय का नामजप करें । भगवान दत्तात्रेय का नामजप करते समय हाथ की पांचों उंगलियों के अग्र भाग जोडकर अनाहतचक्र और मणिपुरचक्र के स्थान पर न्यास करें ।
जो साधक उपचार नहीं करते, वे अपने व्यक्तिगत कार्य, स्नान, स्वच्छता-सेवा आदि के समय न्यूनतम १ घंटा यह नामजप हो; इसकी ओर ध्यान दें । तब भी पूर्वजों के कष्ट प्रतीत हों, तो वे बैठकर और मुद्रा कर नामजप करें ।
२. पितृपक्ष की अवधि में पूर्वजों के कष्टों से रक्षा
होने हेतु पूरे दिन में बीच-बीच में भगवान दत्तात्रेय से प्रार्थना करें ।
३. जिन साधकों को संभव हो, वे पितृपक्ष में श्राद्धविधि अवश्य करें ।
ऐसा करने से पूर्वजों के कष्ट तो दूर होंगे ही, साथ में साधना के लिए उनके आशीर्वाद भी मिलेंगे ।’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
अनिष्ट शक्तियां : वातावरण में अच्छी और अनिष्ट शक्तियां ये दोनों कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां अच्छे कार्य में मनुष्य की सहायता करती हैं, तो अनिष्ट शक्तियां उसे कष्ट पहुंचाती हैं । वेद-पुराणों में प्राचीन काल में ऋषिमुनियों के यज्ञों में राक्षसों द्वारा विघ्न उत्पन्न करने की अनेक कथाएं मिलती हैं । अथर्ववेद में कई स्थानोंपर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, पिशाच, राक्षस आदि के प्रतिबंध हेतु मंत्र दिए गए हैं । वेदादी धर्मग्रंथों में अनिष्ट शक्तियों के निवारण हेतु विविध आध्यात्मिक उपाय भी बताए गए हैं । |