गोमूत्र की सहायता से जलप्रदूषण पर परिणामकारी उपाय !

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कोल्हापुर के युवा वैज्ञानिकों द्वारा किया गया विशेषतापूर्ण
शोध विश्वस्तर पर ख्यातिप्राप्त ‘नेचर’ नियतकालिक में प्रकाशित !

(प्रतिकात्मक छायाचित्र)
आधुनिकतावादी और नास्तिकतावादी भले कितना भी अस्वीकार करें; परंतु गोमाता का महत्त्व पुनःपुनः रेखांकित होता ही रहेगा ! तथापि विज्ञान के द्वारा गोमूत्र की उपयुक्तता प्रमाणित होकर भी स्वयं को बुद्धिजीवी माननेवाले ये लोग गोमाता का महत्त्व कदापि मान्य नहीं करेंगे, उसके विपरीत ‘विश्वविख्यात नियतकालिक ‘नेचर’ का भी भगवाकरण हुआ है’, ऐसा बोलने से भी वे पीछे नहीं हटेंगे ! – संपादक

कोल्हापुर (महाराष्ट्र) – यहां के शिवाजी विश्वविद्यालय के युवा शोधकर्ता छात्र प्रशांत सावळकर एवं ऋतुजा मांडवक ने देसी गीर गाय के मूत्र की (गोमूत्र की) सहायता से चांदी धातु का विघटन कर उससे रुपहले सूक्ष्म कण (नैनो पार्टिकल्स) तैयार किए हैं । इस शोध से यह बात सामने आई है कि ‘चांदी के यह अरबांश कण (सिल्वर नैनो पार्टिकल्स) वस्रोद्योग से बाहर निकलनेवाले अत्यंत विषैले पानी के शुद्धिकरण के लिए उपयोग किए जा सकते हैं । ‘सिल्वर नैनो पार्टिकल्स’ एवं अतिनील किरणों के जैवरासायिनक अभिक्रिया का उपयोग कर वस्त्रोद्योग में उपयोग किए जानेवाले और जलप्रदूषण करनेवाले घातक रंगों और रासायनिक पदार्थाें (‘मिथिलिन’ एवं ‘क्रिस्टल’) का सहजता से विघटन किया जा सकता है । इस शोध से यह भी बात सामने आई है कि ‘१ लिटर प्रदूषित पानी को शुद्ध करने हेतु केवल ०.१ ग्रैम तरल पदार्थ पर्याप्त है । इस शोध के कारण अब वस्त्रोद्योग के कारण नदियों, सरोवरों आदि के बडी मात्रा में होनेवाले प्रदूषण पर रोक लगाई जा सकती है ।

१. यह शोध २० अगस्त २०२१ को लंडन के विश्वविख्यात नियतकालिक ‘नेचर’ में प्रकाशित हुआ है ।

२. भारतीय प्राचीन परंपरा प्राप्त आयुर्वेद में चांदी के अरबांश कणों का अत्यंत प्रभावशाली रूप से किया गया है । आयुर्वेद में चांदी के सूक्ष्म कणों को ‘रौप्यभस्म’ के रूप में जाना जाता है ।

३. इन छात्रों ने बताया कि इस शोधकार्य के लिए शिवाजी विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलगुरु डॉ. पी.एस्. पाटिल, डॉ. गणेश कांबळे एवं ‘नैनो साइन्स’ विभागप्रमुख डॉ. किरणकुमार शर्मा से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ ।

४. यह शोध‘नेचर’ नियतकालिक के जालस्थल पर निम्न मार्गिका पर पढा जा सकता है – https://www.nature.com/articles/s41598-021-96335-2

५. इन शोधकर्ताओं ने उनके शोधनिबंद के द्वारा यह स्पष्ट किया कि गीर गाय जैसी भारतीय गाय के मूत्र में अनेक रोगों को स्वस्थ करने का सामर्थ्य, साथ ही प्रदूषण पर नियंत्रण प्राप्त करने की क्षमता है; परंतु संकर गायों के मूत्र में यह क्षमता नहीं है । (इससे भारतीय गोमाता का वैज्ञानिक महत्त्व रेखांकित होता है । इसे देखते हुए अब तो केंद्र सरकार गाय को ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित करे, साथ ही उसके संरक्षण हेतु देशव्यापी गोहत्या प्रतिबंधक कानून बनाकर उसकी कठोर कार्यवाही करे, ऐसा ही हिन्दुओं को लगता है ! – संपादक)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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