हमें होनेवाली बहुतांश बीमारी, ये शरीर के त्रिदोषों की असंतुलन के कारण होती हैं । कई बार आहार का संतुलन बिगडने में रिफाईंड तेल कारणीभूत होते हैं । रिफाईंड तेल निर्माण करने के लिए ‘गैसोलिन’, ‘सिंथेटिक’, ‘एंटीऑक्सिडंट’, आदि प्रकार के रसायन उपयोग में लाए जाते हैं । ‘रिफाईंड’ तेल की कोई गंध नहीं आती; इसलिए उसमें एक भी प्रकार का जीवनसत्त्व शेष नहीं रहता । उसमें चिपचिपापन भी नष्ट हो गया होता है; कारण उसमें विद्यमान ‘फैटी एसिड’ पहले ही बाहर निकाल लिया जाता है, साथ ही इस तेल में ‘विटामिन ई’ एवं ‘मिनरल्स’ भी नहीं होते । ‘रिफाईंड’ तेल मानवी शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होता है । इसके साथ ही उसमें मानवी शरीर के लिए घातक घटक होते हैं । ‘रिफाईंड’ तेल के कारण मानवी शरीर में ‘एल.डी.एल.’ नामक घातक घटक निर्माण होता है । इससे मानवी शरीर में ‘ब्लॉकेजेस’ निर्माण होकर हृदयविकार जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पडता है । ‘रिफाईंड’ तेल पहली बार ३०० एवं दूसरी बार ४६४ डिग्री सेल्सियस पर उबाला जाता है । इसलिए वह अधिक विषैला बन जाता है ।
इसके विपरीत लकडी के कोल्हू का तेल अत्यंत शुद्ध, रसायनविरहित एवं आरोग्य के लिए हितकारक होता है, इसके साथ ही वह प्राकृतिक एवं शास्त्रोक्त पद्धति से निर्माण किया जाता है । उसे शुद्ध तेल की गंध आती है और वह चिपचिपा भी होता है; कारण उसमें ४-५ प्रकार के जीवनसत्त्व होते हैं । लकडी के कोल्हू से तेल निकालने में अत्यल्प घर्षण होने से उसमें से एक भी प्राकृतिक घटक नष्ट नहीं होता । इसके साथ ही तेल निकालते समय उसका तापमान ४० से ४५ डिग्री सेल्सियस होने से उसके प्राकृतिक घटक नष्ट नहीं होते । इसलिए शरीर के लिए आवश्यक ‘हायडेन्सिटी लिप्रोप्रोटीन’ यह घटक अपने यकृत (लीवर) में निर्माण होता है । शुद्ध तेल के कारण वात दोष संतुलित रहता है । जिससे वात के प्रकोप से होनेवाली बीमारियां नहीं होतीं । मधुमेह, उच्च रक्तदाब, सांधेदुखी, अर्धांगवायु जैसी गंभीर बीमारियां लकडी कोल्हू के तेल के लिए गुणकारी हैं । सैकडों वर्षाें से अपने पूर्वज लकडी कोल्हू का तेल उपयोग में लाते थे, इसलिए वे निरोगी एवं दीर्घायुषी थे । अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए लकडी के कोल्हू के तेल का उपयोग करके दीर्घायुष्यी जीवन का समतोल साधेंगे !