प.पू. (परम पूज्य) डॉक्टरजी ने अपना जन्मदिन इसके पहले कभी मनाया नहीं था; परंतु महर्षियों की आज्ञानुसार पिछले वर्ष उनका जन्मदिन १०.५.२०१५ को मनाया गया । साधकों को इससे हुआ आनंद शब्दातीत है । इस समारोह का वर्णन सुनकर, समारोह देखनेवाले तथा कुछ कारणवश न देख पानेवालों में साधना में आने के पश्चात पहली बार ही ऐसी भावजागृति हुई होगी ।
प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिखित गुरुकृपायोगानुसार साधना, इस ग्रंथ में गुरु के विविध प्रकार प्रतिपादित किए हैं । गुरु के प्रकार और प.पू. डॉक्टरजी, इस भाव से यह ग्रंथ कभी पढा नहीं था; परंतु इस बार अकस्मात ऐसा भाव रखकर पढनेका प्रयत्न करने पर ध्यान में आया कि, ग्रंथ में वर्णित गुरु के सर्व रूप प.पू. डॉक्टरजी में समाहित हैं । आगे दिए अनुसार यह विषय शब्दबद्ध करने का प्रयत्न इस लेख में किया है ।
१. कुलागमानुसार गुरु के प्रकार
१ अ. प्रेरक गुरु
ये साधक के मन में दीक्षा का रोपण करते (बीज बोते) हैं । प.पू. डॉक्टरजी ने अपनी साधना के आरंभकाल में ही अनेक स्थानों पर स्वयं अकेले ही प्रसार कर प्रवचनों द्वारा अध्यात्मप्रसार किया और जिज्ञासुआें के मन में दीक्षा का रोपण किया (बीज बोया) ।
१ आ. सूचक गुरु
ये साधना और दीक्षा का वर्णन करते हैं । अपने प्रवचनों में प.पू. डॉक्टरजी ने अध्यात्मशास्त्र सरल भाषा में बताया और श्रोताआें के मन में उसके प्रति रुचि उत्पन्न की ।
१ इ. शोधक गुरु
ये साधक का वर्णन करते हैं । प्रवचनों के माध्यम से प.पू. डॉक्टरजी ने साधना करनेवाले व्यक्तियों को ढूंढकर उन्हें आगे की साधना के लिए मार्गदर्शन करना आरंभ किया ।
१ ई. दर्शक गुरु
ये साधना और दीक्षा में उचित-अनुचित बताते हैं । साधना का निश्चित अर्थ क्या है ?, साधना और दीक्षा में समन्वय कैसे साध्य करें ?, इसमें कितने घटक अंतर्भूत हैं ? और कठिन होने पर भी कलियुग में साधना करना कालानुरूप क्यों आवश्यक है ? यह प.पू. डॉक्टरजी ने श्रोताआें के मन पर अंकित किया ।
१ उ. बोधक गुरु
ये साधना और दीक्षा का सैद्धांतिक विवेचन करते हैं । प.पू. डॉक्टरजी ने अध्यात्म का महत्त्व प्रतिपादित करनेवाले साधना संबंधी अध्यात्म, गुरुकृपायोगानुसार साधना, अध्यात्म का प्रस्तावनात्मक विवेचन तथा देवताआें के प्रति श्रद्धा बढानेवाले कुछ लघुग्रंथों का संकलन किया और जिन लोगों तक वे प्रत्यक्ष पहुंच नहीं पाए, उन लोगों तक इस माध्यम से अध्यात्म पहुंचाया ।
१ ऊ. शिक्षक गुरु
ये साधना सिखाकर दीक्षा देते हैं । कुछ समय पश्चात सनातन के कुछ साधक सिद्ध होने पर उन्होंने अभ्यासवर्गों के माध्यम से अध्यात्म संबंधी शंकाआें का समाधान करना प्रारंभ किया । साधना के आरंभकाल में उन्होंने प.पू. भक्तराज महाराज के कृपाशीर्वाद से इस गुरुरूप में जिज्ञासुआें तथा साधकों का मार्गदर्शन किया ।
२. प.पू. डॉक्टरजी, साधना में सर्व प्रकार की
सहायता कर, साधकों से साधना करवानेवाले उत्तम गुरु हैं !
कालानुरूप सर्व साधक प.पू. डॉक्टरजी में विद्यमान गुरु के रूप को समझने लगे हैं । कनिष्ठ गुरु, मध्यम गुरु और उत्तम गुरु, गुरु के इन तीन प्रकारों में से प.पू. डॉक्टरजी उत्तम गुरु हैं । उत्तम गुरु की परिभाषा यह है कि यदि साधक (शिष्य) साधना की ओर ठीक से ध्यान नहीं देता होगा, तो वे साधकों की सर्व प्रकार से सहायता कर, आवश्यक होने पर दंड देकर भी साधकों से साधना करवा लेते हैं । यहां बल का प्रयोग स्थूल माध्यम से नहीं, अपितु सूक्ष्म से किया जाता है; परंतु साधक की साधना में हानि न हो, इसलिए प.पू. डॉक्टरजी दंड पद्धति अपनाकर भी साधकों की साधना का ध्यान रखते हैं । ऐसा करने में उनका उद्देश्य होता है कि सनातन का प्रत्येक साधक साधना में शीघ्र गति से आगे बढे ।
३. नामचिंतामणि के अनुसार
नामचिंतामणि में गुरु के बारह प्रकार बताए हैं ।
३ अ. धातुवादी गुरु
ये शिष्य से तीर्थाटन और विविध प्रकार की साधना करवाकर अंत में ज्ञानोपदेश देते हैं। प.पू. डॉक्टरजी सनातन के कुछ संतों और साधकों को तीर्थाटन के लिए भेजकर उनसे साधना करवा रहे हैं । पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळ और उनके साथ के अन्य साधक वर्तमान में यही साधना कर रहे हैं ।
३ आ. चंदन गुरु
जिनके केवल सान्निध्य से ही जीवन सुगंधित होता है, वेे चंदनगुरु होते हैं । चंदनवृक्ष जिस प्रकार उसके समीप के सामान्य वृक्षों को भी सुगंधित बनाता है, उसी प्रकार केवल अपने सान्निध्य से शिष्य को पार कराते हैं, चंदनगुरु । चंदन स्वयं घिसकर दूसरों को सुगंध देता है, उसी प्रकार ऐसे गुरु प्रभुकार्य के लिए अपनेआप को कष्ट देकर संसार में सुगंध फैलाते हैं । ऐसे गुरु वाणी द्वारा नहीं, अपितु अपने आचरण से उपदेश देते हैं । प.पू. डॉक्टरजी के सान्निध्य में आनेवाला प्रत्येक व्यक्ति इसकी अनुभूति लेता है । अपनी देह को आत्यंतिक कष्ट देकर प्रत्येक कृत्य साधना समझकर कैसे करना चाहिए ?, इसका आदर्श वे प्रत्यक्ष आचरण द्वारा साधकों के सामने रख रहे हैं । उन्हीं की कृपा से सनातन के ५८ साधक संतपद पर विराजित हुए हैं और अन्य साधक उस दिशा में अग्रसर हो रहे हैं । समाज के धर्मप्रेमियों की भी इसी गति से प्रगति हो रही है । प.पू. डॉक्टरजी की देह और उनकी किसी भी वस्तु से जिस प्रकार सुगंध आती है, वैसी ही अंशात्मक सुगंध अनेक साधकों की देह और वस्तुआें से आ रही है । क्या उनके चंदन गुरु होने के ये लक्षण नहीं ?
३ इ. विचार गुरु
ये शिष्य को सारासार विवेक सिखाकर पिपीलिका (चींटी) मार्ग से आत्मदर्शन करवाते हैं । प.पू. डॉक्टरजी ने मोक्षप्राप्ति के पिपीलिका (चींटी) मार्ग की अपेक्षा अध्यात्म में शीघ्र प्रगति करानेवाला गुरुकृपायोगानुसार साधना, यह विहंगम मार्ग खोजकर उसके अनुसार केवल सभी साधकों को ही नहीं, अपितु धर्माभिमानी हिन्दुत्वनिष्ठों को भी आत्मदर्शन का मार्ग दिखाया है ।
३ ई. अनुग्रह गुरु
ये केवल कृपानुग्रह द्वारा शिष्य को ज्ञान देते हैं । किसी को भी अपना अनुग्रह लेने का आग्रह किए बिना केवल साधकों की साधना हो, इसलिए प.पू. डॉक्टरजी विविध सेेवाआें के माध्यम से साधकों से साधना करवा रहे हैं । इस हेतु समाज में धर्मप्रसार करने की सेवा से लेकर आश्रम के प्रसाधनगृह की स्वच्छता तक की सेवाआें द्वारा अध्यात्म में किस प्रकार प्रगति हो सकती है, यह प्रत्यक्ष कर्म द्वारा दिखा रहे हैं ।
३ उ. स्पर्श / पारस गुरु
पारस जिस प्रकार केवल स्पर्श से लोहे को स्वर्ण बना देता है, उस प्रकार ये साधक को दिव्य ज्ञान देते हैं । साधकों को स्पर्श किए बिना ही उन्हें दिव्य ज्ञान देनेवाले प.पू. डॉक्टरजी महान गुरु हैं !
३ ऊ. कूर्म / कच्छप गुरु
मादा-कछुआ जिस प्रकार केवल दृष्टि से बच्चों का पोषण करती है, उसी प्रकार ये गुरु केवल कृपावलोकन से शिष्य का उद्धार करते हैं । प.पू. डॉक्टरजी रामनाथी आश्रम के एक साधारण कक्ष में रहकर सनातन के सर्वत्र के साधकों के कष्ट केवल सूक्ष्मदृष्टि से स्वयं पर लेकर उनकी रक्षा कर रहे हैं ।
३ ए. चंद्र गुरु
चंद्रोदय होते ही चंद्रकांत मणि रिसने लगती है । उसी प्रकार ये गुरु केवल मृदु अंतःकरण द्वारा शिष्य को पार कराते हैं । प.पू. डॉक्टरजी सर्व साधकों को उनके अपराधों के लिए क्षमा कर उन्हें साधना का बार-बार अवसर देकर साधना के लिए प्रेरित करते हैं ।
३ ऐ. दर्पण गुरु
दर्पण में अपना मुख दिखता है । उसी प्रकार ये गुरु केवल आत्मदर्शन से शिष्य को ब्रह्म की प्राप्ति करवाते हैं । ऐसे कई साधक हैं, जिन्होंने प.पू. डॉक्टरजी को देखा नहीं है । केवल उनका छायाचित्र ही उनका दर्पण है और इसी बल पर अनेक साधक एवं धर्माभिमानी साधना कर साधना में अग्रसर हो रहे हैं ।
३ ओ. छायानिधि गुरु
छायानिधि नाम का एक विशाल पक्षी आकाश में विचरण करता है । ऐसी धारणा है कि जिस पर उसकी छाया पडती है, वह राजा बन जाता है । इसी प्रकार ये गुरु साधक को केवल अपनी छत्रछाया में लेकर उसे स्वरूपानंद के साम्राज्य का अधिपति बना देते हैं । प.पू. डॉक्टरजी केवल सनातन के साधकों को ही नहीं, अपितु अनेक हिन्दू धर्माभिमानियों से भी एक बार मिलकर ही अपना बनाकर उन्हें स्वरूपानंद के साम्राज्य के अधिपति बना रहे हैं ।
३ औ. नादनिधि गुरु
ऐसी धारणा है कि नादनिधि नामक मणि जिस धातु को स्पर्श करती है, वह धातु तत्क्षण स्वर्ण बन जाती है । इसके अनुसार मुमुक्षु की करुण वाणी सुनते ही उसे वहीं पर दिव्यज्ञान देते हैं, नादनिधि गुरु । जो मुमुक्षु प.पू. डॉक्टरजी की मधुर वाणी प्रत्यक्ष में अथवा दृश्य-श्रव्यचक्रिका द्वारा सुनता है, वह साधना के लिए प्रवृत्त होकर साधना आरंभ करता है ।
३ अं. क्रौंच गुरु
मादा क्रौंच पक्षी अपने बच्चों को समुद्रतट पर रखकर दूरतक चारा लाने जाती है । ऐसी एक धारणा है कि मार्ग में वह बच्चों का बार बार स्मरण करती है इससे उनकी भूख शांत होती है । यदि कोई भी प.पू. डॉक्टरजी को समस्या के बारे में संपर्क करने का प्रयत्न करता है, तो वे त्वरित उसे उसकी समस्या पर उपाय बताकर चिंतामुक्त करते हैं ।
३ क. सूर्यकांत गुरु
जैसे सूर्य के किरणों से सूर्यकांत मणि में अग्नि उत्पन्न होती है । वैसे सूर्यकांत गुरू की दृष्टि से साधकों को विदेहत्व प्राप्त होता है । प.पू. डॉक्टरजी से प्रक्षेपित सूक्ष्म चैतन्य की किरणों से साधकों को साधना की उचित दिशा प्राप्त होती है । संघर्षमय प्रसंग में प.पू. डॉक्टरजी के स्मरण मात्र से ही वे उनकी सहायता के लिए सूक्ष्म से दौडे जाते हैं ।
४. पिश्चिलातंत्रानुसार गुरु के प्रकार
४ अ. दीक्षा गुरु
पूर्वपरंपरा से प्राप्त मंत्रों से दीक्षा देनेवाले दीक्षा गुरु हैं । प.पू. डॉक्टरजी ने किसी को भी गुरुमंत्र नहीं दिया, वे साधकों को केवल नामदीक्षा दे रहे हैं ।
४ आ. शिक्षा गुरु
समाधि, ध्यान, धारणा, जप, कवच, पुरश्चरण, महापुरश्चरण और साधना की विभिन्न विधियां एवं योग आदि सिखाने वाले शिक्षा गुरु होते हैं । प.पू. डॉक्टरजी ने गुुरुकृपायोगानुसार साधना में साधना के लिए आवश्यक सर्व घटक अंतर्भूत कर इन सभी के लिए जो समय देना पडता है, उसे बचाया है ।
५. अन्य प्रकार
५ अ. पृच्छक गुरु
ये स्वयं ही शिष्य को प्रश्न पूछकर योग्य उत्तरों के संकेतों अथवा सूचनाआें द्वारा उसे जीवन के यथार्थ मार्ग की ओर उन्मुख करते हैं । जिज्ञासु ही ज्ञान का खरा अधिकारी है, यह शिक्षा प.पू. डॉक्टरजी ने साधकों को साधना आरंभ करने के क्षण से दी है ।
५ आ. दोषविसर्जक गुरु
इन्हें शिष्य आत्मीयभाव से बिनासंकोच अपने दोष बताता है । साधकों को स्वभावदोष और अहं निर्मूलन प्रक्रिया बताकर उनसे वह प्रभावीरूप से करवाने का प.पू. डॉक्टरजी का संकल्प हुआ है । इसलिए कोई भी साधक अपनी चूकें अथवा समस्या खुले मन से उन्हें अथवा उत्तरदायी साधकों को बता सकता है ।
५ इ. गुण गुरु
साधना के लिए सहायक ऐसा प्रत्येक में अंतर्भूत गुण ग्रहण कर भगवान दत्तात्रेय ने जो २४ गुरु किए, उन्हें गुण गुरु कहते हैं । प.पू. डॉक्टरजी ने भी साधकों को निरंतर सिखने की स्थिति में रहने की शिक्षा दी है । गुरुआें के उपर्युक्त प्रकारों में से प्रत्येक रूप प.पू. डॉक्टरजी में है ।
६. सनातन के साधक प.पू. डॉक्टरजी को आगे दिए रूपों में भी देखते हैं ।
६ अ. भाव गुरु
साधक के मन में जहां भाव, वहां ईश्वर, यह सूत्र अंकित कर भाव बढाने के लिए वे निरंतर मार्गदर्शन करते रहते हैं ।
६ आ. सगुण-निर्गुण गुरु
आश्रम में रहनेवाले साधकों को वे कभी-कभी सगुण रूप में दिखाई देते हैं, तो अन्यत्र के साधकों को उनके बारे में निर्गुण रूप की अनुभूतियां होती हैं ।
६ इ. समष्टि गुरु
साधक एवं समाज के धर्माभिमानियों को केवल व्यष्टि साधना तक ही सीमित न कर, उन्हें समष्टि साधना संबंधी मार्गदर्शन कर प.पू. डॉक्टरजी उनसे समष्टि साधना करवा ले रहे हैं ।
६ ई. राष्ट्ररक्षक गुरु
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की लगन से साधकों तथा धर्माभिमानियों को वे प्रत्येक पग उस दिशा में उठाने के लिए मार्गदर्शन करते रहते हैं ।
६ उ. धर्मरक्षक गुरु
हिन्दू धर्म की ग्लानि दूर करने के लिए ग्रंथ, नियतकालिकों के माध्यम से वे निरंतर मागदर्शन करते रहते हैं ।
६ ऊ. मोक्ष गुरु
प्रत्येक साधक को मोक्षप्राप्ति हो, ऐसा ही मार्गदर्शन वे करते रहते हैं ।
इसीलिए विविध प्रकार के गुरुआें के सर्व गुणों से संपन्न प.पू. डॉक्टरजी को महर्षि ने श्रीविष्णु का अवतार घोषित किया है । अवतारत्व से युक्त गुरु इस जन्म में मिले, यह सनातन के साधकों का परम सौभाग्य है । ईश्वर के चरणों में कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करेंगे, वह अल्प ही होगी ।
– (पू.) श्री. अशोक पात्रीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.