अनुक्रमणिका
१. नागपंचमी
तिथि
श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी
इतिहास
सर्पयज्ञ करनेवाले जनमेजय राजाको आस्तिक नामक ऋषिने प्रसन्न कर लिया था । जनमेजयने जब उनसे वर मांगनेके लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकनेका वर मांगा एवं जिस दिन जनमेजयने सर्पयज्ञ रोका, उस दिन पंचमी थी ।
नागकी महिमा
१. ‘शेषनाग अपने फन पर पृथ्वी को धारण करते हैं । वे पाताल में रहते हैं । उनके सहस्र फन हैं । प्रत्येक फन पर एक हीरा है । उनकी उत्पत्ति श्रीविष्णु के तमोगुण से हुई । श्रीविष्णु प्रत्येक कल्प के अंत में महासागर में शेषासन पर शयन करते हैं । त्रेता एवं द्वापर युगों के संधिकाल में श्रीविष्णु ने राम-अवतार धारण किया । तब शेष ने लक्ष्मण का अवतार लिया । द्वापर एवं कलियुग के संधिकाल में श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया । उस समय शेष बलराम बने ।
२. श्रीकृष्ण ने यमुना की गर्त में कालिया नाग का मर्दन किया । वह तिथि थी श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी ।
३. ‘नागों में श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं’, इस प्रकार श्रीकृष्ण ने गीता (अध्याय १०, श्लोक २९) में अपनी विभूति का कथन किया है ।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं, कालियं तथा ॥
अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना करते हैं । इससे सर्पभय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती ।’ (४)
पूजन
नागपंचमी के दिन हलदी से अथवा रक्तचंदन से एक पीढे पर नवनागों की आकृतियां बनाते हैं एवं उनकी पूजा कर दूध एवं खीलों का नैवेद्य चढाते हैं । नवनाग पवित्रकों के नौ प्रमुख समूह हैं । पवित्रक अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म दैवी कण (चैतन्यक) ।
भावार्थ
‘विश्व के सर्व जीवजंतु विश्व के कार्य हेतु पूरक हैं । नागपंचमी पर नागों की पूजा द्वारा यह विशाल दृष्टिकोण सीखना होता है कि ‘भगवान उनके द्वारा कार्य कर रहे हैं ।’ – प.पू. परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
निषेध
नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमिखनन न करें ।
२. श्रावण पूर्णिमा (नारियल पूर्णिमा)
समुद्रपूजन
श्रावण पूर्णिमा पर समुद्र के किनारे रहनेवाले लोग वरुणदेव हेतु समुद्रकी पूजा कर, उसे नारियल अर्पण करते हैं । इस दिन अर्पित नारियल का पल शुभसूचक होता है एवं सृजनशक्ति का भी प्रतीक माना जाता है ।
नदीसे संगम एवं संगमकी अपेक्षा सागर अधिक पवित्र है । ‘सागरे सर्व तीर्थानि’ ऐसी कहावत है, अर्थात सागरमें सर्व तीर्थ हैं । सागर की पूजा अर्थात वरुणदेव की पूजा । जहाज द्वारा माल परिवहन करते समय वरुणदेव को प्रसन्न करने पर वे ही सहायता करते हैं ।
३. रक्षा (राखी) बंधन
इतिहास
अ. पाताल के बली राजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।
आ. भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था । इतिहासकाल से राखी की एक नई पद्धति आरंभ हुई ।
भावनिक महत्त्व
यह राखी बहन द्वारा भाई के हाथ पर बांधी जानी चाहिए एवं उसके पीछे यह भूमिका होती है कि ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन का संरक्षण करे ।’ बहन भाई को राखी बांधे, इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है कोई युवती / स्त्री किसी युवक / पुरुष को राखी बांधे । इस कारण उनका, विशेषतः युवकों एवं पुरुषों का युवती अथवा स्त्री की ओर देखने की उनकी दृष्टि में परिवर्तन होता है ।
राखी बांधना
चावल, स्वर्ण एवं श्वेत सरसों को छोटी पोटली में एकत्रित बांधने से रक्षा अर्थात राखी बनती है ।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
अर्थ : महाबली एवं दानवेंद्र बली राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षा से मैं तुम्हें भी बांधता हूं । हे राखी, तुम अडिग रहना ।
प्रार्थना करना
बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन के रक्षण हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म के रक्षण हेतु हमसे प्रयत्न होने दीजिए’ ।
राखी के माध्यम से होनेवाला देवताओं का अनादर रोकिए !
आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के छायाचित्र होते हैं । राखी का उपयोग करने के उपरांत वे अस्त-व्यस्त पडे हुए मिलते हैं । यह एक प्रकार से देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससे पाप लगता है । इससे बचने के लिए राखी को जल में विसर्जित कर देना चाहिए !
४. श्रावणी (उपकर्म एवं उपाकरण)
तिथि
‘श्रावण की पूर्णिमा पर ही श्रवण नक्षत्र हो, तो यह वैदिक विधि की जाती है ।
महत्त्व
लंबा अनध्याय (छुट्टी) समाप्त कर पुनः अध्ययन-अध्यापन आरंभ करने की विधि है श्रावणी ।
विधि करने की पद्धति
श्रावण पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र हो, तो ऋग्वेदी लोगों को उस दिन अथवा नागपंचमी के दिन हस्त नक्षत्र पर, यजुर्वेदियों को श्रावण पूर्णिमा पर, सामवेदियों को भाद्रपद के हस्त नक्षत्र पर तथा अथर्ववेदियों को श्रावण अथवा भाद्रपद पूर्णिमा पर यह विधि करनी चाहिए । श्रावणी की प्रथा अतिप्राचीन है एवं त्रैवर्णियों के लिए योग्य है; पिर भी सांप्रत ब्राह्मणों में ही वह कुछ अंश तक रूढ है । विभिन्न वेदों के लोगों को अपने-अपने गृह्यसूत्रों के अनुसार श्रावणी करनी पडती है एवं इस विधि को सामान्यतः सामुदायिक पद्धति से करते हैं ।’ (६)
५. श्रावणी सोमवार एवं शिवमुष्टिव्रत
श्रावणी सोमवार (शंकर व्रत)
श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार शंकर के मंदिर जाकर उनकी पूजा करें और संभव हो, तो निराहार उपवास रखें अथवा नक्त व्रत रखें । इससे शंकर के प्रसन्न होने पर शिवसायुज्य मुक्ति मिलती है, ऐसा समझा जाता है ।
श्रावणी सोमवार का व्रत कितने वर्ष करेंगे, यह व्रत का आरंभ करते समय निर्धारित करना होता है । वह अवधि पूर्ण होने पर श्रावण मास के अंतिम सोमवार को इस व्रत का उद्यापन करने का विधान है । इस व्रत का उद्यापन देवता का पूजन, धर्मशास्त्र में बताए अनुसार दान और हवन से करना होता है । – वेदमूर्ति केतन रविकांत शहाणे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
१६ सोमवार व्रत को संकट सोमवार व्रत भी कहते हैं । जिन युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा है, उन्हें भी १६ सोमवार का व्रत करना चाहिए ।
शिवमुष्टिव्रत
महाराष्ट्र में विवाह के उपरांत पहले पांच वर्ष क्रम से ये व्रत किए जाते हैं । इसमें श्रावण के प्रत्येक सोमवार एकभुक्त रहकर शिवलिंग की पूजा करें और चावल, तिल, मूंग, जौ और सत्तू, (पांचवां सोमवार आए तो उस दिन) ये धान्य पांच मुट्ठीभर देवता पर चढाने की विधि है ।
६. मंगलागौरी
‘मंगलागौरी’ सौभाग्यदात्री देवता है । इस देवता की पूजा करना नवविवाहित लडकियों का व्रत है । विवाह के उपरांत पांच से सात वर्ष तक श्रावण के प्रत्येक मंगलवार को यह व्रत रखना चाहिए । इस व्रत में शिव एवं श्री गणपति के साथ गौरी की पूजा करनी चाहिए ।
७. जरा-जीवंतिका पूजन
यह व्रत श्रावण मास के प्रत्येक शुक्रवार को रखते हैं । जीवंतिका उपनाम जिवती इस व्रत की देवी हैं । यह छोटे बच्चों का संरक्षण करती है । पहले शुक्रवार को दीवार पर चंदन से जिवती का चित्र बनाकर उसकी पूजा करते हैं । आजकल छपे हुए चित्र की पूजा करते हैं ।
८. हरियाली (पिठोरी अमावस्या, दीपपूजा)
श्रावण मास की अमावस अर्थात हरियाली (अथवा पिठोरी) अमावस होती है । संततिप्राप्ति के लिए स्त्रियों को यह व्रत रखना चाहिए ।
मान्यता है कि हरियाली तीज के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया था । इस दिन स्त्रियां माता पार्वती जी और भगवान शिव जी की पूजा करती हैं ।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं । उत्तर भारत में यह हरियाली तीज के नाम से भी जानी जाती है । तीज का त्योहार मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है । श्रावण शुक्ल तृतीया (तीज) के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं । इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है ।
विधि
इस दिन महिलाएं निर्जल रहकर व्रत करती है । इस दिन भगवान शंकर-पार्वती का बालू की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है । अपने घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाया जाता है, एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सखी की आकृति (प्रतिमा) बनाएं । प्रतिमाएं बनाते समय भगवान का स्मरण करें । देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन करें । इस व्रत का पूजन रात्रि भर चलता है । इस दौरान महिलाएं जागरण करती हैं, और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं । इस दिन झूला-झूलने का भी रिवाज है ।
९. हरितालिका
तिथि
भाद्रपद शुक्ल तृतीया
इतिहास एवं उद्देश्य
पार्वती ने यह व्रत रखकर शिव को प्राप्त किया था । इसलिए इच्छानुसार वर मिलने के लिए, उसी प्रकार अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए स्त्रियां यह व्रत रखती हैं ।
व्रत करने की पद्धति
प्रातःकाल मंगलस्नान कर पार्वती एवं उसकी सखी की मूर्ति लाकर शिवलिंग (मूर्ति) सहित उनकी पूजा की जाती है । रात को जागरण करते हैं और अगले दिन उत्तरपूजा (समापन पूजा) कर लिंग या मूर्ति विसर्जित करते हैं ।