पिछले अनेक वर्षों से सनातन संस्था बता रही है कि आपातकाल अब दरवाजे तक पहुंच गया है और वह कभी भी भीतर प्रवेश कर सकता है । पिछले पूरे वर्ष से चल रहा कोरोना महामारी का संकट आपातकाल की ही एक छोटी सी झलक है । प्रत्यक्ष आपातकाल इससे अनेक गुना भयानक और अमानुषिक होगा, उसके विविध रूप होंगे । इसमें मानव निर्मित तथा प्राकृतिक प्रकरण होंगे । इनमें से कुछ की जानकारी हम इस लेखमाला में देखेंगे । इस आपातकाल में स्वयं का तथा परिवार का बचाव करने के लिए हम क्या कर सकते हैं, इस लेखमाला में इसकी थोडी-बहुत जानकारी देने का प्रयास किया गया है । पाठक उसका लाभ लें, यह लेखमाला प्रकाशित करने का यही उद्देश्य है । आगे तीसरे विश्वयुद्ध के समय अणुबम का आक्रमण होना मानकर ही चलना पडेगा । अणुबम अर्थात क्या ?, उसकी तीव्रता कैसी होती है ?, उसका परिणाम और उससे बचने का प्रयास कैसे करें ?, इसकी जानकारी आज के लेख में दे रहे हैं ।
१. तीसरे विश्वयुद्ध के प्रकार और उनका सामना करने के उपाय
अ. बम फेंकना
१. ‘अणुबम’
‘अणुबम’ में युरेनियम अथवा प्लुटोनियम के अणु विच्छेदीकरण से ऊर्जा उत्पन्न होने के लिए अणु के केंद्र में ‘न्यूट्रॉन’ से प्रहार किया जाता है । इससे थोडी मात्रा में ऊर्जा निर्मित होती है । इस प्रक्रिया को ‘नाभिकीय विखंडन’ (न्यूक्लीयर फिशन) कहते हैं । अणुबम विमान अथवा क्षेपणास्त्र द्वारा डाला जाता है ।’ (संदर्भ : माई कैरियर, जालस्थल)
१ अ १. अणुबम के विस्फोट का स्वरूप
अ. अणुबम गिरता है, तब क्या होता है ?
१. जब भूमि के निकट अणुबम का विस्फोट होता है, तब वह ०.१ मिलीसेकेंड से भी अल्प समय टिकता है । तब ३० मीटर व्यास का और ३ लक्ष अंश सेल्सियस उष्णता की आग की लपटें उत्पन्न होती हैं । यह उष्णता सूर्य की उष्णता से ५० गुना होती है । इस लपट का रूपांतर चमकीली वायु में होता है । उसे ‘फायरबॉल’ कहते हैं । वह विकिरण पदार्थ उत्सर्जित करता रहता है ।
२. इस ‘फायरबॉल’ का आकार केवल २ सेकेंड में २ कि.मी. की गति से बढता है । इस समय हवा से भूमि पर उत्पन्न हुए दबाव के कारण कंपन तरंगों की (‘शॉक वेव्ज’ की) निर्मिति होती है ।
३. कंपन तरंगों की गति ध्वनि की गति से अधिक होती है । इससे विस्फोट हुए भूपृष्ठ पर प्रति घंटा १ सहस्र ६०० कि.मी. गति से हवा चलने लगती है ।
४. कंपन तरंगों के कारण ऊपर फेंका गया ‘फायरबॉल’ ३० से ३५ सेकेंड में कुकुरमुत्ते के आकार का हो जाता है । उसे ‘मशरूम क्लाउड’ कहते हैं । ‘फायरबॉल’ के साथ ऊपर गई हुई भूमि के ऊपर की वस्तुएं, जैसे मिट्टी, धूल इत्यादि पदार्थ किरणोत्सर्ग से दूषित होकर नीचे गिरने लगते हैं । इस किरणोत्सर्गी धूल को ‘फॉलआउट’ कहते हैं । यह धूल हवा के साथ बहने के कारण अनेक चौरस कि.मी. के प्रदेश में गिर सकती है । यह ‘फॉलआउट’ भूमि पर आने की अवधि २ मिनट से २४ घंटे तक भी हो सकती है । स्वयं की रक्षा के लिए इस ‘फॉलआउट’ की अवधि का उपयोग किया जा सकता है ।
आ. अणुबम की दाहकता जिस पर निर्भर है ऐसे घटक
अणुबम का आकार, विस्फोट कितनी ऊंचाई पर होता है, विस्फोट का समय, विस्फोट के समय का वातावरण आदि पर उसकी दाहकता निर्भर रहती है । उदा. १ मेगाटन विस्फोट में आग की लपट का व्यास २.२ कि.मी. (१० मेगाटन – व्यास ५.५ कि.मी., २० मेगाटन – व्यास ७.४ कि.मी.) हो सकता है
इ. अणुबम विस्फोट के प्रकार
अणुबम के विस्फोट निम्न ४ प्रकार से किए जाते हैं ।
१. भूमि से १ लाख फुट ऊपर आकाश में
२. भूमि पर अथवा भूमि के बहुत निकट
३. भूमिगत
४. पानी के नीचे
ई. अणुबम के विस्फोट के दुष्परिणाम
१. वातावरण में होनेवाले दुष्परिणाम
अ. अणुबम जहां गिरता है वहां ०.८ चौरस कि.मी. क्षेत्र की सभी वस्तुओं का भाप में रूपांतर होना : ‘जिस स्थान पर १० किलो टन का ‘अणुबम’ गिरता है, वहां की लगभग ०.८ चौरस कि.मी. क्षेत्र की सभी वस्तुएं क्षण में जलकर भाप बन जाती हैं । इस क्षेत्र को ‘बाष्पीभवन बिंदु’ कहते हैं ।
आ. अणुबम जहां गिरता है, उस भूमि में कंपन होकर ३ चौरस कि.मी. तक का परिसर ध्वस्त होने की संभावना होना और ३० चौरस कि.मी. क्षेत्र तक जीव और धन की हानि होने की संभावना होना : अणुबम के विस्फोट के कारण हवा का बहुत अधिक दबाव (१.७६ किलो/चौ.से.मी.) निर्माण होता है और ५१० कि.मी. प्रतिघंटा की गति से अधिक तेज आंधी चलती है । उस समय भूमि में बहुत अधिक कंपन होकर ३ चौरस कि.मी. तक का क्षेत्र ध्वस्त हो सकता है, तथा ३० चौरस कि.मी. क्षेत्र तक जीव और वित्त हानि हो सकती है । यह हानि उस ‘अणुबम’ की क्षमतानुसार अल्पाधिक होती है’
इ. अणुबम जहां गिरता है वहां अनेक वर्ष वनस्पति भी नहीं उगती ।
२. मानव जीवन पर दुष्परिणाम
अ. बहुत अधिक उष्णता के कारण आग लगना और आग के धुएं के कारण ‘ऑक्सीजन’ का अभाव उत्पन्न होना
‘अणुबम’ के विस्फोट के कारण ३ कि.मी. से परे के क्षेत्र के सभी ज्वलनशील पदार्थ आग पकड लेते हैं और बहुत धुआं उत्पन्न होकर मनुष्य का दम घुटने लगता है । उस समय ऑक्सीजन का अभाव उत्पन्न होने से श्वसन में बाधा आती है । इसमें ५० प्रतिशत लोग पूर्णतः घायल और १५ प्रतिशत लोग मृत्यु के मुंह में चले जाते हैं ।
आ. अणुबम को फूटते हुए देखने पर अंधापन आना
कुछ लोगों को कुछ समय के लिए तथा कुछ लोगों को स्थायी रूप से अंधापन आ सकता है ।
इ. किरणोत्सर्ग से शरीर की कोशिकाएं नष्ट होना और विविध रोग होना तथा शारीरिक दृष्टि से विकलांग बच्चों का जन्म होना
‘अणुबम’ के विस्फोट के पश्चात जब उसकी किरणोत्सर्गी धूल नीचे आती है, तब होनेवाला किरणोत्सर्ग शरीर की कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है । जी मिचलाना, उल्टियां, दस्त, कर्करोग इत्यादि रोग हो सकते हैं । विस्फोट के पश्चात कुछ मिनट, कुछ घंटे अथवा कुछ दिन किरणोत्सर्ग उच्च स्तर पर अर्थात सर्वाधिक हो सकता है और उसके पश्चात किरणोत्सर्ग अल्प अर्थात विरल होने लगता है । तो भी इस किरणोत्सर्ग का परिणाम अनेक वर्ष दृश्य रूप में दिखाई दे सकता है ।
हिरोशिमा और नागासाकी में हुए ‘अणुबम’ के विस्फोट के पश्चात हुए किरणोत्सर्ग का परिणाम आगे अनेक वर्षों तक दिखाई देता रहा था । वहां जन्म लेनेवाले बच्चों पर भी उसका परिणाम दिखाई दे रहा था । वे शारीरिक दृष्टि से विकलांग अथवा रोगग्रस्त हो रहे थे ।
ई. ‘अणुबम’ डाले गए स्थान पर कुछ दशकों तक जनजीवन नष्ट हो जाता है ।
३. अन्य दुष्परिणाम
‘अणुबम’ की क्षमता के अनुसार उसके विस्फोट से कितने ही कि.मी. अंतर पर विद्युत उपकरण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की हानि हो सकती है । इससे आगे कुछ समय तक अवरोध अथवा बाधा आ सकती है ।
४. दूसरे विश्वयुद्ध में किए गए अणुबम के विस्फोटों के कारण हुई भीषण हानि
अ. दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा विमान से जपान के हिरोशिमा में डाले गए ‘अणुबम’ के कारण १ लाख ४० सहस्र तथा नागासाकी में ७४ सहस्र लोगों की मृत्यु होना बताया जाता है ।
आ. यहां की ७० प्रतिशत इमारतें नष्ट हो गईं । इसी कारण हिरोशिमा में २ माह पश्चात चक्रवात आंधी आने से २ सहस्र लोगों की मृत्यु हुई थी ।
‘अणुबम’ का पहला और अब तक का अंतिम प्रयोग भी अमेरिका ने ही किया है । आज अनेक देशों के पास ‘अणुबम’ की तुलना में अधिक मारक क्षमता के अणुबम और हाइड्रोजन बम हैं तथा कुछ देश ‘अणुबम’ के प्रयोग की खुली धमकी भी दे रहे हैं । इस पृष्ठभूमि पर अणुबम के संदर्भ में जानकारी लेने का महत्त्व स्पष्ट होगा । (क्रमशः)