साधक रेल्वे में ही नौकरी करने के कारण रेल-कर्मचारियों
का उन्हें तुरंत विदर्भ एक्सप्रेस’ में आरक्षण देना और मुंबई स्थित
सेवाकेंद्र में हिसाब देकर दूसरे दिन अकोला लौटने के विषय में साधिका को बताना
पहले मैं लेखा की सेवा के संबंध में प्रत्येक महीने अकोला से मुंबई स्थित सेवाकेंद्र में जाता था । दिसंबर १९९९ में मैं गीतांजलि एक्सप्रेस’ से रात के ८ बजे दादर रेलस्थानक पर पहुंचा । दूसरे दिन अकोला लौटने के लिए आरक्षण मिलेगा अथवा नहीं, यह देखने के लिए मैंने टिकट निरीक्षक के कार्यालय में जाकर पूछताछ की । मैंने उनसे कहा कि में रेल्वे में ही नौकरी करता हूं । कृपया मुझे एक बर्थ दीजिए । उन्होंने मुझे ‘विदर्भ एक्सप्रेस’ के एस ६’ में बर्थ १२ दिया । मैं प्रसन्न होकर मुंबई सेवाकेंद्र लौटा तथा वहां की साधिका को बताया कि कल अकोला लौट जाऊंगा ।
दादर रेलस्थानक पर अचानक श्री महाजन का मिलना और
साधक को अपने साथ कल्याण ले जाना । वहां भीड न होने पर भी
साधक को श्री महाजन दिखाई न देना; इसलिए साधक का अपने एक संबंधी के घर
पहुंचना उस दिन सायंकाल ही महाजन भाभी का उस संबंधी को साधक के आगमन की पूर्वसूचना देना
दूसरे दिन रात १२ बजे ‘विदर्भ एक्सप्रेस’ दादर से छूटनेवाली थी । उस गाडी से अकोला जाने के लिए मैं रेलस्थानक पर पहुंचा । तब अचानक, कल्याण में रहनेवाले साधक श्री महाजन मुझे मिले । उन्होंने मुझे कहा, ‘‘मामा ! आप इतनी रात क्यों जा रहे हैं ? मेरे साथ मेरे घर कल्याण चलिए और सवेरे गीतांजलि एक्सप्रेस से अकोला जाइए ।’’ उन्होंने मुझपर क्या जादू किया, यह मेरी समझ में नहीं आया । मैं उनके साथ लोकल से कल्याण गया । वहां पहुंचने में हमें रात के साढेबारह बज गए । वहां रेलस्थानक पर उतरते समय भीड नहीं थी, फिर भी महाजन कहीं नहीं दिखाई दिए । अब क्या करूं, यह समझ में नहीं आ रहा था । उनका घर भी मुझे पता नहीं था । अंत में एक बजे मैं अपने एक संबंधी के घर पहुंचा । वहां भाभी ने द्वार खोलते ही कहा, अरे, आज सवेरे ही महाजन भाभी ने मुझसे कहा था कि आप हमारे घर आनेवाले हैं ।’’ मैं कुछ नहीं समझ पा रहा था । मैं चाय पीकर सो गया ।
साधक जिस विदर्भ एक्सप्रेस से जानेवाला था, उसकी शिरसोली रेल स्थानक
के पास भीषण दुर्घटना होने के कारण सब ट्रेनें आठ से दस घंटे विलंब से चलना
अकोला जाने के लिए सवेर ७ बजे कल्याण से गीतांजली एक्सप्रेस में बैठा । जब गीतांजलि एक्सप्रेस’ इगतपुरी स्थानक पर पहुंची, तब पता चला कि बीती रात विदर्भ एक्सप्रेस की शिरसोली रेल स्थानक के पास भीषण दुर्घटना हुई थी । इसलिए, अभी कोई ट्रेन आगे नहीं जाएगी । आठ से दस घंटे पश्चात रेलगाडियों का चलना पुनः आरंभ हुआ । दूसरे दिन दोपहर तीन बजे हमारी गाडी दुर्घटनास्थल के पासवाली दूसरी लाइन से आगे बढी ।
साधक के लिए आरक्षित बर्थ का दुर्घटना में चकनाचूर होना, देवता ने भीषण
दुर्घटना से बचाया है, यह साधक को अनुभव होना और उसे इस विषय में कृतज्ञता लगना
दुर्घटनास्थल पर कुछ समय गाडी रुकी । तब वहां का दृश्य देखकर मैं स्तब्ध रह गया । देखा कि जिस डिब्बे में मुझे बर्थ दिया गया था, वह चकनाचूर हो गया है । यह देखकर मेरी आंखें भर आईं । ईश्वर ने मुझे इस भीषण दुर्घटना में बचाया है’, यह सोचकर उसके प्रति बहुत कृतज्ञता लगी ।
परम पूज्य डॉक्टरजी का सेवाकेंद्र न छोडने का संदेश मिलने से पहले साधक
का सेवाकेंद्र से निकल जाने पर उसके प्राण बचाने के लिए ईश्वर की यह योजना
देखकर साधक में शरणागत भाव उत्पन्न होना और आंखों से आंसुओं की धारा बहना
मैं तीसरे दिन जब अकोला पहुंचा, तब मुंबई सेवाकेंद्र को दूरभाष कर पूरा समाचार बताया । तब, वहां की साधिकाओं ने कहा, ‘मामा ! परम पूज्य डॉक्टरजी ने रात में ही आपके लिए संदेश भेजा था कि आज आप सेवाकेंद्र में ही रुकें । परंतु, यह समाचार आपको मिलने से पहले ही आप सेवाकेंद्र से जा चुके थे । हम भी आप तक यह संदेश नहीं पहुंचा सके । (उस समय चलदूरभाषी (मोबाइल) की सुविधा नहीं थी ।) मेरा भाव बहुत जागृत हुआ । गुरुमां ने मेरे प्राणों पर आया संकट टालने के लिए कितनी अद्भुत व्यवस्था की थी, यह ध्यान में आते ही मन से करोडों बार कृतज्ञता व्यक्त हुई और शरणागत भाव उत्पन्न हुआ । मेरी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी ।
केवल गुरुकृपा से तीव्र प्रारब्ध में कैसे रक्षा होती है, यह अनुभव होना
अगली बार सेवाकेंद्र में जाने से पहले मैं महाजन से मिला और उन्हें इस दुर्घटना के विषय में बताया । तब उन्होंने कहा, ‘‘अरे, मैं तो उस दिन कल्याण में था ही नहीं । सब गुरुदेव की ही कृपा है ।’’ गुरुकृपा से ही तीव्र प्रारब्ध में रक्षा होती है, यह आज इस प्रसंग से समझ में आया ।
हे गुरुमां ! मेरे प्राण बचाने के लिए आपने मुझ पर जो अनंत कृपा की है, उसका ऋण मैं कभी नहीं चुका सकता । मुझपर अपनी कृपादृष्टि इसी प्रकार सदैव रखिए । मुझे अंतिम सांस तक अपने चरणों की सेवा में रखिए’ यह आपसे शरणागत भाव से प्रार्थना करता हूं ।’
– चरणरज, श्री श्याम राजंदेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१८.३.२०१७)