गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी की संक्षिप्त रूप में जानकारी !
हिन्दु धर्म की श्रेष्ठता कथन करनेवाले तथा धर्मरक्षा हेतु अंतिम श्वास तक कलम हाथ में पकडनेवाले
कुछ गिने-चुने संतों में से एक हैं वडाळा महादेव (जनपद नगर, महाराष्ट्र) के गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी !
गुरुदेव डॉ. नारायणानंदनाथ काटेस्वामीजी उत्तरप्रदेश के महान संत धर्मसम्राट करपात्री स्वामीजी के शिष्य है ! गुरुदेव ने पुणे विद्यापीठ में ‘डॉक्टरेट’ की पदवी प्राप्त की थी । उन्होंने जीवन का अधिक समय हिमालय में व्यतीत किया । वहां उन्होंने कडी तपश्चर्या एवं योगसाधना की । आध्यात्मिक तथा धार्मिक साहित्य लिखना, ही उनके जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा था । गुरुदेव ने धर्मजागृति तथा समाजकल्याण हेतु पूरे भारत में भ्रमण किया ।
सनातन धर्म के मूल्यं तथा आध्यात्मिक विचारधन पूरे विश्व में प्रसृत करने के लिए संपूर्ण जीवन अथक परिश्रम किए । चमत्कारिक तथा आध्यात्मिक व्यक्तिमत्व के व्यक्ति में भी गुरुदेव के सहवास में आने के पश्चात् प्रचंड मात्रा में परिवर्तन होता था । उन में विद्यमान विस्मयकारक शक्ति के कारण भटके हुए आत्माओं को ईश्वरी चैतन्यकी अनुभूति आती थी ।
महाराष्ट्र के नगर जनपद के श्रीरामपुर शहर से ७-८ किमी दूरी पर होनेवाला निसर्गरम्य वडाळा महादेव यह गांव ! महादेव का अतिप्राचीन हेमाडपंथी देवस्थान होनेवाला यह वडाळा गांव । इस पवित्र गांव में ही गुरुदेव का चैतन्यमय आश्रम है ।
गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी की मोम से बनाई गई एकदम सही प्रतिमा ! धर्मरक्षा हेतु निरंतर प्रयास करनेवाले इस महान विभूति को शरणागत भाव से प्रार्थना करेंगे !
गुरुदेव प्रतिदिन प्रातः इस पेड को स्पर्श करते थे । उनके चैतन्यमयी स्पर्श के कारण पेड के खोड में (वलय में दिखाएं गए के अनुसार)
नंदी का मुख अंकित हुआ है ।
गुरुदेव की नित्य उपासना का तथा लेखन करने का यह एकांत परिसर ! यहां ही गुरुदेव का महानिर्वाण हुआ । इस परमपवित्र परिसर को कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार करेंगे !
गुरुदेव के स्पर्श से पुनित तथा उनका सहवास प्राप्त होनेवाली उनकी आरामकुर्सी ! उस से चैतन्य की प्राप्ति होने के लिए गुरुदेव को
कृतज्ञतापूर्वक प्रार्थना करेंगे !
‘गुरुदेव के प्रत्येक शब्द में प्रतीत होनेवाली उनकी तीव्र धर्मनिष्ठा तथा सनातन धर्म पुनर्प्रतिष्ठापना की अति तीव्र अधीरता, यह साक्षात् ईश्वर को भी आश्चर्यचकित करनेवाली है ।’ – (‘घनगर्जित’, जनवरी २०१२)
गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी का साहित्य अर्थात् साक्षात् भगवंत का प्रकटीकरण !
गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी द्वारा लिखे गए साहित्य के विषय में !
१. उनका साहित्य अर्थात् नेत्रहीन की दृष्टि, पंगु के पैर तथा दुर्बल की शक्ति है ।
२. इस साहित्य के कारण अज्ञानी ज्ञानवंत होता है, डरपोक शूरवीर होता है तथा मरनेवाला अमर होता है ।
३. जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है, उन्हें कल्पवृक्ष के अनुसार सहायता करता है ।
४. वेदना एवं व्यथा की अग्नि बुझानेवाली बरसात की धार है ।
५. मनुष्य में होनेवाली कुटिलता नष्ट होकर अच्छे विचार निर्माण होते हैं ।
६. उसमें स्थित दिव्य तेज व्यक्ति का हृदय चैतन्यमय करता है ।
७. मानवजाती के लिए यह सर्वश्रेष्ठ धन है ।
८. वह व्यक्ति की सुप्त शक्ति जागृत करता है ।
– (पू.) श्री. भास्कर (गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी के उत्तराधिकारी)
हिन्दुओं को तीव्र पुरुषार्थी बनानेवाले तथा वास्तव में सारस्वत गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी !
‘यदि गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी के समग्र साहित्य का विचार किया गया, तो वे साहित्यिकों के साहित्यिक थे । उनके साहित्य में एक भी पंक्ति ऐसी नहीं है कि, जिसे राष्ट्र एवं धर्म का सुगंध नहीं आता है !
यदि पौराणिक अथवा आधुनिक कथाएं लिखना हैं, तो वह केवल काटेस्वामीजी ही लिख सकते हैं । यदि गांधी-नेहरू के विषय में टिपण्णी लिखना है, तो भी वे ही लिख सकते हैं । पाखंडियों का खंडन करना है, तो गुरुदेव ही चाहिए तथा धर्मशास्त्र का सुगम भाषा में विवेचन करना है, तो उनके अतिरिक्त कोई भी पर्याय ही नहीं है !
अतएव ही वे वास्तविक रूप से सारस्वत थे ।’