कल्याण, जिला ठाणे – यहां के श्री. माधव साठे वर्ष १९९८ से सनातन के मार्गदर्शन में साधना कर रहे थे । परात्पर गुरु डॉक्टरजी पर उनकी अपार श्रद्धा थी । साधना की तीव्र लगन के कारण उन्होंने मन लगाकर व्यष्टि और समष्टि साधना की । वर्ष २०१२ में उनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत घोषित किया गया था ।
श्री. साठे का पूर्ण जीवन आदर्श था । उन्होंने समाज के जिज्ञासु, पाठक, शुभचिंतक, धर्मप्रेमी, ऐसे अनेक लोगों को साधना हेतु प्रवृत्त किया । इस कारण उन सभी के लिए वे बडे आधारस्तंभ बन गए थे । भारत में कोरोना का संक्रमण बढने लगा और श्री. साठे भी कोरोना से संक्रमित हुए; किंतु उन्हें गुरुसेवा की लगन इतनी थी कि रोग से जूझते हुए भी वे चल-दूरभाष से सेवा करते रहे थे । कुछ दिन पूर्व उनकी पत्नी का निधन हुआ । उस स्थिति में भी उनके मन में केवल गुरुसेवा की लगन थी । ‘समाज के जिज्ञासु साधना करें’, इस लगन के कारण वे पत्नी की मृत्यु के उपरांत भी सेवारत थे । २३.४.२०२१ को हृदयगति बंद होने के कारण श्री. साठे का निधन हुआ ।
शांत और स्थिर स्वभाव तथा गुरुदेव पर अपार श्रद्धा के कारण अत्यंत अस्वस्थता की स्थिति में भी वे निरंतर भगवान के आंतरिक सान्निध्य में थे । ‘हमारा पूर्ण जीवन गुरुचरणों में समर्पित हो’, उनकी यह लगन अंतिम क्षण तक कार्यरत थी । इन्हीं गुणों के कारण श्री. साठे ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर सनातन के १०६ वें समष्टि संतपद पर विराजमान हुए हैं ।
वर्तमान कोरोना महामारी के काल में सभी के सिर पर मृत्यु की तलवार लटकी हुई है । ऐसे में गुरुनिष्ठा के बल पर ‘साधना के कारण मृत्यु और प्रतिकूल स्थिति का किस प्रकार सामना करें ?’, पू. साठेजी के उदाहरण से सभी यह सीख सकते हैं ।
‘मृत्युपरांत भी पू. माधव साठेजी की आध्यात्मिक उन्नति तीव्र गति से हो’, ऐसी परात्पर गुरु डॉक्टरजी और भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में विनम्र प्रार्थना है ।