तुमकुरू की श्री महालक्ष्मी मद्दरलक्कम्म के आगमन के पश्चात उनके भक्तों का सनातन के विषय में गौरवोद्गार और साधकों को हुई अनुभूतियां

१४ दिसंबर २०२० की दोपहर ४.१० बजे मंगळूरु सेवाकेंद्र में तुमकुरू (कर्नाटक) की श्री महालक्ष्मी मद्दरलक्कम्मादेवी का दिव्य आगमन हुआ । इस अवसर पर देवी के साथ धर्मदर्शी श्री. लक्ष्मीश, अर्चक श्री. सिद्धेश शास्त्री और भक्त श्री. पवन कुमार यजमान का भी आगमन हुआ । हिन्दू जनजागृति समिति के कर्नाटक राज्य समन्वयक ६५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के श्री. गुरुप्रसाद गौडा ने देवी को पुष्पहार अर्पण किया और आरती उतारकर आश्रम में स्वागत किया । सनातन के संत पू. विनायक कर्वे और पू. रमानंद गौडा ने बिल्वार्चना कर देवी का पूजन किया । देवी के साथ आए मान्यवरों को हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. चंद्र मोगेर ने सेवाकेंद्र में चल रहे राष्ट्र और धर्म के कार्य की जानकारी दी ।

श्री महालक्ष्मी मद्दरलक्कम्मादेवी

 

१. विशेषतापूर्ण सूत्र

अ. देवी के साथ आश्रम में आते समय मार्ग पर भक्तों को २ गाय और गरुड दिखाई दिया । श्री. पवनगुरुजी बोले, ‘‘उन्होंने हमें आश्रम के मार्ग पर लाकर छोडा ।’

आ. देवी आश्रम में आने के पश्चात वाहन से मूर्ति आश्रम में लाते समय एक फूल देवी के माथे से नीचे गिरा । यह शुभसंकेत है ।

इ .श्री. पवन ने हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए संकल्प कर प्रार्थना करने पर देवी के मुकुट पर विद्यमान नाग के फन पर एक मणि हिलने लगा और उसी समय देवी के मुकुट से एक फूल प्रसाद के रूप में नीचे गिरा ।

ई. सभी साधकों को मास्क पहने देख श्री. पवनकुमार ने कहा, आप कोरोना के संदर्भ में सरकार द्वारा दी सभी सूचनाओं का कडा पालन कर रहे हैं ।’’

 

२. देवी आश्रम में आने पर साधकों को हुई अनुभूति

अ. मैं घर में सवेरे धूप दिखा रहा था । यह देखकर (बालसंत) पू. भार्गवराम ने कहा, ’’देवी आनेवाली हैं । वे फूलों पर बैठी हैं । उन्हें नमस्कार करेंगे ।’’ इससे ध्यान में आया कि पू. भार्गवरामजी को देवीतत्त्व की अनुभूति पहले से ही हो रही थी । – श्रीमती भवानी प्रभु (सनातन के पहले बालसंत पू. भार्गवराम प्रभु की माताजी)

आ. देवी आश्रम में आने के एक दिन पहले आश्रम की स्वच्छता-सेवा करते समय मुझे शारीरिक कष्ट होते हुए भी वेदना का भान नहीं था । ऐसा लग रहा था कि गुरुदेव ही मुझसे स्वच्छता की सेवा करवा रहे हैं । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि साक्षात गुरुदेव ही देवी के साथ आए हैं । वे सभागृह में संतों के साथ बैठे हैं और पूजा के समय देवी हम सभी साधकों को शक्ति प्रदान कर रही हैं ।’ – श्री. विजय हुळिपल्लेद

इ. देवी के आगमन की सेवा करते समय ‘यह सेवा करना मुझे संभव नहीं । आप ही करवा लीजिए’, ऐसी शरणागति अनुभव हुई । ‘गुरुदेव ही सेवा के संदर्भ में विचार सुझा रहे हैं’, यह मुझे अनुभव हुआ । संगणकीय सेवा करते समय गुरुदेवजी का भावचित्र दिखाई दे रहा था ।’ – श्री. सुमन

 

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने परिशुद्ध रखी सनातन संस्था !

सनातन संस्था की एक और विशेषता यह है कि वह किसी भी प्रकार से राजनीति से नहीं जुडी है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने इस संस्था को परिशुद्ध रखा है । इसलिए यह संस्था इतनी बडी मात्रा में वृद्धिंगत हुई है । उन्होंने एक और महत्त्वपूर्ण कार्य किया और वह है सनातन संस्था के अन्नछत्र में कोई भी जातिभेद नहीं किया जाता । उनके संकल्प के अनुसार वर्ष २०२३ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी । हम भी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की प्रतीक्षा में हैं ।

 

सनातन के ३ गुरुओं की महिमा !

(परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी ने अकेले इस संस्था का आरंभ किया, जो आज सहस्रों साधकों को साधना सिखा रही है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ और श्रीचितशक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, ये दोनों सद्गुरु श्री राजराजेश्वरी देवी समान सनातन की श्री लक्ष्मी और श्री सरस्वती ही हैं ।

 

देवी के भक्त श्री. पवनकुमार यजमान
द्वारा सेवाकेंद्र देखते समय व्यक्त किए गौरवोद्गार !

अ. सर्व साधकों को दर्शन का लाभ हो, इसलिए देवी स्वयं आश्रम में आई हैं !

श्री. पवनकुमार यजमान ने साधकों से कहा, ‘‘कोरोना के कारण समाज में एक ओर कष्टदायक लग रहा है, तब भी उस कालावधि में सामाजिक अन्याय-अत्याचार न्यून हो गया है । पारिवारिक अपनापन बढ गया है । लोगों ने सात्त्विक आहार ग्रहण करना प्रारंभ किया है । इसका अर्थ समाज में अन्याय-अत्याचार बढ जाने पर भगवान ही किसी न किसी माध्यम से अपनी लीला दिखाते हैं । देवी रजत महोत्सव के उपरांत पहली बार भ्रमण के लिए बाहर आई हैं और आज सनातन के आश्रम में उनका आगमन हुआ है । सामान्यतः भक्त देवस्थान में आकर श्री देवीमाता का दर्शन करते हैं; परंतु आज सनातन के साधकों के लिए देवी स्वयं ही यहां आकर दर्शन दे रही हैं । इसका कारण यह है कि देवस्थान में केवल एक अथवा दो साधक ही आ सकते हैं, परंतु देवी ही सेवाकेंद्र में आईं, तो सेवाकेंद्र के सर्व साधकों को देवी के दर्शन का लाभ होता है और देवी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है । उसी उद्देश्य से देवी का आश्रम में आगमन हुआ है ।

आ. श्रीकृष्ण और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की अभिन्नता की श्री. पवनगुरुजी को हुई अनुभूति !

यहां गुरुदेवजी का (परात्पर गुरु डॉ. आठवले) खडे रूप का चित्र है । उसे देखते हुए मुझे उसमें ध्यानमंदिर में श्रीकृष्ण का खडा चित्र दिख रहा था । इसका अर्थ है श्रीकृष्ण और गुरुदेव भिन्न न होकर वे एक ही हैं । गुरुदेव के चित्रों में अलग-अलग हावभाव प्रतीत होते हैं ।
आपके गुरुदेवजी के विषय में जितना सुनता हूं, उतनी उन्हें देखने की उत्सुकता और लगन बढती है । वे भवरोगरक्षक हैं । साधकों के सर्व कष्ट वे स्वयं पर लेते हैं’, ऐसे मुझे लगता है ।

इ. धर्मप्रसार, यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा लगाया और देखभाल किया हुआ वृक्ष है ।

हम दोपहर ३ बजे आपका ‘ऑनलाइन’ सत्संग देखते हैं । इससे समाज के लोगों को अच्छी जानकारी मिलती है । गत कुछ माह प्रत्यक्ष धर्मप्रसार का अवसर नहीं मिला, तब भी ऑनलाइन के कारण अधिक लाभ हुआ, इसका हमें बहुत आनंद हुआ । यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने संजोया और देखभाल किया वृक्ष है, वह अब फल दे रहा है । सनातन की ग्रंथनिर्मिति के कारण आज लोगों तक हिन्दू धर्म का ज्ञान पहुंच रहा है । आपका कार्य अद्भुत है ।

ई. धर्मप्रसार करनेवाले साधकों को देखकर छत्रपति शिवाजी महाराजजी को देखने समान लगता है !

सर्व साधक आज हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का ध्येय रखकर प्रतिदिन धर्मप्रचार कर रहे हैं । आप सभी को देखने पर ऐसा लगता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज को देख रहा हूं । हम दूरभाष पर बोलते समय एक बार तो ‘हैलो’ शब्द का उपयोग करते हैं; परंतु सनातन के साधकों को कभी भी दूरभाष करो, तो वे अत्यंत नम्रता से ‘नमस्कार’ कहते हैं । इसमें कोई भी साधक अपवाद नहीं । सभी का वर्तन एक जैसा नम्रता का होता है । हमें आपका आचरण देखकर बहुत सीखना है ।

उ. गुरु की सीख के कारण विद्यावान होकर भी अहंकर रहित सनातन के साधक !

साधकों द्वारा किया त्याग सुलभ नहीं । उसके लिए अनेक जन्मों की साधना लगती है । आपके समान सभी के सामने चूकें लिखना, अन्यों को बताना, अन्यों की क्षमायाचना करना, यह सामान्य विषय नहीं है । आपका यह दंड (प्रायश्चित) ज्ञानवृद्धि करनेवाला है । ऐसा करना अन्यों के लिए संभव नहीं । साधकों को यह सब समझ में आने के कारण साधक विद्यावान हुए हैं; परंतु आप में गर्व नहीं । यह सब कैसे संभव हुआ ? यह आपके गुरु की इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति के कारण ही संभव हुआ है । सब साधक एक समान ही हैं, ऐसा त्याग करना सभी के लिए संभव नहीं ।

ऊ. चैतन्य का भान करवानेवाला सेवाकेंद्र का ध्यानमंदिर !

ध्यानमंदिर के देवी-देवताओं के चित्र देखकर चैतन्य का भान होता है । पूजा में अर्पण किए हुए फूलों की रचना भी आदर्श होने से सात्त्विक स्पंदनों से भारित हुए हैं । इस सात्त्विक रचना के कारण मुझे यहां उपस्थित साधकों के वस्त्रों में भी सात्त्विक तरंगों का भान हो रहा है । ध्यानमंदिर में मुझे उष्णता का भान हो रहा है । यह वातावरण के कारण नहीं, अपितु इस स्थान पर विद्यमान देवताओं के चैतन्य के कारण हुआ है । आपके अष्टदेवताओं के सात्त्विक चित्र हमें दें । देवस्थान में उन्हें रखकर हम उनका पूजन करेंगे और वहां आनेवाले श्रद्धालुओं के सात्त्विक चित्रों के विषय में प्रबोधन करेंगे ।

ए. सनातन समान आदर्श व्यवस्था करना किसी के लिए संभव नहीं !

‘सेवाकेंद्र के सर्व कक्षों का व्यवस्थापन देख एक अलग ही लोक का अनुभव होता है; परंतु समाज को उसकी कल्पना नहीं है । परात्पर गुरुदेव ने प्रत्येक स्थान पर सात्त्विकता निर्माण हो, इस विचार से प्रत्येक बात का अध्ययन किया है । ऐसी आदर्श व्यवस्था करना अन्य किसी के लिए संभव नहीं । वास्तव में परात्पर गुरु डॉ. आठवले साक्षात श्रीविष्णु ही हैं । यहां आने पर कितना समय और कैसे चला गया है, यह भी ध्यान में नहीं आया । संस्था का कार्य उत्तरोत्तर बढने दें’, यही देवी के चरणों में प्रार्थना है !

ऐ. ‘सनातन प्रभात’के सात्त्विक प्रस्तुतीकरण के विषय में जिज्ञासा से जाननेवाले श्री. पवनगुरुजी !

‘सनातन प्रभात’की जानकारी देने पर श्री. पवनगुरुजी ने कहा, ‘‘यह नियतकालिक हाथ में लेने पर तुरंत ही अलग से स्पंदन प्रतीत होते हैं । नियतकालिकों में ऐसे ही रंगों का उपयोग करना है, यह आपको कैसे समझ में आता है ? आप नियतकालिकों में उत्तम शब्दों का उपयोग करते हैं । यह सब आपको कैसे सूझता है ?’’ इस अवसर पर कन्नड सनातन प्रभात की सेवा करनेवाले साधक श्री. प्रशांत हरिहर ने कहा, ‘‘हमारे गुरुदेवजी ने स्पंदनशास्त्र के अनुसार कौनसे रंगों का उपयोग करना है ? सात्त्विक अक्षर कैसे चुनें ? सात्त्विक रचना कैसे करें ? आदि सभी कुछ सिखाया है । यह सब गुरुदेवजी की कृपा से ही साध्य होता है ।’’

यह सुनकर श्री. पवनगुरुजी को बहुत आनंद हुआ । उन्होंने ‘सनातन प्रभात’के कार्य की प्रशंसा कर अगले वर्ष देवी के उत्सव के दिन श्री. प्रशांत हरिहर को ‘सर्वश्री विद्याभूषण पुरस्कार’ देने की घोषणा की है ।

यहां प्रकाशित अनुभूति ‘जहां भाव वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूति है । ऐसी ही अनुभूति सभी को होगी, ऐसा आवश्यक नहीं है ।- संपादक

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