‘अनेक संतों ने समय-समय पर बताया है कि आनेवाला समय बहुत भयानक है । यह भयानक आपातकाल अब आरंभ हो गया है तथा ‘एकाएक बादल फटना, नदियों में बाढ आना, महामारी, युद्धसदृश परिस्थिति उत्पन्न होना अथवा प्रत्यक्ष युद्ध होना’, ऐसी प्रतिकूल घटनाएं हो रही हैं तथा भविष्य में भी हो सकती हैं । ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर उस समय ‘हमें कहां रहना है ? घर कैसे हों ‘आपातकाल में घर का निर्माण करने हेतु किन बातों की आवश्यकता होती है इस संदर्भ में हम इस लेख में विस्तार से विचार करेंगे । पिछले लेखों में आपातकालीन घरों एवं भूमि का चयन करने हेतु विस्तृत मानदंड बताए गए हैं, उनके अनुसार ही भूमि का चयन करें ।
‘आपातकाल की तीव्रता को ध्यान में रखते हुए महानगरों में रहना असुरक्षित है । इसलिए अनेक साधक गांव में रहने हेतु योग्य भूमि ढूंढ रहे हैं । गांव में घर का निर्माणकार्य करने हेतु खेत की भूमि ‘बिना खेती की (NA नॉन एग्रिकल्चरल लैंड)’ करनी पडती है । ‘पट्टे पर से एक अथवा दो सहस्र चौरस (समतल) फुट भूखंड (‘प्लॉट’) खरीदकर उस पर घर का निर्माण किया तब भी चलता है, वह सभी कानूनन वैध होता है, ऐसा कुछ लोगों को प्रतीत होता है । ‘किसी एक व्यक्ति ने खेत की भूमि खरीदी तथा वहां घरों का निर्माण किया तब भी चल सकता है ।’, ऐसे विचार से भी कुछ स्थानों पर घरों का निर्माण किया जा सकता है । इस संदर्भ में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर ‘कानूनन क्या करना चाहिए ?’, यह समझकर घरों का निर्माण करना चाहिए । इससे हमारे साथ धोखा नहीं होगा अथवा निर्माण कानून के विरुद्ध नहीं होगा ।
१. खेत की भूमि पर घर का निर्माण करते समय ग्रामपंचायत के साथ
‘नगर रचना कार्यालय’ (सिटी प्लानिंग कार्यालय) की अनुमति भी आवश्यक !
गांव में खेत की भूमि पर घर का निर्माण करते समय केवल ग्रामपंचायत की अनुमति लेने से काम नहीं बनेगा; अपितु उसके लिए ‘नगर रचना कार्यालय’ की भी अनुमति लेनी पडती है । ‘नगर रचना कार्यालय’ की अनुमति लिए बिना घर का निर्माण करना कानून के विरुद्ध होता है ।
२. खेत की भूमि खरीदने के नियम अनुसार खेत की भूमि का
विक्रय करनेवाला व्यक्ति किसान ही होना चाहिए तथा एक समय में न्यूनतम २० सहस्र
वर्ग फुट (स्क्वेयर फीट) भूमि खरीदने पर ही वह भूमि उसके नाम पर हो सकती है ।
कुछ लोग मिलकर ५ सहस्र वर्ग फुट भूमि खरीदने का निर्णय लेते हैं । ‘प्रत्येक व्यक्ति के भाग में एक सहस्र फुट भूमि’, ऐसा मानकर चलते हुए वे उस पर घर का निर्माण करने की इच्छा रखते हैं; परंतु खेत की भूमि खरीदने हेतु एक सहस्र वर्ग फुट का भूखंड पर्याप्त नहीं, अपितु खेत की भूमि खरीदने हेतु जो कानून है, उसके अनुसार न्यूनतम २० सहस्र वर्ग फुट भूमि खरीदने पर ही वह भूमि उस व्यक्ति के नाम पर होती है । ‘फार्महाउस’ का निर्माण करने के लिए भी २० सहस्र वर्ग फुट भूमि खरीदकर वहां केवल ४ प्रतिशत अर्थात ८०० स्क्वेयर फुट पर निर्माण कर सकते हैं । उसी प्रकार खेत की भूमि खरीदने हेतु खरीदार किसान ही होना चाहिए, अर्थात पटवारी की बही पर उसके नाम पर कृषि भूमि रहनी चाहिए ।
३. खेत की भूमि खरीदने तथा सभी
अधिकारों के संदर्भ में अधिवक्ताओं का मार्गदर्शन लें !
यदि साधकों को एकत्रित भूमि लेकर गांव में खेत की भूमि पर निर्माण करना हो, तो वे आगे दिए अनुसार कृति करें ।
अ. एक साधक कोे २० सहस्र वर्ग फुट की भूमि खरीदकर उसे ‘बिना खेती (NA नॉन एग्रिकल्चरल लैंड)’ की कर लेनी चाहिए ।
आ. सरकारी नियमानुसार उसमें ‘प्लॉट’ बनाएं ।
इ. तत्पश्चात भूमि के संदर्भ में स्वामित्व अधिकार (मालिकी हक) कानूनन होने की दृष्टि से अधिवक्ताओं के मार्गदर्शन में उस पर निर्माण करें अथवा ‘बिना खेती के ‘प्लॉट’ खरीदकर उस पर निर्माण करें ।
४. नई भूमि खरीदते समय तथा उस पर वास्तु का निर्माण करते
समय वास्तुशास्त्र की दृष्टि से नीचे दिए सूत्रों पर विचार करें
अ. ‘भूखंड चौकोण अथवा समकोण हो ।
आ. यदि भूखंड सभी बाजुओं से समतल हो, तो घर के निर्माणकार्य के लिए अच्छा रहता है ।
इ. यदि भूखंड में ढालान है, तो वह पूर्व अथवा उत्तर दिशा में रहना चाहिए । यदि चढाव है, तो वह दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए ।
ई. दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में तालाब अथवा नदी तथा पूर्व अथवा उत्तर दिशा में पहाड हो, तो वह भूखंड न लें ।
उ. भूखंड का मुख संभवतः पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना चाहिए ।
ऊ. घर का निर्माणकार्य करते समय चौकोन अथवा समकोन में बनाएं ।
ए. भूखंड के नैऋत्य दिशा के कोने में घर का निर्माणकार्य करें अर्थात पूर्व एवं उत्तर भाग में अधिक खुली भूमि छोड दें ।
ऐ. मुख्य प्रवेशद्वार एवं प्रांगण प्रवेशद्वार : वास्तु के मुख्य प्रवेशद्वार के लिए चारों दिशाओं का विचार किया गया है । उसमें भी उत्तर तथा पूर्व दिशाओं को अधिक महत्त्व दिया गया है ।
ओ. मुख्य प्रवेशद्वार पर लकडी की देहली बनाएं ।
औ. घर का निर्माणकार्य करते समय अधिकतर वास्तुशास्त्र के अनुसार करना चाहिए, उदा. ईशान्य दिशा में पूजाघर, पूर्व अथवा उत्तर दिशा में बैठक कक्ष, आग्नेय दिशा में भोजनगृह रखें एवं ‘पूर्व की ओर मुख कर भोजन बनाना संभव हो’, इस प्रकार से रचना करें । नैऋत्य दिशा में शयनकक्ष हो तथा शयन करते समय दक्षिण दिशा की ओर सिर करना चाहिए । पश्चिम अथवा दक्षिण भाग में शौचालय निर्माण करें ।
अं. पानी के लिए कूपनलिका (बोरवेल), कुआं अथवा भूमि के नीचे (अंडरग्राउंड) पानी की टंकी बनानी हो, तो वह ‘पूर्व से ईशान्य’ अथवा ‘उत्तर से ईशान्य’ भाग में बनाएं । ईशान्य दिशा के ठीक कोने में न बनाएं ।
अ:. ‘सेप्टिक टैंक’ पश्चिम-मध्य से वायव्य भाग में बनाएं ।’ – श्री. धनंजय कर्वे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
५. अल्पावधि में तथा अल्पतम व्यय में गांव में
घर का निर्माण करना हो, तो क्या करना चाहिए
गांव में घर की व्यवस्था करते समय घर का निर्माण करने की अपेक्षा तैयार घर खरीदने को प्रधानता दें । अपेक्षित तैयार घर न मिलने पर घर निर्माण करने का निर्णय ले सकते हैं । ‘अल्पतम व्यय में तथा अल्पावधि में घर निर्माण कैसे करें ?’, इस संदर्भ में आगे सूत्र दिए हैं ।
५ अ. निर्माण करने से पूर्व करने योग्य कृति
१. आपातकाल का विचार करते हुए ‘कौन से गांव की भूमि का चयन करना उचित होगा इसका अध्ययन कर उत्तरदायी साधकों के मार्गदर्शन अनुसार योग्य गांव में भूमि का चयन करें ।
२. निर्माणकार्य टिकाऊ (मजबूत) होने के लिए घर की नींव के लिए कडी कंकडी का होना आवश्यक है । भूमि में २ फुट का गड्ढा खोदने पर कडी कंकडी लगेगी, ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए । इससे नींव टिकाऊ होकर घर का निर्माण टिकाऊ होता है ।
३. भूमि का नक्शा धर्मप्रचारक संत अथवा ६१ प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त, परंतु अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से रहित तथा सूक्ष्म समझनेवाले साधक को दिखाएं । नक्शा देखकर अच्छे स्पंदन प्रतीत हों, तो भूमि खरीदने का निर्णय लें । (इस संदर्भ में इससे पूर्व विस्तृत सूचना प्रकाशित हुई है ।)
४. ‘घर में कितने लोग रहेंगे ? उनकी क्या आवश्यकताएं हैं ?’, इसका विचार कर कक्षों की संख्या निश्चित करें ।
५. आपातकाल की दृष्टि से आवश्यकता के रूप में घर का निर्माण करने के कारण सभी सुविधाओं के स्थान पर अत्यावश्यक जीवनावश्यक सुविधाओं का विचार करें ।
६. ‘घर का प्रवेशद्वार, तथा अन्य कक्ष कौन सी दिशा में रहना चाहिए ?’, इस संदर्भ में वास्तुशास्त्रज्ञ का मार्गदर्शन लें । अपने संपर्क में आए वास्तुविशारद को संपर्क कर उससे घर का नक्शा बनवाएं ।
५ आ. प्रत्यक्ष निर्माणकार्य के संदर्भ में
१. घर का निर्माणकार्य ‘आरसीसी फ्रेम स्ट्रक्चर’ अथवा ‘लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर’ का होना चाहिए ।
२. संभवतः ‘स्लैब’ का घर बनाएं । दीवारों को अंदर की बाजू से ‘नीरु फिनिश’, तथा बाहरी बाजू से ‘स्पंज गिलावा’ करें ।
३. जूते रखने का स्थान, रास्ते से २ फुट ऊपर रहे । कक्ष की ऊंचाई फर्श से छप्पर तक (‘स्लैब’ के ऊपर के अग्र तक) १० फुट रखें ।
४. भोजनकक्ष में ५ फुट (लंबा) × सवा दो फुट (चौडा) × ढाई फुट (ऊंचा) आकार का कडप्पा से बनाया हुआ ओटा (कट्टा) बनवाएं उसमें ‘स्टील का सिंक’ बिठाएं । मार्बल का ओटा न बनाएं ।
५. ‘घर में भूमि के बल चलनेवाले प्राणी न आने पाएं, इसलिए प्रत्येक दरवाजे पर चौखट बिठाएं ।
५ इ. नल जोडना
१. यदि पंप से टंकी तक तथा वहां से अंदर तक नल जोडना हो, तो अच्छी गुणवत्ता (क्वॉलिटी) की पाइप एवं ‘प्लंबिंग फिटिंग्ज’ (नल जोडने हेतु आवश्यक छोटी-बडी सामग्री) प्रयुक्त करें । ‘पाईपलाइन’ के लिए दी जानेवाली मुख्य टोंटी (कॉक) सहजता से चालू तथा बंद करना संभव हो, ऐसे स्थान पर लगाएं ।
२. यदि पानी के निकास की (ड्रेनेज की) व्यवस्था नहीं है, तो घर के बाहर बाजू में ६ फूट (लंंबा) × ४ फूट (चौडा) × ६ फूट (ऊंचे) आकार का ‘सेप्टिक टैंक’ बिठाएं । उसकी बाहरी दीवार ९ इंच मोटी एवं अंदर की दीवार (कप्पे) ६ इंच मोटी होनी चाहिए । गंदा पानी बहाकर ले जाने के लिए भी अच्छी गुणवत्ता के पाईप तथा फिटिंग्ज का उपयोग करें, जिससे भविष्य में देखभाल तथा मरम्मत में अडचन नहीं आए ।
३. प्रसाधनगृह तथा भोजनकक्ष से आनेवाले जल को इस टंकी से न जोडें । इस पानी के लिए एक अलग गड्ढा बनाकर उसमें ईंटों के कुछ टुकडे डालें (इसे ‘शोषगड्ढा (सोक पिट)’ कहा जाता है ।) तथा उसमें पानी जाने दें ।
५ ई. बढई का कार्य
१. घर का मुख्य द्वार एवं कक्षों के अन्य दरवाजेे लकडी के हों । स्नानगृह एवं शौचालय में ‘फाइबर’ के दरवाजे बिठाएं । वहां लकडी के दरवाजे न बिठाएं ।
२. ‘स्लाइडिंग’ खिडकियां बनाने में अधिक व्यय होने से वैसी खिडकियां न बनाकर लकडी की खिडकियां बनाएं ।
३. घर में अलग अलमारी बनाने की अपेक्षा दीवार में ही अलमारी बनाएं ।
– श्री. मधुसूदन कुलकर्णी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.(१०.२.२०२१)