ब्रह्मध्वजा (गुडी) पर तांबे का कलश उल्टा रखते हैं । आजकल ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ लोग ब्रह्मध्वजा पर स्टील या तांबे का लोटा अथवा घडे के आकारवाला बरतन रखते हैं । धर्मशास्त्र के अनुसार ‘ब्रह्मध्वजा पर तांबे का कलश उल्टा रखने का अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन यहां दे रहे हैं । इससे हमारी संस्कृति का महत्त्व तथा प्रत्येक कृत्य धर्मशास्त्र के अनुसार करने का महत्त्व समझ में आता है !
१. ब्रह्मध्वजा पर रखा जानेवाला कलश उल्टा क्यों रखते हैं ?
कलश का मुंह भूमि की ओर होने से तांबे के कलश की रिक्ति से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों के कारण कलश में रखी गई नीम की पत्तियां और रेशमी वस्त्र सात्त्विक तरंगों से भारित हो जाते हैं । भूमि की आकर्षण शक्ति के कारण यह सगुण ऊर्जा प्रवाह भूमि की दिशा में प्रक्षेपित होने में तथा भूमि पर उसका सूक्ष्म आच्छादन बनने में सहायता मिलती है । कलश की दिशा यदि सीधी रखी गई, तो संपूर्ण रूप से ऊर्ध्व दिशा में तरंगों का प्रक्षेपण होगा तथा भूमि के निकट कनिष्ठ एवं मध्यम स्तर का शुद्धीकरण न होने से वायुमंडल के केवल एक विशिष्ट ऊर्ध्व पट्टे के ही शुद्धीकरण में सहायता होगी । इसके विपरीत तांबे के कलश के मुंह की दिशा भूमि की ओर रखने से उससे प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों का लाभ भूमि के निकट तथा मध्यम पट्टे में विद्यमान वायुमंडल को, साथ ही ऊर्ध्वमंडल को मिलने में सहायता होगी ।
२. तांबे के कलश में ब्रह्मांड की सात्त्विक तरंगों
को ग्रहण तथा प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होना !
ब्रह्मध्वजा पर रखे जानेवाले तांबे के कलश में ब्रह्मांड के उच्च तत्त्व से संबंधित सात्त्विक तरंगें ग्रहण तथा प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होती है । इस कलश से प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगों से नीम के पत्तों में विद्यमान रंगकणों के माध्यम से रजोगुणी शिव एवं शक्ति का वायुमंडल में प्रभावी प्रक्षेपण आरंभ होता है ।
३. कलश से प्रक्षेपित निर्गुण तरंगों का नीम तथा रेशमी
वस्त्र द्वारा प्रभावशाली पद्धति से ग्रहण एवं प्रक्षेपित होना
तांबे के कलश से प्रक्षेपित निर्गुण कार्यरत तरंगों का नीम के पत्तों के स्तर पर सगुण तरंगों में रूपांतरण होता है । उसके पश्चात ये तरंगें रेशमी वस्त्र के (ब्रह्मध्वजा पर रखे गए रेशमी वस्त्र के) माध्यम से प्रभावशाली पद्धति से ग्रहण की जाती हैं तथा आवश्यकता के अनुसार उन्हें अधोदिशा में प्रक्षेपित किया जाता है ।
४. नीम, कलश एवं वस्त्र, से वायुमंडल की शुद्धि होना
नीम के माध्यम से शिव-शक्ति से संबंधित कार्यरत रजोगुणी तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । इन तरंगों के कारण अष्ट दिशाआें का वायुमंडल, साथ ही तांबे के कलश से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों के कारण ऊर्ध्व दिशा का वायुमंडल तथा रेशमी वस्त्र से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों के कारण अधोदिशा का वायुमंडल शुद्ध एवं चैतन्यमय बनने में सहायता होती है ।
५. तांबे के कलश का मुंह भूमि की दिशा
में होते हुए भी उससे ऊर्ध्व दिशा के वायुमंडल का शुद्ध होना
ब्रह्मध्वजा के घटकों को देवत्व प्राप्त होने से तांबे के कलश की रिक्ति में विद्यमान घनीभूत नाद तरंगें कार्यरत होती हैं । इन नाद तरंगों में वायु एवं आकाश आदि उच्च तत्त्व समाए होते हैं अतः तांबे के कलश से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों की गति किसी फव्वारे की भांति ऊर्ध्वगामी होने से इन तरंगों के प्रक्षेपण के कारण ऊर्ध्व दिशा का वायुमंडल शुद्ध हो जाता है ।
– एक विद्वान [(श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळ ‘एक विद्वान’ इस उपनाम से भी भाष्य करती हैं ।] (१७.३.२००५, सायं. ६.३३)
६. कलशपर कुमकुमकी रेखाएं खींचनेवालेपर होनेवाला परिणाम
कलशपर कुंकमकी पाच रेखाए खींचनेका कृत्य भावपूर्ण और सेवाभावी वृत्तीसे करनेके कारण व्यक्तीमें शरणागत भाव का वलय निर्माण होता है । व्यक्तिके ओर शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है । उसके अनाहत चक्रके स्थानपर शक्तिका वलय निर्माण होता है । उसके हाथों द्वारा शक्तिकी तरंगे कलशमें आती है । ईश्वरसे चैतन्यका प्रवाह व्यक्ति की ओर आकृष्ट होता है । उसके अनाहतचक्रके स्थानपर चैतन्यका वलय निर्माण होता है ।
७. कलशपर होनेवाला परिणाम
ईश्वरसे शक्तिका प्रवाह कलश की ओर आकृष्ट होता है । भावपूर्ण रितीसे कलशको कुंकूम लगानेसे कुंकूमके कारण कलशपर मारक शक्तीकी तरंगे उपरसे निचेकी ओर प्रवाहित होती हैं । कलशके भीतरकी रिक्तीमें शक्तिके वलय निर्माण होते है । इन वलयोंद्वारा शक्तिके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । कलशमें शक्तिके कण घूमते रहते हैं । ध्वजपर कलश उलटा रखनेसे कलशके मुखद्वारा शक्तिका प्रवाह ध्वजके वातावरणमें भी प्रक्षेपित होता है । ध्वज सजानेके उपरांत उसे पिढेपर खडा किया जाता है ।