आपातकाल में अपनी रक्षा होने हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज समान गुरुनिष्ठा का कवच धारण करें !

 

१. हिन्दुओ, पीठ पर वार करनेवाले अफजल खान की
अंतडियां बाहर निकालनेवाले शिवाजी महाराज का इतिहास सदैव ध्यान में रखें !

श्री. चैतन्य दीक्षित

‘कुछ दिन पूर्व दुपहिये से जा रहे दो हिन्दुत्वनिष्ठों पर पीछे से तलवार से आक्रमण किया ।

 

२. संपूर्ण जीवन में अनेक बार
शिवाजी महाराज मृत्यु के जबडे से सकुशल बाहर
आए । प्रश्‍न है कि शिवाजी महाराज के पास वास्तव में कौन-सा कवच था ?

जो अफजल खान दोनों हाथों से लोहे की मोटी पहार सहजता से मोड सकता था, उसकी कटार शिवाजी महाराज का कवच क्यों नहीं भेद पाई ? शिवाजी महाराज का जीवनचरित्र पढने पर अफजल खान वध का प्रसंग, औरंगजेब की नजरकैद से छूटने का प्रसंग हो अथवा शिवाजी महाराज द्वारा पांच पातशाहियों का संहार हो । ऐसे कितने ही कठिन प्रसंग महाराजजी पर आए; परंतु प्रत्येक बार वे मृत्यु के जबडे से सकुशल बाहर आ गए । यह केवल उनके पास जो कवच था उसके कारण ही संभव हो सका । फिर यह कवच किसका था ? आगे दी हुई घटना पढने के उपरांत शिवाजी महाराज की रक्षा करनेवाले उस कवच की विशेषता ध्यान में आएगी ।

 

३. श्री विठ्ठल मंदिर में कीर्तन के लिए आए शिवाजी महाराज
को मुगल सैनिकों द्वारा घेर लेने की बात सुनते संत तुकाराम महाराज ने अपने जीवन में
पहली बार और वह भी शिवाजी महाराज की रक्षा के लिए विठ्ठल के चरणों में आर्तता से प्रार्थना करना

एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज संत तुकाराम महाराजजी का कीर्तन सुनने के लिए श्री विठ्ठल मंदिर में आए । तब मुगलों को इसकी भनक लग गई और उन्होंने तुरंत ही संपूर्ण मंदिर को घेर लिया । कीर्तन हो रहा था । संत तुकाराम महाराज को जैसे ही पता चला, उन्होंने अपने जीवन में पहली बार विठ्ठल के चरणों में प्रार्थना की, ‘शिवाजी महाराज मुगलों के घेरे से सरलता से निकल पाएं ।’ तब विठ्ठल ने मुगलों के सैनिकों को मंदिर के प्रत्येक श्रद्धालु के स्थान पर शिवाजी महाराज का प्रतिरूप दिखाया । इस कारण मुगल खरे शिवाजी को पहचान नहीं सके । इस प्रकार शिवाजी मुगलों के घेरे से सकुशल निकल आए ।

 

४. शिवाजी की श्री गुरु और संत पर दृढ निष्ठा होने से
ही उनके चारों ओर गुरुकृपा का कवच निरंतर कार्यरत होना

अब हमें ध्यान में आया होगा कि शिवाजी ने श्री रायरेश्‍वर के मंदिर में मुठ्ठी भर मावलों (सैनिकों) के साथ हिन्दवी स्वराज्य स्थापित करने की प्रतिज्ञा की थी । उस प्रसंग से अंत तक शिवाजी की उनके गुरु समर्थ रामदासस्वामी और संत तुकाराम महाराज पर अटूट निष्ठा थी । उस निष्ठा के कारण ही उनके आसपास कवच सतत कार्यरत था । वह कवच किसी धातु का नहीं, अपितु वह गुरुकृपा का था । हम सभी जन अपने श्री गुरु पर श्रद्धा और निष्ठा दृढ करेंगे, जिससे सूक्ष्म से सूक्ष्म ही नहीं, अपितु आपातकाल में हिन्दूद्वषियों से होनेवाले स्थूल के संभाव्य आक्रमणों से भी हमारी रक्षा होगी !

 

५. प्रार्थना

हे गुरुदेव, छत्रपति शिवाजी महाराज की जैसी समर्थ रामदासस्वामी और संत तुकाराम महाराज पर दृढ श्रद्धा थी, उसी प्रकार हमारी भी आपके और सर्व संतों के चरणों में दृढ श्रद्धा निर्माण होने दें । इसके साथ ही ‘हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सर्वस्व अर्पण कर, प्रयत्न करें’, यह आपकी ही इच्छा है और ‘उसके लिए आप ही हमसे प्रयत्न करवा रहे हैं’, ऐसा भाव हममें निरंतर जागृत रहने दें’, ऐसी श्रीचरणों में प्रार्थना है ।’

– श्री. चैतन्य दीक्षित, सनातन पुरोहित पाठशाला, रामनाथी, फोंडा, गोवा. (१९.२.२०१८)

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