मानसरोवर का महत्त्व

ब्रह्मदेव के मन में इस सरोवर की उत्पत्ति हुई और उसके पश्‍चात यह सरोवर पृथ्वी पर प्रत्यक्ष प्रकट हुआ । इसलिए इसे मानसरोवर कहते हैं । ब्रह्मपुत्र, सतलज, सिंधु, घाघरा (गंगा नदी की उपनदी) और सरयू आदि नदियों का यह उद्गम स्थान है । स्वच्छ आकाश में इस सरोवर के किनारे खडे रहने पर कैलाश पर्वत का दर्शन होता है । (अर्थात मुंबई से ४.५ कि. मी. आकाश में ऊपर पहुंचने पर हम जो ऊंचाई प्राप्त करते हैं, उतनी ऊंचाई पर यह सरोवर है ।) मानसरोवर की परिधि ८८ कि.मी. तथा विस्तार ४१० कि.मी. है । संक्षेप में, मानसरोवर महाराष्ट्र के पुणे शहर के बराबर है । मानसरोवर के किनारे हमने एक दिन निवास किया । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से हमारे मार्गदर्शक श्री. वारिद सोनीजी ने मानसरोवर के किनारे शिवयाग करवा लिया । विशेष यह था कि अन्य समय मानसरोवर के किनारे तीव्र गति से हवा चलती है; परंतु याग प्रारंभ होने पर हवा स्तब्ध हो गई और याग निर्विघ्न संपन्न हुआ । इसके उपरांत श्री. वारिद सोनीजी जो चांदी का बेलपत्र बनवाकर लाए थे, वह श्रीचित्शक्ति (श्रीमती)अंजली गाडगीळजी के करकमलों से मानसरोवर में अर्पण किया गया । -श्री.विनायक शानभाग, चेन्नई (१३.२.२०२०)

परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी की कृपा से दिव्यज्योतियों
(साक्षात देवता ओ)के ढाई घंटे तक अद्वितीय दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होना

मानसरोवर में ब्राह्ममुहूर्त पर दिव्य ज्योतियों के रूप में स्नान के लिए आए हुए ऋषि और देवता

प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त पर सप्तर्षि और देवता ज्योति के रूप में मानसरोवर में स्नान करने हेतु आते हैं और सूर्योदय से पूर्व ये ज्योतियां कैलास पर्वत की ओर शिवजी के दर्शन करने चली जाती हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से हम सबको इन दिव्य ज्योतियों के रात २.३० से तडके ५ बजे तक दर्शन हुए । यह सब गुरुदेवजी की कृपा है ।

इस संदर्भ में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती)अंजली गाडगीळजी ने कहा,इन दिव्यज्योतियों में से कुछ सिद्धयोगी तथा कुछ सप्तर्षि थे । कुछ ज्योतियां देवताओ के रूप में भी थीं, ऐसा प्रतीत हुआ । ये ज्योतियां अलग-अलग प्रकाश में हैं, ऐसा ध्यान में आया । कोई लाल, कोई नीली तथा कोई दैदीप्यमान प्रकाश में दिखाई दे रही थीं । ये ज्योतियां मानसरोवर में स्नान कर ऊंचाई पर उठ रही थीं । कुछ ज्योतियां एक की दो, दो की चार इस प्रकार हो रही थीं, यह भी ध्यान में आया । ऐसा भी प्रतीत हुआ कि ये ज्योतियां नृत्य कर रही हैं । पूर्वसुकृत हो अर्थात पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किए हों, तो लोगों को ये ज्योतियां २० सेकंड के लिए दिखाई देती हैं; परंतु हम साधकों को ढाई घंटे तक उनका स्थूल दर्शन मिला । उस समय हमने उनसे प्रार्थना की कि रामराज्य की स्थापना के लिए आप ही हमारी सहायता कीजिए । आपकी कृपा के बिना यह कार्य नहीं हो सकता । इस मंगल प्रसंग पर हमें प्रतीत हुआ कि ईश्‍वर ही परात्पर गुरु डॉक्टरजी के साधकों से मिलना चाहते हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपाछत्र के कारण ही यह संभव हुआ ।

उक्त दर्शन होने के उपरांत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने विश्राम किया। तब उन्हें स्वप्न में एक सिद्धपुरुष की आवाज सुनाई दी । वे बोले, हम रुद्रशक्ति हैं । इस स्वप्न के संबंध में श्रीचित्शक्ति गाडगीळजी ने कहा, चारमुखी रुद्राक्ष से ही रुद्रशक्तियों की निर्मिति होती है । रुद्राक्ष ब्रह्मदेव-सरस्वती से संबंधित है । रुद्र अर्थात शिव तथा मानसरोवर की उत्पत्ति ब्रह्मदेव से हुई है ।

कैलाश के संबंध में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने कहा, कैलाश पर्वत प्रचंड रहस्यमय है । वह शब्दातीत अर्थात मन और बुद्धि से परे है । कैलाश मानसरोवर यात्रा के संबंध में उन्होंने कहा, प.पू.डॉक्टरजी की कृपा से हमें गुरुकृपायोगरूपी प्राणवायु का मास्क ही मिला था । वही हमारे लिए ऑक्सिजन सिलेंडर का काम कर रहा था । इसलिए हम इस यात्रा में जा पाए । हमें केवल सेवा का अभ्यास था । शारीरिक दृष्टि से देखें, तो हम सक्षम नहीं थे । केवल गुरुदेव द्वारा दिए गए चैतन्य के कारण ही हम यह यात्रा सफलतापूर्वक कर पाए ।

-श्री.विनायक शानभाग (२०.२.२०२०)

5 thoughts on “मानसरोवर का महत्त्व”

  1. Aap ka mansarovar lekh bhot achha laga, AAP ney mansarovar ki Divya Jyoti is darshan karwaya ,aap ka bahot bahot aabhari rahege, agar AAP thoda jyada photo or vision bataya hota to jyada achha lagta . AAP ney bhot achhi tarah se dikhaya vaha ka darshan .
    Dhanywad

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  2. अत्यन्त सुन्दर व अति सुन्दर वर्णन।
    ॐ नमः शिवाय।

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  3. ॐ नमः शिवाय, गुरुवर
    दिव्य मानसरोवर के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा । बहुत बहुत धन्यवाद

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