‘प्राथमिक उपचार’ का साधारण अर्थ है, रोगी को चिकित्सकीय उपचार मिलने तक उस पर किए जानेवाले आरंभिक उपचार ! आधुनिक भागदौड भरी जीवनशैली के स्वास्थ्य पर बढते दुष्प्रभाव के कारण जहां हृदयविकार समान कुछ गंभीर रोग बढ रहे हैं, वहीं आधुनिक यंत्रों के उपयोग से बढती दुर्घटनाएं इत्याद़ि के साथ ही भावी तृतीय विश्वयुद्ध, प्राकृतिक आपदा, दंगे आदि का विचार करें; तो समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य के रूप में ‘प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण’ लेना, प्रत्येक जागरुक नागरिक के लिए आवश्यक है । पानी में डूबने से मूर्छित होना, हृदयविकार का आकस्मिक झटका आना, ऐसे अनेक प्रसंगों में चिकित्सा सहायता मिलने तक की अवधि अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है । कुछ मिनटों की कालावधि में मिले उचित प्राथमिक उपचार के कारण रोगी मृत्यु के द्वार से लौट सकता है । यह लेख पढकर तथा ‘प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण’ लेकर प्रत्येक जागरुक नागरिक उत्तम प्राथमिक उपचारकर्ता बने, यही ईश्वर के चरणों में प्रार्थना है !
१. तृतीय विश्वयुद्ध
युद्धकाल, नागरिकों के राष्ट्राभिमान का परीक्षाकाल होता है ! इस काल में अपने देश के लिए योगदान देना, प्रत्येक नागरिक का अलिखित राष्ट्रीय कर्तव्य है । युद्धजन्य परिस्थिति में तो सर्वाधिक हानि मानवसंसाधन की अर्थात नागरिकों एवं सैनिकों की होती है, जो राष्ट्र की खरी सम्पत्ति हैं । इसे रोकने के लिए और प्रत्येक नागरिक को युद्ध हेतु तैयार करने के लिए इंग्लैंड ने द्वितीय विश्वयुद़्ध के समय देश के नागरिकों की सहायता से अनेक स्थानों पर प्राथमिक उपचार के विशेष दल गठित किए थे । इन दलों ने घायल सैनिकों और नागरिकों पर समय पर प्राथमिक उपचार कर उन्हें बचाने के साथ-साथ उन्हें पुनः युद्ध के लिए तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । आज संसार तृतीय विश्वयुद्ध की कगार पर खडा है; इसीलिए आगामी युद्धकाल में राष्ट्रहितार्थ योगदान देने के लिए प्रत्येक नागरिक को ‘प्राथमिक उपचार’ का प्रशिक्षण लेकर राष्ट्रकर्तव्य निभाने का प्रयत्न करना चाहिए ।
२. प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित आपदा
प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित आपदा पता नहीं कब भीषण स्वरूप धारण कर ले । किसी राज्य की प्राकृतिक आपदा हो अथवा देशभर में दंगों के माध्यम से बार-बार होनेवाला हिंसाचार, ऐसी आपदाओ में मनुष्यहानि कम से कम हो, इसके लिए सदैव तैयार रहना; यह सरकार और प्रशासन के साथ ही नागरिकों का भी उत्तरदायित्व है । महाप्रलय (बाढ) व भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं, दंगे और अराजकता जैसी मानव-निर्मित आपदाएं और युद्धसमान राष्ट्रीय आपदा में प्राणहानि अधिक होती है । प्राकृतिक आपदा के समय सामाजिक बंधुत्व, युद्धकाल में राष्ट्रबंधुत्व और दंगे के समय धर्मबंधुत्व प्रत्येक को दिखाना होता है । ऐसे समय पर बहुसंख्यक समाज प्राथमिक उपचार से प्रशिक्षित होगा, तो प्राणहानि घट जाएगी ।
प्राथमिक उपचारक में आवश्यक गुण
१. व्यावहारिक गुण
१ अ. सुव्यवस्थितता : प्राथमिक उपचार करते समय सभी कृत्य शांति से, ध्यानपूर्वक, योग्य गति से, अचूक और सुव्यवस्थित करें ।
१ आ. मितव्ययता : प्राथमिक उपचार के लिए आवश्यक सामग्री अधिक हो अथवा अल्प, प्राथमिक उपचार की सामग्री का उपयोग मितव्ययता से करना चाहिए ।
१ इ. प्रसंगावधान, रचनात्मकता एवं अभ्यासी वृत्ति : घटनास्थल पर उपलब्ध साधनसामग्री और उपलब्ध व्यक्तियों की सहायता से प्राथमिक उपचार करने के लिए प्राथमिक उपचारक में प्रसंगावधान, रचनात्मकता और अभ्यासी वृत्ति होनी चाहिए ।
१ ई. संगठनकौशल्य : अनेक बार दुर्घटनास्थल पर कोलाहल होता है । ऐसे में सहकर्मी और दुर्घटनास्थल पर सहायता के लिए उपस्थित व्यक्ति के साथ संगठित रूप से काम करने की कुशलता प्राथमिक उपचारक में अवश्य होनी चाहिए ।
१ उ. नेतृत्वगुण : रोगी का निरीक्षण कर तुरंत निर्णय लेना, रोगी को धीरज बंधाना, उसे न्यूनतम कष्ट हो, इस ढंग से उसकी परिचर्या करना, रोगी के सगे-सबंधियों को युक्तिपूर्वक संदेेश भेजना, प्राथमिक उपचार के समय आवश्यकता अनुसार रोगी को चिकित्सालय भेजने का नियोजन करना आदि करने के लिए प्राथमिक उपचारक को स्वयं में नेतृत्वगुण विकसित करना अत्यंत आवश्यक है ।
२. मानसिक गुण
२ अ. निर्भयता : रक्त से लथपथ रोगी, घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु आदि प्रसंगों का प्राथमिक उपचारक निर्भयता से सामना कर पाए ।
२ आ. संयम : भूकंप, बाढ, बडा भवन धराशायी होना आदि आपदाओं के समय अनेक लोग घायल हो जाते हैं । साथ ही अन्य प्रकार की हानि भी बहुत होती है । ऐसे समय पर प्राथमिक उपचारक से संयमित और स्थिर रहकर उचित कृत्य करने की अपेक्षा की जाती है ।
२ इ. आज्ञापालन करना : प्राथमिक उपचार करते समय विशेषज्ञों का आज्ञापालन करना आवश्यक होता है ।
३. आध्यात्मिक गुण
३ अ. प्राथमिक उपचार ‘साधना’ है, यह समझना : व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्रगति हेतु किए जानेवाले प्रयासों को ‘साधना’ कहते हैं । ‘सकाम साधना’ और ‘निष्काम साधना’ साधना के दो प्रकार हैं । सकाम साधना, यह व्यक्तिगत अपेक्षाओं की (उदा. परिवार का कल्याण, संतानप्राप्ति आदि की) पूर्ति के लिए की जाती है, जबकि रोगी पर प्राथमिक उपचार करना तथा प्राथमिक उपचार करना सिखाना, यह समष्टि के हित के लिए की गई एक प्रकार की निष्काम साधना ही है !
३ आ. अखंड नामजप करना : उपास्यदेवता का नामजप कर किया कर्म (उदा. प्राथमिक उपचार) ‘अकर्म कर्म’ होता है, अर्थात कर्ता को उसका पाप-पुण्य नहीं लगता, अपितु उसकी ‘साधना’ होती है ।
३ इ. कर्तापन ईश्वर को अर्पण करना : प्राथमिक उपचारक रोगी पर उपचार करते समय ‘प्रत्येक कृत्य ईश्वर ही मेरे माध्यम से कर रहे हैं’, ऐसा भाव रखे, तो वह ‘निष्काम कर्मयोग’ होगा ।
३ ई. प्रीति (निरपेक्ष प्रेम) करना : ‘प्रेम करना’ अर्थात ‘प्रीति करना’ नहीं । प्रेम में अधिकांश समय अपेक्षा होती है । प्राथमिक उपचारक को अपेक्षा रखे बिना सेवाभावी वृत्ति से रोगी का उपचार करते रहना चाहिए !
गंभीर स्थिति के रोगी के लिए उपयोग की जानेवाली AB-CABS पद्धतिगंभीर स्थिति का रोगी अर्थात किसी भी कारण से हृदय-श्वसन प्रणाली रुकी हुई, मूर्छित, अत्यधिक अस्वस्थ अथवा उत्तर न देनेवाला रोगी । ऐसे रोगी को ‘मूलभूत जीवनरक्षक’ देते समय AB-CABS पद्धति का उपयोग करना उपयुक्त सिद्ध होता है । (इससे पूर्व प्राथमिक उपचार की ABC (दूसरा नाम DRSABCD) पद्धति का उपयोग किया जाता था ।) अंग्रेजी के प्रारंभिक अक्षरों से बना हुआ शब्द AB-CABS (पद्धति) मूलभूत जीवनरक्षक के महत्त्वपूर्ण चरण उचित क्रम से ध्यान में रखने में प्राथमिक उपचारक की सहायता करता है । AB-CABS शब्द में अंग्रेजी अक्षरों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है । A – Airway ? : रोगी का श्वसनमार्ग खुला है क्या ? B – Breathing ? : रोगी का श्वसनोच्छ्वास हो रहा है क्या ? C – Chest Compressions : छाती-दाबन करें । A – Opening the Airway : श्वसनमार्ग मुक्त करें । B – Breathing for the patient (30:2) : रोगी का ३० बार छाती-दाबन करने के पश्चात दो बार उसके मुंह से मुंह लगाकर श्वसन दें । रोगी का श्वासोच्छवास चलने पर (अथवा उक्त उपचारों के पश्चात रोगी का श्वसन ठीक और अपनेआप चलने पर) आगे दिए कृत्य तुरन्त क्रम से जांचें । S – check for Serious Bleeding : क्या गंभीर रक्तस्राव हो रहा है ? Shock : क्या मर्माघात हुआ है ? Spinal Injury : क्या मेरुदंड पर चोट लगी है ? |