धर्म की व्याख्या
समाजव्यवस्था उत्तम रखना, प्रत्येक प्राणी की ऐहिक और पारलौकिक उन्नति होना, ये बातें जिससे साध्य होती हैं, वह धर्म है’, ऐसी व्याख्या आदि शंकराचार्यजीने की है ।
‘धारणात् इत्याहु धर्मः’ अर्थात जो लोगों को धारण करता है, वह धर्म है, ऐसे भी धर्म की एक व्याख्या है । इसलिए धर्म सभी जडचेतन त्रिलोक को धारण करता है । जिस प्रकार दाहकता अग्नि का और शीतलता जल का धर्म है, वैसे ही गृहस्थधर्म, पत्नी धर्म, आदि भी प्रचलित हैं ।
वैदिक धर्म
हमारे धर्म के मूल आधार ४ वेद थे, इसलिए इसे वैदिक धर्म कहा गया ।
सनातन धर्म
‘सनातनौ नित्य नूतनः’ के अनुसार इस धर्म का आदि और अंत पता नहीं है, यह नित्य नूतन लगता है, इस कारण इसे सनातन धर्म कहा गया है ।
आर्य धर्म
भारत आर्यों की भूमि होने के कारण इसे आर्य धर्म भी कहा गया ।
हिन्दू धर्म
वास्तव में हिन्दू शब्द की व्याख्या है ‘हीनानि गुणानि दूषयति इति हिंदु ।’ अर्थात ‘हीन गुणों का नाश करनेवाला हिन्दू है ।’ इसका अर्थ यह है कि हिन्दू निरंतर उन्नति का विचार करनेवाली प्रवृत्ति है; इसलिए हिन्दू धर्म सर्वसमावेशक है ।
भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने “हिन्दुस्थान” नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश “हिन्दुस्तान” है । ‘‘बृहस्पति आगम” के अनुसार –
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है ।
हिन्दू शब्द का विरोध अनुचित है
अब कुछ स्थानों पर अज्ञानता के कारण हिन्दू ही प्रश्न उठाते हैं कि हिन्दुओं के किसी भी धर्मग्रंथ में ‘हिन्दू’ शब्द नहीं है, तो इसे हिन्दू धर्म क्यों कहें ? कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि विदेश से आक्रमण करने के लिए आए मुसलमानों ने पहले हमारे लिए हिन्दू शब्द का उपयोग किया, इस शब्द का अर्थ काफीर, गुलाम होता है; परंतु यदि इसे सत्य माना जाए, तो यह दावा करनेवाला कोई भी अरबी, फारसी तथा उर्दू भाषा के ग्रंथ में हिन्दू शब्द का अर्थ इस प्रकार बताया गया है, जो सत्य कभी दिखाते नहीं है ।
१. हिन्दू धर्म की मूल भाषा संस्कृत में भाषा की समृद्धि थी, एक शब्द के लिए अनेक पर्यायवाची शब्द होते थे, उदा. पानी के लिए जल, उदक, नीर, तोय, पय, अमृत, क्षीर, सलील, अंबु । इन सबका अर्थ एक ही होता था । ऐसे ही सनातन, आर्य, वैदिक धर्म का एक और पर्यायवाची नाम हिन्दू है ।
२. किसी भी भाषा में नए शब्द आते ही रहते हैं। पुराणकाल तो दूर, केवल २०१५ वर्ष पूर्व ईसाई, क्रिश्चियन ये शब्द अस्तित्व में नहीं थे । संभवतः १ सहस्र ५०० वर्ष पूर्व ‘इस्लाम’ शब्द भी नहीं रहा होगा । १०० से १२५ वर्ष पूर्व ‘रेडियो’, ‘टेलीविजन’ आदि शब्द भी नहीं थे, आज ये शब्द प्रचलन में रहने से किसी को आपत्ति नहीं है, तो केवल ‘हिन्दू’ शब्द के संदर्भ में आपत्ति किसलिए ? यदि पुराण का ही प्रमाण देना चाहें, तो आज भारत का सर्वत्र प्रचलित शब्द ‘इंडिया’ किसी भी पुराण में नहीं है ।
३. प्राचीन काल से ही इस देश के लोग ‘हिन्दू’ के नाम से, जबकि यह भू-प्रदेश ‘भारत’ और ‘हिन्दुस्थान’ के नाम से विख्यात है । ‘हिन्दू’ नामकरण ‘सिन्धु’ नदी के नाम से हुआ है । भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की “स्” ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन “स्”) ईरानी भाषाओं की “ह” ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर ‘हफ्त हिन्दु’ में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18) । इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दू नाम दिया । यूनानी (ग्रीक) सिन्धु’ शब्द का उच्चारण ‘इण्डस’ करते हैं । इस कारण उन्होंने हिन्दुओं को ‘इंडियन’ कहा । चीनी भाषा में ‘सिन्धु’ को ‘शिन्तू’ कहते हैं । इसीलिए चीनी यात्री ‘ह्यु-एन-त्स्यांग’ ने अपने लेख में भारतीयों का उल्लेख ‘जिन्तू’ अथवा ‘हिन्दू’ किया था । तात्पर्य यह कि ‘हिन्दू’ शब्द का प्रसार ईसाई और इस्लाम पंथ से बहुत पहले हो चुका था ।
४. पंचखंड भूमंडल में ‘भरतखंड (भारत)’ सर्वाधिक पुण्यवान है; क्योंकि यहां हिन्दू (सनातन) धर्म का अस्तित्व है । महर्षि अरविंद ने कहा था, ‘‘हम भारतीयों के लिए हिन्दू धर्म ही राष्ट्रीयता है । इस हिन्दू राष्ट्र का जन्म हिन्दू धर्म के साथ ही हुआ है तथा उसके साथ ही इस राष्ट्र को गति प्राप्त होती है । हिन्दू धर्म के विकास से ही इस राष्ट्र का विकास होता है ।’’
इन कारणों से हमारे मन में हिन्दू शब्द के प्रति निर्माण किया गया भ्रम निकालने की आवश्यकता है, तथा स्वामी विवेकानंद का दिया उद्घोष, ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, करने की आवश्यकता है ।