प्राचीन समय में गाय को गोधन कहा जाता था । गाय को केवल दुधारु पशु नहीं माना जाता था । ऋग्वेद एवं अथर्ववेद में गोपूजन है । ऋग्वेद में ‘गाय अवध्य है’, ऐसा स्पष्ट उल्लेख है । अनादि काल से हिन्दुओं को गाय से अगाध प्रेम है । गाय के लिए यहां युद्ध भी हुए हैं । पुराण एवं महाभारत में गाय के लिए प्राणार्पण करने के अनेक उदाहरण हैं । हिन्दुओं के लिए गोवध महापाप है ।
महाभारत में बताया गया भीष्म द्वारा गोदान विधि का वर्णन
भीष्म ने कहा- हे युधिष्ठिर ! गोदान से बढकर कुछ भी नहीं है । यदि न्यायपूर्वक प्राप्त हुई गौ का दान किया जाय तो उससे तत्काल समस्त कुल का उद्धार होता है। राजन, ऋषियों ने सत्पुरुषों के लिए समीचीन भाव से जिस विधि को प्रकट किया है, इन प्रजाजनों के लिए वही निश्चित किया गया है । इसलिए आदिकाल से प्रचलित गोदान की उत्तम विधि का मुझसे श्रवण करो ।
मांधाता एवं बृहस्पति का संवाद
पूर्वकाल की बात है, जब महाराज मांधाता के पास दान के लिए बहुत सी गौएं लायी गई थीं, तब उन्होंने ‘कैसी गौ का दान करें?’ इस शंका में पडकर बृहस्पतिजी से तुम्हारी ही तरह प्रश्न किया । उस प्रश्न के उत्तर में बृहस्पतिजी ने कहा, ‘गोदान करने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह नियमपूर्वक व्रत का पालन करके ब्राह्मण को बुलाकर अच्छी तरह उसका सत्कार करे और कहे, ‘मैं कल प्रातः काल आपको एक गौ दान करूंगा’ तत्पश्चात गोदान के लिए वह लाल रंग की (रोहिणी) गौ मंगाए और ‘समंगे बहुले’ कहकर गाय को संबोधित करे, तत्पश्चात गौओं के मध्य प्रवेश करके निम्नांकित श्रुति का उच्चारण करे- ‘गौ मेरी माता है। वृषभ (बैल) मेरा पिता है । वे दोनों मुझे स्वर्ग तथा ऐहिक सुख प्रदान करें । गौ ही मेरा आधार है ।’ ऐसा कहकर गौओं की शरण ले और उन्हीं के साथ मौनावलम्बन पूर्वक रात व्यतीत कर सवेरे गोदान काल में ही मौन भंग करे अर्थात बोले । इस प्रकार गौओं के साथ एक रात रहकर उनके समान व्रत का पालन करते हुए उन्हीं के साथ एकात्म भाव को प्राप्त होने से मनुष्य तत्काल सब पापों से मुक्त हो जाता है ।
गौ का दान करने के पश्चात मनुष्य को तीन रात तक गो व्रत का पालन करना चाहिए और गौओं के साथ एक रात रहना चाहिए । कामाष्टमी से लेकर तीन रात तक मात्र गोबर और गोदुग्ध का सेवन करना चाहिए । ‘जो पुरुष एक बैल का दान करता है, वह देवव्रती (सूर्यमण्डल का भेदन करके जाने वाला ब्रह्मचारी) होता है । जो एक गाय और एक बैल दान करता है उसे वेदों की प्राप्ति होती है तथा जो विधि पूर्वक गो दान यज्ञ करता है उसे उत्तम लोक मिलते हैं, नौजवान बैलों का दान उन गौओं के दान से भी अधिक पुण्यदायक होता है ।
गौ दान का क्या महत्व है?
धर्मशास्त्र के अनुसार मृत्योपरांत प्रत्येक जीव को परलोक यात्रा के समय एक विशेष वैतरणी नदी पार करनी पडती है जिसमें जीव अपने कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के कष्ट सहता है । अत: वैतरणी नदी की यात्रा को सुखद बनाने के लिए मृतक व्यक्ति के नाम वैतरणी गोदान का विशेष महत्व है । वैतरणी नदी बहुत तेज बहती है, इसका जल बहुत ही गरम और दुर्गंधयुक्त है और उसमें हड्डियां, लहू तथा केश आदि भरे हुए हैं । यह भी माना जाता है कि मरने के उपरांत प्राणी को पहले यह नदी पार करनी पडती है, जिसमें उसे बहुत कष्ट होता है । पापियों को यह नदी पार करने में बहुत कष्ट होता है । परंतु यदि उसने अपनी जीवितावस्था में गोदान किया हो, तो वह उस गौ की सहायता से सहज ही इस नदी के पार उतर जाता है ।