सत्संग ६ : नामजप में संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि करने हेतु आवश्यक प्रयास

१. प्रार्थना करना

नामजप अथवा कोई भी सत्कर्म करते समय, महत्त्वपूर्ण पहलू है ईश्वर से प्रार्थना करना ! प्रार्थना करने के कारण हममें याचकवृत्ति उत्पन्न होकर हमारा अहंकार अल्प होने में सहायता मिलती है । नामजप करने से पूर्व अपने इष्टदेवता से प्रार्थना करें, ‘हे प्रभु, मैं अब नामजप करना आरंभ कर रहा हूं । आप ही मुझसे यह नामजप करवा लें । यह नामजप मुझसे अच्छे प्रकार से हो तथा उसमें कोई विघ्न न आए’, यह आपके चरणों में प्रार्थना है । देवता को शरणागतभाव से प्रार्थना करने पर नामजप में आनेवाले विघ्न दूर होकर नामजप अच्छा होने में सहायता मिलती है ।

 

२. नाम को सांस के साथ जोडना

नामजप एकाग्रता से होने के लिए हम उसे अपनी सांस की गति से जोडने का प्रयास कर सकते हैं । हम सांस के कारण जीवित हैं; इसलिए सांस पर ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण होता है । उसके लिए पहले शांत बैठकर अपनी सांस पर ध्यान एकाग्र कर उसके पश्चात नामजप सांस के साथ जोडने का प्रयास करें, उदा. हम यदि ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप कर रहे हों, तो हम सांस अंदर लेते समय ‘श्री गुरुदेव’ शब्द बोल सकते हैं और सांस छोडते समय ‘दत्त’ बोल सकते हैं । जिनका नामजप अपनेआप हो रहा है, उन्हें उसे सांस के साथ जोडने की आवश्यकता नहीं है । हमारे शरीर में चल रही सांस ही अखंड चल रही है, इसका भान होने से हम नामजप भी अखंड होने हेतु उसे सांस की क्रिया से जोडने का प्रयास कर सकते हैं । यहां हमें यह ध्यान में लेना है कि हमें सांस की गति को नामजप जोडना है, नामजप के अनुसार सांस की गति को धीमी अथवा तीव्र नहीं करनी है ।

 

३. जाप को गति के साथ करना

नामजप करते समय मन में अनावश्यक विचार आ रहे हों, तो हम तीव्र गति से भी नामजप कर सकते हैं । जाप तीव्र गति से करने से जाप पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है । आगे जाकर मन जाप पर केंद्रित होने लगा, तो चरणबद्ध पद्धति से गति न्यून करें । अंततः सांस की गति को जाप की गति को जोडें । उससे भी गति न्यून हुई, तो अच्छा ही है । जाप को लय प्राप्त होने पर वह और अधिक अच्छा हो सकता है ।

 

४. दशापराधरहित नामजप करना

नामजप करते समय हमारे आचरण और बोलने की ओर भी हमें ध्यान देना आवश्यक है । एक ओर हम नामजप कर रहे हैं, तो दूसरी ओर हम लोगों के साथ उद्दंडतापूर्ण आचरण कर रहे है अथवा अन्यों को अपमानजनक बोल रहे है, तो क्या ऐसे नामजप से हमें लाभ मिलेगा ? इसीलिए नामजप दशापराधरहित ही होना चाहिए अर्थात नामजप करते समय हमारा आचरण सदाचरण ही होना आवश्यक है । साधुनिंदा करना, गुरुजनों का आज्ञापालन न करना, वेद-शास्त्र-पुराणों का अनादर करना, नामजप के बल पर पापाचरण करना जैसे कुछ दशापराध हैं । उन्हें हमें टालना है ।

नामधारक को ये अपराध टालने होंगे, अन्यथा उन अपराधों का परिमार्जन करने में पूरी साधना व्यर्थ हो जाती है और उसके कारण आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती, उदा. एक गाली देने से ३० माला, रिश्वत लेने से ५०० माला जप व्यर्थ होता है; इसलिए साधना करते समय केवल नामसाधना करना पर्याप्त नहीं है, अपितु अपनी अयोग्य आदतें, स्वभावदोष तथा अहंकार दूर करने के लिए प्रयास करने महत्त्वपूर्ण है ।

 

५. नित्य कृत्यों को जोडकर नामजप करना

हमारे मन पर नामजप का संस्कार अंकित हो; इसके लिए हम हमारे नित्य कृत्यों को जोडकर नामजप करने की स्वयं को आदत लगा सकते हैं, उदाहरणार्थ, गृहिणी हों, ताे वे भोजन बनाते समय नामजप कर सकती हैं । नामजप करते हुए भोजन बनाया, तो उस अन्न में भी सात्त्विकता आती है और उससे अन्न ग्रहण करनेवालों को भी उसका लाभ मिल सकता है । स्नान करते समय, व्यक्तिगत काम समेटते समय, मोबाईल अथवा टीवी देखते समय भी हम नामजप कर सकते हैं । कोई नौकरी के लिए बाहर निकल रहा हो, यात्रा करते समय, सब्जियां लाने के लिए जाते समय भी हम नामजप कर सकते हैं । प्रतिदिन रात को सोने से पहले हम ५ मिनट नामजप कर सकते हैं ।

आप में से कुछ लोगों को ऐसा लग सकता है कि अन्य कृत्य करते समय नामजप कैसे किया जा सकेगा ? तो इसका उत्तर सरल है और वह है उसे प्रत्यक्ष कर देखना । नित्य जीवन में भी हम कुशलता से एक ही समय ३-४ काम कर सकते हैं और कई बार करते भी हैं । ऐसा समझें कि हम सडक से चल रहे हैं, तो हम उस समय आजूबाजू देखते हैं, किसी ने हमारे लिए ‘हॉर्न’ बजाया तो हम बाजू में सरक जाते हैं, हम किसी के साथ बोलते हैं अथवा घर जाने पर क्या क्या करना है, इसकी भी मन में रूपरेखा बनाते हैं । इसका अर्थ नित्य कृत्यों को नामजप से जोडना हमारे लिए संभव हो सकता है । आरंभ में हमें यह नामजप प्रयासपूर्वक और मन की दृढता से करना पडेगा । एक बार यदि मन पर नामजप का संस्कार हो जाता है, तब वह सहजता से और अखंड हो सकता है ।

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