‘अपने परिवारके व्यक्तिका निधन हो जानेपर, आप कुछ समय उपरांत वहां पहुंचनेवाले हों तथा घरमें अन्य कोई भी साधना न करता हो, तो आप जहां हैं, वहींसे आगे दिए अनुसार मानस-उपाय कर सकते हैं अथवा वहां पहुंचनेपर प्रत्यक्षरूपसे कर सकते हैं ।
१. मृतदेहके चारों ओर बक्से (गत्ते) लगाना, प्रत्येक आधे घंटेके उपरांत उनके देहपर तीर्थ छिडकना, चमेलीकी उदबत्ती लगाना, श्री गुरुदेव दत्तका नामजप लगाना, मृतदेहके चारों ओर दत्तात्रेय देवताकी नामजप-पट्टियोंका मंडल बनाना इत्यादिसे मृतदेहपर होनेवाले अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण घट जाते हैं तथा लिंगदेहको गति प्राप्त होनेमें सहायता होती है ।
२. अंतिम संस्कारके उपरांत अगले तेरह दिनोंतक दत्तात्रेय गुरुसे लिंगदेहका ध्यान रखनेके लिए प्रार्थना करनेसे लिंगदेहको भी चैतन्य प्राप्त होता है तथा हमें और घरके सदस्योंको पितृदोषके कारण होनेवाले कष्ट भी घट जाते हैं ।
३. तेरह दिन मृत व्यक्तिका छायाचित्र दत्तगुरुके चित्रसे बांधकर रखने तथा उदबत्ती जलाकर रखनेसे लिंगदेहको गति मिलनेमें सहायता होती है । हमारे लिए प्रार्थनाद्वारा निरंतर दत्तात्रेय गुरुके चित्रमें विद्यमान चैतन्य जागृत करना संभव नहीं होता; क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि, हमारी प्रत्येक प्रार्थनामें भाव होगा ही । अत: उस स्थानपर उदबत्ती जलाकर रखनेसे दत्तात्रेय गुरुके चित्रमें विद्यमान चैतन्य जागृत रहता है तथा मृत व्यक्तिको इसका लाभ होता है ।
४. इन उपायोंसे वास्तुमें भी चैतन्य प्रसारित होता रहता है जिससे उस मृतदेहके स्पंदन भी नष्ट होनेमें सहायता होती है तथा इन स्पंदनोंके नष्ट होनेपर उनके आश्रयसे घरमें रहनेवाला उसका लिंगदेह भी घर छोडकर तत्काल अगली यात्रापर निकल पडता है ।
इस प्रकार मृत्युके उपरांत भी हम उस लिंगदेहको गति देनेके लिए, आध्यात्मिक स्तरपर इस प्रकारकी सहायता कर पितृ (पूर्वज) दोषके कारण हमें होनेवाला कष्ट घटा सकते हैं ।’
– पू. अंजली गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा