कई बार मृत्योपरांत के क्रियाकर्म केवल धर्मशास्त्र में बताई गई विधि अथवा परिजनों के प्रति कर्तव्य-पूर्ति के एक भाग के रूप में किया जाता है । अधिकांश लोग इनके महत्त्व अथवा अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से अपरिचित होते हैं । किसी कर्म के अध्यात्मशास्त्रीय आधार एवं महत्त्व को समझ लेने पर उस पर व्यक्ति का विश्वास बढ जाता है और वह उस कर्म को अधिक श्रद्धा से कर पाता है । जन्म-मरण के क्रम में परिजनों के मन सहज स्थिति में नहीं रहते । उनमें राग, शोक, भय आदि का प्रभाव बना रहता है। विक्षोभ की ऐसी अस्त-व्यस्त मानसिकता में धार्मिक प्रयोग सिद्ध नहीं होते। इसलिए उन विक्षोभों का शमन होने तक उन प्रयोगों को रोककर रखना उचित होता है। दाह संस्कार करने के अधिकार के संदर्भ में सूतक का क्या अर्थ है, यह हम समझकर लेते है ।
१. सूतक का अर्थ
व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचिता होती है, उसे ही सूतक कहते हैं ।
२. सूतक पालन के नियम क्या हैं ?
अ. मृत व्यक्ति के परिजनों को १० दिन तथा अंत्यक्रिया करनेवाले को १२ दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक का पालन करना होता है । सात पीढियों के पश्चात ३ दिन का सूतक होता है ।
आ. मृतक के अन्य परिजन (उदा. मामा, भतीजा, बुआ इत्यादि) कितने दिनों तक सूतक का पालन करें, यह संबंधों पर निर्भर है तथा उसकी जानकारी पंचांग एवं धर्मशास्त्रों में दी गई है ।
इ. विवाहित स्त्री के लिए माता-पिता का आशौच नहीं लगता, किंतु जब वह पिता के घर में बच्चा जनती है या मर जाती है तो क्रम से एक या तीन दिनों का आशौच लगता है। यदि मामा मर जाता है तो भांजा एवं भांजी एक पक्षिणी का अशौच निभाते हैं। (पक्षिणी अशौच – घटना के बाद उस समय से ले कर सूर्यास्त तक)
ई. यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता ।
३. सूतक में कौन से बंधन का पालन करना चाहिए ?
सूतक में अन्य व्यक्तियों को स्पर्श न करें । कोई भी धर्मकृत्य अथवा मांगलिक कार्य न करें तथा सामाजिक कार्य में भी सहभागी न हों । अन्यों की पंगत में भोजन न करें । सूतक समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) का सेवन कर शुद्ध हों ।
सूतक के संदर्भ में हमने विस्तृत रूप से समझा, अब आज की जीवनपद्धति को लेकर प्रश्न है कि आज की स्थिति में परिवार विघटित हो गए है, और नई पीढी एक-दूसरे को जानती भी नहीं, तो क्या सूतक रखना है ?
इसमे पहले यह ध्यान में रखें कि, श्राद्धकर्म श्रद्धा आधारित होते हैं तभी उनका उचित लाभ मिलता है। जहां भय, लाचारी तथा परेशानी के भाव आ जाएं, वहां श्रद्धाभाव समाप्त हो जाते हैं और कर्मकाण्डों का अधिक लाभ नहीं होता । इसलिए उचित यही है कि मन के अंदर से भय अथवा असमंजस निकालकर, शास्त्रविधानों का विवेकपूर्वक समुचित निर्वाह किया जाना चाहिए ।
अ. एक तो अधिक दूर के संबंधी हैं, तो उस व्यक्ति के संदर्भ में सूतक लगता ही नहीं है ।
आ. यदि व्यक्ति अन्य किसी राज्य अथवा देश में हो, और उसकी मृत्यु होने के उपरांत १० दिनों के अंदर हमें पता चले, तो शेष दिनों तक ही सूतक रख सकते हैं ।
इ. यदि हमें १० दिनों के उपरांत पता चले, तो सद्यःशौच (स्नान करके तुरंत शुद्धी) कर सकते हैं ।
☺️ Namskar, bahut achchhi, upyukta janakari ke liye Dhanyawad kya Ghar me kisiki mrutyu ke baad ek varsh ke bhitar shadi karna sahi hai ya galat .?? Krupaya uttar dijiye
Namaste
Hamare abhyas ke anusar Sapandikaran Shraddha hone tak nahi karna chahiye. Uske uparant mrutak se naata kitne paas ya dur ka hai uss ke upar vidhi thahrayi jaati hai. Iss vishay me prantanusar bhed hain, isliye krupaya aap aapke kul purohit, sthanik purohit ya ghar ke kisi bade buzurg vyakti se margdarshan le sakte hain.
Sanatan Sanstha