भारत के वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बोस ने कहा था कि वनस्पतियों में भी जीवन है । भारतीय संस्कृति में वृक्षों को भी देवता कहा गया है । इसलिए उनकी भी पूजा की जाती है । वैज्ञानिक तो अब कहने लगे हैं कि ‘वनस्पतियों में भी संवेदना होती है ।’ इससे भारतीय संस्कृति की महानता ध्यान में आती है !
नई देहली – शोध से पता चला है कि जब पेड-पौधों से पत्तियां तोडी जाती हैं, तो उन्हें वेदना होती है और वे चिल्लाते हैं । तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह शोध किया है । उन्होंने यह शोध टमाटर और तंबाकू के पौधों पर किया । इन शोधकर्ताओं के शोध के अनुसार, पौधे पर्यावरण अथवा बाहरी दबाव के कारण जोर से शोर करते हैं । इसे जांचने के लिए, उन्होंने माइक्रोफोन को वृक्ष से १० मीटर की दूरी पर रखा था । पेडों की हलचल की प्रविष्टियां (दर्ज) की गईं । इससे पता चला है कि जब पेड-पौधों पर दबाव पडता है, अर्थात उन्हें खींचा जाता है अथवा उनके पत्ते तोडे जाते हैं , तब वे २० से १०० किलो हर्टज (KHz) की अल्ट्रासोनिक फ्रिक्वेन्सी’ का उत्सर्जन करते हैं । जब पेड के पत्ते तोडे जाते हैं तब वे अपनी वेदना अन्य पेड-पौधों को बताने का भी प्रयत्न करते हैं । शोधकर्ताओं ने ३५ छोटे-छोटे यंत्र लगाए थे और पेडों की बारीक-बारीक गतिविधियों पर ध्यान रखा गया ।
जब टमाटर और तंबाकू के पौधों को कई दिनों तक पानी से बाहर रखा गया, तब उन्होंने ३५ अल्ट्रासोनिक डिस्ट्रेस साउंड निर्माण किए ।
इसका अर्थ यह है कि यदि पौधों को पानी नहीं दिया जाए, तो वे तनाव में आ जाते हैं । (मनुष्य वृक्ष-लताओ की आवाज नहीं सुन सकता है, तब भी जलवायु परिवर्तन (प्रदूषण) के कारण वे व्यथित हैं, यह समझकर मनुष्य को प्रकृति की रक्षा के लिए प्रयास करने चाहिए ! – संपादक)