पादसेवन भक्ति

विष्णुस्मरण तीसरी भक्ति है ! कभी भी वैकुंठवासी विष्णुजी का स्मरण किया, तो हमें श्रीविष्णुजी के चरणों के पास एक दिव्य स्त्री बैठी हुई दिखाई देती है । वह हैं देवी महालक्ष्मी ! उनकी भक्ति है पादसेवन भक्ति ! इसलिए तीसरेे प्रकार की भक्ति विष्णुस्मरण के पश्‍चात आती है चौथी भक्ति पादसेवन भक्ति !

कुछ लोगों ने ‘पादसेवन भक्ति’ शब्द पहली बार ही सुना होगा । पादसेवन भक्ति का क्या अर्थ है और यह भक्ति कैसे की जाती है, भक्ति के इस प्रकार में भगवान से कैसे एकरूपता साधी जाती है, आज हम यह सीखनेवाले हैं ।

भक्ति की इस पद्धति में भक्त को ईश्‍वर के सामने नतमस्तक होना, उनके चरणों के पास होना, ईश्‍वर के सामने मैं कुछ भी नहीं हूं और मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, यह भान होता रहता है । मैं नहीं, अपितु ईश्‍वर ही सबकुछ कर सकते हैं, भक्ति की इस पद्धति में यह भान प्रबल है । अर्थात नकारात्मक विचार करनेवाला व्यक्ति भी सहजता के साथ ईश्‍वरभक्ति कर सकता है । साधना की सीढी का अंतिम पडाव है अनन्य शरणागति ! यही यहां की पहली सीढी है । बाह्य और ऊपरी शरणागति एक आभास होती है । मन की अनन्यता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । अन्य कुछ नहीं चाहिए; केवल शरणागत हों ! शेष सब ईश्‍वर देख लेंगे । शरणागति भक्ति का आरंभ, मध्य और अंत भी है । ‘मै’पन और अहं का मूल स्वयं ही नष्ट करना ही पादसेवन भक्ति है ! केवल इस पादसेवन भक्ति से भी मनुष्य के संपूर्ण दोष एवं दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं और भगवान में अतिशय प्रेम और श्रद्धा निर्माण होकर उसे परम आत्मिक शांति की अनुभूति होती है ।

 

जीवन में ईश्‍वरचरणों का महत्त्व

हमारे जीवन में ईश्‍वर के चरणों का बडा महत्त्व है । ईश्‍वर के चरण देखने से मन अपनेआप उनके चरणों में शरणागत हो जाता है । ईश्‍वर की ओर देखकर आने की अपेक्षा ईश्‍वर के चरणों की ओर देखने पर शरणागति अधिक आती है ।

हम प्रार्थना भी ईश्‍वर के चरणों में करते हैं, कृतज्ञता भी उन्हीं के चरणों में व्यक्त करते हैं और हम उनके चरणों में ही शरणागत होते हैं । इस प्रकार हमारे जीवन में चरणों का स्थान कितना महत्त्वपूर्ण है, यह ध्यान में आता है ।

ईश्‍वर के चरणों में रहने का जो आनंद है, वह आनंद अन्यत्र कहीं भी नहीं है । ईश्‍वरीय चरणों का सान्निध्य मोक्षप्राप्ति से भी अधिक मूल्यवान है ।

१. माता लक्ष्मी की पादसेवन भक्ति !

हम शेषशायी भगवान श्रीविष्णुजी का चित्र देखते हैं, तो माता लक्ष्मी सदैव विष्णुचरणों में रहकर उनकी चरणसेवा करती हुई दिखाई देती हैं । माता लक्ष्मी का अर्थ विष्णुजी की हृदयस्वामिनी ! उन्होंने भगवान विष्णुजी के हृदय में स्थान प्राप्त कर लिया । माता लक्ष्मी विष्णुप्रिया हैं; परंतु तब भी वे श्रीविष्णुचरणों की अखंड सेवा करती हैं । यह उनकी पादसेवन भक्ति ही है । लक्ष्मी का अर्थ संपत्ति, धन की देवी; परंतु वे अपने अधिकार का बडप्पन न दिखाकर श्रीविष्णुजी की चरणसेवा में ही लीन रहती हैं । विष्णुजी के चरणों के सामने निरंतर नतमस्तक महालक्ष्मीजी ने हमारे सामने पादसेवन भक्ति का आदर्श रखा है ।

 भावार्चना : माता लक्ष्मी की पादसेवन भक्ति !

अब हम मन से श्रीलक्ष्मी नारायणजी का दर्शन करेंगे । सत्संग के सूत्रों के माध्यम से चैतन्य प्रदान करने तथा सभी साधकों को उनकी आध्यात्मिक उन्नति हेतु बल प्रदान करने के लिए साक्षात श्रीलक्ष्मी नारायणजी इस सत्संग में उपस्थित हैं । उनके द्वारा कृपाप्रसाद के रूप में दिए जा रहे इस सत्संग में कृतज्ञताभाव से हम उनका दर्शन करते हैं ।

चतुर्भुज, शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी श्रीविष्णुजी की नीली-सी कांति हमारा ध्यान आकर्षित कर रही है । ऐसे श्रीविष्णुजी के स्पर्श का अनुभव करते हैं । उनके चरणों की ओर देखते ही हम उनके चरणों का स्पर्श अनुभव करेंगे, ऐसा हमें लग रहा है । इस उद्देश्य से हम उनके चरणों की ओर जा रहे हैं । तभी मनोभाव से श्रीविष्णुजी की सेवा करनेवाली श्रीलक्ष्मी माता के दर्शन हमें हो रहे हैं । माता अत्यंत भावपूर्ण एवं विनम्रभाव से श्रीविष्णुजी की चरणसेवा कर रही हैं । हम कुछ क्षण उनकी ओर ही देख रहे हैं । उनके मुखमंडल पर पतिव्रत का तेज  है ।

‘पति तो परमेश्‍वर होता है’, ऐसा कहते हैं; परंतु लक्ष्मीमाता को पतिरूप में साक्षात परमेश्‍वर ही मिले हैं । यह देवीमाता परम सौभाग्यशालिनी हैं । पति के रूप में साक्षात परमेश्‍वर को प्राप्त करनेवाली लक्ष्मीमाता की साधना कितनी उच्च कोटि की होगी ?

बिना थके और ऊबे श्री लक्ष्मी माता श्रीविष्णुजी की अखंड चरणसेवा कर रही हैं । हमारे सामने ‘आदर्श सेवाभाव’ के रूप में ऐसी सेवाभावी विष्णुभार्या का आदर्श है । हम श्रीलक्ष्मीदेवी की ओर देख रहे हैं । वे अखंड विष्णुसेवा में ही लीन दिखाई दे रही हैं । हमारे मन में ‘लक्ष्मीमाता के मन में क्या भाव होता है ?’, यह जानने की उत्सुकता है । इसी उत्सुकता से हम माता लक्ष्मीजी से प्रार्थना करेंगे, ‘हे महालक्ष्मी, आप तो श्रीविष्णुजी के हृदय में वास करती हैं । आपको श्रीविष्णुजी की चरणसेवा की क्या आवश्यकता है ? आपने तो पहले ही श्रीविष्णुजी का मन जीत लिया है; परंतु तब भी आप श्रीविष्णुजी के चरणों की सेवा करती हैं । आप तो स्वयं देवी हैं । संपूर्ण विश्‍व में केवल आपकी आज्ञा से ही धनसंपत्ति कार्यरत है; किंतु तब भी आप कैसे इतनी सेवारत हैं ? आपके मन में और आपकी कोशिकाओं में इतना सेवाभाव कैसे है ? हे माते, हमें यह जानना है और यह सेवाभाव हमें भी सीखना है ।’

श्री लक्ष्मीमाता हमें इसका क्या उत्तर देंगी, उस भावस्पर्शी उत्तर को सुनने हेतु हम हाथ जोडकर श्रीविष्णुचरणों में खडे हैं । विष्णुभार्या नारायणी हंसते हुए हमें बता रही हैं । अमृत से भी मधुर शब्दों में वे हमें बता रही हैं, ‘मैं स्थूल से आपको श्रीविष्णुजी की सेवा करती हुई दिखाई दे रही हूं । इस चरणसेवा का यह अर्थ है कि श्रीविष्णुजी की अर्धांगिनी के रूप में मैं उनके प्रत्येक कार्य में सहभागी हूं । मैं उनके प्रत्येक कार्य में समर्पित हूं । अखिल ब्रह्मांडनायक श्रीविष्णुजी की सेवा ही मेरे दिन का आरंभ और अंत है । श्रीविष्णुजी केवल मेरे पति ही नहीं, अपितु वे मेरे गुरु भी हैं । वे मेरा सबकुछ हैं । उनकी चरणसेवा में ही मेरा सबकुछ है । उनकी चरणसेवा ही मेरे लिए परमोच्च आनंद है ।’

साक्षात महालक्ष्मीजी के ये वचन सुनकर हमें उनकी चरणसेवा का अर्थ समझ में आ गया । श्रीविष्णुजी के चरणों में निरंतर विनम्र रहनेवाली माता के चरणों में कैसे कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए, यह हमारी समझ में नहीं आता । हम विनम्र होकर माता से कह रहे हैं, ‘हे आदिमाता, आप समुद्रमंथन से प्राप्त १४ रत्नों में से ही हैं ना ! आपने समुद्रमंथन से बाहर आते ही श्रीविष्णुजी का चयन किया । श्रीविष्णु ही हमारे सबकुछ हैं, आपकी भांति हमें भी इसका भान रहे । हे माता, साक्षात देवी होते हुए भी आपको उसका कोई भान नहीं है । आप विष्णुजी की चरणसेवा में मग्न हैं । हे माता, हमारे अंदर भी आपके जैसा सेवाभाव उत्पन्न हो । आप जिस प्रकार श्रीविष्णुजी को गुरुरूप में देखती हैं, उसी प्रकार हमें भी हमारे गुरुदेवका, हमारे इष्ट देवता का निरंतर स्मरण हो । आप जिस प्रकार चरणसेवा के माध्यम से अपना सबकुछ समर्पित करती हैं, उसी प्रकार हमारे प्राण विष्णुसेवा के ही काम आए । हमारा शरीर, बुद्धि और मन सबकुछ महाविष्णुजी को समर्पित हो । हमसे अंतिम सांस तक लगन से ईश्‍वर की सेवा हो, यह आपके श्रीचरणों में अत्यंत आर्त प्रार्थना है ।

पादसेवन भक्ति का अर्थ ईश्‍वर के श्रीचरणों में लीन होना । भगवान को अपेक्षित शरणागति हममें केवल भगवान की पादसेवन भक्ति से ही आ सकती है, यह भाग ध्यान में आया । हम सभी सीख पाए कि माता लक्ष्मी स्वयं देवी हैं, उनका अधिकार कितना बडा है; परंतु श्रीविष्णुजी की हृदयस्वामिनी होते हुए भी वे श्रीविष्णुजी के चरणों में लीन रहती हैं । उन्होंने हमारे सामने यह आदर्श रखा है । हम भी प्रत्येक प्रसंग में भगवान के चरणों में किस प्रकार लीन और शरणागत रह सकते हैं, यह प्रयास करना है ।

२. सीता की पादसेवन भक्ति !

देवी लक्ष्मी की जिस पादसेवन भक्ति के संदर्भ में अभी हमने जो सुना, वह भक्ति तो उन्होंने केवल वैकुंठ में ही नहीं की, अपितु विष्णुजी के प्रत्येक अवतार के साथ वे भी अवतार धारण कर पृथ्वी पर आईं और उन्होंने पृथ्वी पर भी पादसेवन भक्ति चालू ही रखी । श्रीविष्णुजी के रामावतार में वे सीता बनीं, कृष्णावतार में वे रुक्मिणी के रूप में अवतरित हुईं, तो दक्षिण भारत में तिरुपति बालाजी अवतार में वे पद्मावती थीं ।

रामावतार में जब प्रभु श्रीरामजी १४ वर्ष का वनवास भोगने हेतु निकलने लगेे, तब सीतामाता ने कहा, ‘आप मेरी कैसी बिदाई लेते हैं, जहां राघव वहां सीता !’ माता सीता भी प्रभु की चरणसेवा करने अयोध्या का राजवैभव त्यागकर वनवास के लिए निकल पडीं । बचपन से ही जिसने अत्यंत सुख का भोग किया था, वे अपने सभी सुखों को त्याग कर अपने प्रभु के साथ वनवास का दुख सहन करने निकल पडीं; क्योंकि प्रभु का सान्निध्य ही उनके लिए सबसे बडा आनंद था और उस आनंद के सामने कोई भी वैभव उनके लिए तुच्छ ही था । भाग्यविधाता श्रीरामजी साथ में होने के कारण उन्हें वनवास का भय नहीं था । सीता तो भूमिपुत्री हैं । वे धरती के गर्भ से ऊपर आई हैं । ऐसी सीतामाता प्रभु श्रीरामजी से कहती हैं, ‘इन चरणों का लाभ लेने हेतु ही मैं धरतीमाता के गर्भ में छिपी हुई थी !’ क्या यह सीता की पादसेवन भक्ति नहीं है !

हम सभी अपना निरीक्षण करेंगे । जैसे सीतामाता को लगा, उस प्रकार भगवान की भक्ति के सामने क्या हमें भी सबकुछ तुच्छ लगता है, सीतामाता की भांति हमें ईश्‍वरचरणों का कितना महत्त्व लगता है, ईश्‍वर के चरणों में नतमस्तक रहें, उनकी सेवा करें; क्या हमें ऐसा लगता है, हम इसका निरीक्षण करेंगे । जिन चरणों की सेवा के लिए सीतामाता ने अपना जीवन समर्पित किया, उसी प्रकार ईश्‍वर के चरणों में हम भी अपना जीवन समर्पित करेंगे ।

Leave a Comment