संस्कृत को ‘मृत भाषा’ कहनेवालों को करारा तमाचा !
प्रत्येक घर में संस्कृत के जानकार और तकनीकी अभियंता
संस्कृत भाषा केवल सात्त्विक ही नहीं, अपितु आधुनिक तंत्रज्ञान में प्रगति के लिए भी लाभदायी है, मात्तूर गांव के उदाहरण से यह प्रमाणित होता है ।
शिमोगा (कर्नाटक) : जनपद के मात्तूर गांव की भाषा संस्कृत होने से इस गांव के रहनेवाले मूल निवासियों में ३० प्राध्यापक बेंगळूरु, मैसूरु और मंगळूरु के विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढा रहे हैं । विशेष बात यह कि इस गांव में प्रत्येक घर में न्यूनतम एक व्यक्ति संस्कृत का जानकार और तंत्रज्ञान क्षेत्र का अभियंता है ।
मात्तूर का ब्राह्मण समुदाय लगभग ६०० वर्ष पूूर्व केरल से यहां आया और यहीं का निवासी बन गया । यहां पुजारी से सब्जी-विक्रेता तक प्रत्येक व्यक्ति संस्कृत भाषा से जुडा है । क्रीडांगन में खेलते समय भी युवा संस्कृत में ही बातें करते हैं । ‘आप इस घर में संस्कृत में बातचीत कर सकते हैं’, इस गांव के कई घरों के द्वार पर ऐसा लिखा देखने में आता है । ‘संस्कृत में आगे रहनेवाले यहां के छात्रों को गणित और अन्य विषयों में भी इससे लाभ होता है’, ऐसा यहां के शिक्षकों ने बताया । संस्कृत, तमिल, कन्नड और तेलुगु भाषाओं से निर्मित ‘संकेती’ नामक दुर्लभ भाषा भी यहां बोली जाती है ।