आनंदपूर्ण क्षणों का स्मरण ही स्मरणभक्ति

जब हम से ‘आनंद के क्षणों’ के संदर्भ में पूछा गया, तब हम सभी को हमारे जीवन में आनंद के कौन-कौन से प्रसंग आए हैं, उनका स्मरण हुआ । अभीतक हम कदाचित वह न कर रहे हों अथवा वह विचार भी नहीं हुआ हो; परंतु अब निश्‍चितरूप से क्या-क्या हुआ है, ऐसे प्रसंगों का स्मरण हुआ होगा । उन स्मृतियों से हमारे जीवन में पुनः आनंद भर गया । उस प्रसंग में हमने जो अनुभव किया, वह आनंद हमें अब भी अनुभव करने को मिल रहा है, ऐसा हमें लगता होगा । इससे यह ध्यान में आता है कि आनंदपूर्ण क्षणों का स्मरण करने में कितना सामर्थ्य है । यही स्मरणभक्ति भी है । उससे यह ध्यान में आया कि हमें अच्छी बातों का स्मरण क्यों करना है, भगवान की हम पर कितनी कृपा है और उनका स्मरण क्यों करना है, यह सीखने को मिला । यही हमारे जीवन के आनंद के क्षण हैं । इसके आगे भी इसी प्रकार प्रयास करेंगे । अनावश्यक बातों का स्मरण करने की अपेक्षा अच्छी बातों का हमें स्मरण करना है । आनंद का स्मरण करने से हमारा जीवन निश्‍चितरूप से आनंदमय होनवाला है ।

जिस प्रकार हम भगवान का स्मरण करते हैं अथवा हमारे जीवन की अच्छी घटनाओं का स्मरण करते हैं, तब हमारे जीवन में एक अलग ही आनंद उत्पन्न होता है । केवल उनका स्मरण करना ही एक शक्ति है, यह हमारे ध्यान में आता है । अच्छी घटनाओं का स्मरण करने से मन का उत्साह बढता है । हमने स्मरण का अच्छा अनुभव किया है और इसके आगे भी स्मरण कर हमें स्वयं का निरीक्षण करना है । प्रत्येक बार मन किन अच्छी बातों का स्मरण करता है ? भगवान का स्मरण करता है अथवा अन्य बुरे प्रसंगों का ? अच्छे प्रसंगों के स्मरण से हमारे जीवन में आनंद भर जाएगा ।

 

निरंतर श्रीकृष्णजी का स्मरण करने से नींद में भी अर्जुन का कृष्णस्मरण
ही होता था । उनके शरीर के कण-कण से ‘कृष्ण, कृष्ण’ शब्द सुनाई देते थे ।

एक बार दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आपको अर्जुन सबसे प्रिय क्यों है ? तब श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि रात को जब अर्जुन सो जाए तब उसके कक्ष में जाना और उसकी छाती पर अपना कान लगाना । दुर्योधन ने जब नींद में सोए अर्जुन की छाती पर अपने कान लगाए तो उसे अर्जुन के हृदय की प्रत्येक धडकन में कृष्ण कृष्ण की ध्वनि सुनाई दी । वैसे ही निरंतर श्रीविठ्ठल का स्मरण करने से भक्त जनाबाई के बनाए उपलों से भी ‘विठ्ठल, विठ्ठल’ की ध्वनि आती थी । केवल इतना ही नहीं, अपितु जब भगवान श्रीकृष्णजी का जन्म हुआ, तब ‘कृष्ण का वध करना है’, इस विचार के कारण कंस का भी अखंड कृष्णस्मरण होता था । उसे इधर-उधर कृष्ण ही दिखते थे । भयवश ही क्यों न हो; परंतु अज्ञानवश किए गए कृष्णस्मरण से उसका भी उद्धार हुआ । हम ये सभी उदाहरण ध्यान में रखेंगे । हमने यदि मन:पूर्वक और भगवान के प्रति अपार प्रेम रखकर उनका स्मरण किया, तो हमें कितना लाभ मिलेगा, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । अतः अनावश्यक बातों पर विचार करने की अपेक्षा हम भगवान का ही अखंड स्मरण करते रहेंगे ।

सहकामी सुमिरन करै पाबै उत्तम धाम
निहकामी सुमिरन करै पाबै अबिचल राम।

संत कबीर कहते हैं, ‘जो फल की आकांक्षा से प्रभु का स्मरण करता है उसे अति उत्तम फल प्राप्त होता है। जो किसी इच्छा या आकांक्षा के बिना भगवान के प्रति प्रेम रखकर उनका स्मरण करता है, ऐसे निष्कामी भक्त कोे आत्म साक्षातकार का लाभ मिलता है ।’

सहकामी सुमिरन करै पाबै उत्तम धाम निहकामी सुमिरन करै पाबै अबिचल राम।

गुरुनानक देवजी कहते हैं

नाम सुमिरन करके अंधे भी रास्ते पा जाते हैं ।

प्रभु के कारण ही अथाह की थाह ज्ञात हो जाती है । कठिन दुर्गम असंभव काम भी प्रभु के नाम सुमिरन से आसान हो जाते हैं ।

नाम सुमिरन करके अंधे भी रास्ते पा जाते हैं ।

किसी भी पूजा-अर्चना में, उस विधि में, उसकी पूर्वतैयारी में, मंत्रों में अथवा उसके क्रियान्वयन में कोई चूकें हुई हों और उसके कारण संकल्पित कर्म में न्यूनता आई हो, तो ३ बार श्रीविष्णुजी का स्मरण करने से उत्पन्न दोष दूर हो जाते हैं और पूजन की संपूर्ण फलप्राप्ति होती है । इसके लिए पूजा के अंत में ३ बार विष्णुस्मरण किया जाता है । ऐसी है विष्णुस्मरण की महिमा ।

तो ऐसी अद्भुत है भगवान की स्मरण भक्ति । भगवान का स्मरण करते करते ऐसी अवस्था को पहुंचना चाहिए जहां हृदय भावविभोर हो जाए, द्रवित हो जाए, ईश्‍वर के स्मरण में, प्रेम में आंखों से आंसू आने लगें । भगवान का स्मरण न करें तो मन व्याकुल हो जाए । तो कल भी हम इसी विषय को आगे बढाएंगे और ईश्‍वर स्मरण में रहने का अधिकाधिक आनंद लेंगे ।

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