समर्थ रामदास स्वामीजी ने नामस्मरण को स्मरणभक्ति बताया है । वे कहते हैं,
स्मरण देवाचें करावें । अखंड नाम जपत जावें ।
नामस्मरणें पावावें । समाधान ॥ २ ॥
अर्थात भगवान का स्मरण करते जाएं । उनके नाम का अखंड जप करें । नामस्मरण कर संतुष्ट हों । सुख हो अथवा दु:ख मन उद्विग्न हो अथवा चिंता में, सर्वकाल और सभी प्रसंगों में नामस्मरण करते जाएं । चाहे आनंद हो, कठिन काल हो, पर्वकाल हो अथवा अनुकूल काल हो, विश्राम अथवा निद्रा का समय हो, नामस्मरण करते जाएं । कोई कठिन प्रसंग हो, कोई समस्या आई हो, किसी संकट में फंसे हों; नामस्मरण करते जाएं । चलते-बोलते, व्यवसाय करते समय, भोजन करते समय, सुख में अथवा विविध उपभोग करते समय नाम लेना न भूलें ।
गीता में कहा है –
अनन्यचेताः सततं
यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ
नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥८- १४॥
हे अर्जुन! जो पुरुष मुझमें अनन्य-चित्त होकर सदा ही निरंतर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य-निरंतर मुझमें युक्त हुए योगी के लिए मैं सुलभ हूं, अर्थात उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूं ॥
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जीवन में पहले बुरी स्थिति और उसके पश्चात अच्छा समय अथवा पहले अच्छा समय और उसके पश्चात बुरी स्थिति आई; प्रसंग चाहे अच्छे हों अथवा बुरे, तब भी नाम लेना न भूलें । नाम लेते रहने से संकट नष्ट हो जाते हैं । सभी विघ्नों का निवारण होता है । नामस्मरण से उत्तम गति अथवा पदों की प्राप्ति होती है । निष्ठा और श्रद्धा से नाम लिया जाए, तो भूतपिशाच की बाधा नष्ट होती है । ब्रह्मराक्षस का भी कष्ट दूर हो जाता है । नाम से विषबाधा दूर होती है ।
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नामस्मरण करते रहने से अंत काल में उत्तम गति प्राप्त होती है ।
गीता के आठवें अध्याय के ५वें से ७वें श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को स्मरणभक्ति का गूढ रहस्य समझाते हुए कहते हैं –
अन्तकाले च मामेव
स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं
याति नास्त्यत्र संशयः ॥८- ५॥
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ॥5॥
यं यं वापि स्मरन्भावं
त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय
सदा तद्भावभावितः ॥८- ६॥
और हे कुंती पुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अपने अंत समय में जिस-जिस भाव को स्मरण करता हुआ अपने शरीर का त्याग करता है, वह उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि जीवन भर वह सदा उसी भाव में रहता है ॥6
तस्मात्सर्वेषु कालेषु
मामनुस्मर युध्य च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धि-
र्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥८- ७॥
इसलिए हे अर्जुन ! तू हर समय निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर । इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा ॥7॥ यहां श्रीकृष्ण बताना चाहते हैं कि मनुष्य को निरंतर परमात्मा का ही चिंतन करते हुए अपने सब कर्तव्य निभाने चाहिए । निरंतर परमेश्वर के स्मरण में रहनेवाला जीव अंत में उस परमेश्वर को ही प्राप्त होता है ।
- नाम का महत्त्व और महत्ता स्वयं भगवान श्री शिवजी भी जानते हैं । वे विश्वेश्वर लोगों को नामस्मरण का उपदेश देते हैं ।
भक्त रहीमदासजी बताते हैं –
रहिमन धोखे भाव से मुख से निकसे राम
पावत पूरन परम गति कामादिक कौ धाम ।
यदि कभी धोखा से भी भावपूर्वक मुंह से राम का नाम लिया जाए, तो उसे कल्याणमय परम गति प्राप्त होती है । भले ही वह काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा पाप से क्यों न ग्रस्त हो ।
रामनाम को उल्टा लेकर भी वाल्या डाकू से वाल्मिकि ऋषि बन गए और उन्होंने श्रीरामजी के जन्म से पहले ही भविष्य में घटनेवाले श्रीरामजी का चरित्र लिखकर रखा था । भक्त प्रह्लाद हरिनाम लेकर अनेक संकटों से बच निकले और उनका उद्धार हुआ ।
भज नरहरि नारायण तजि वकबाद
प्रगटि खंभ ते राख्यो जिन प्रह्लाद ।
रहीमजी कहते हैं, सारे तर्क-वितर्क बकवास को छोडकर नारायण प्रभु के नाम भजो । स्मरण करो, जिन्होंने खंभा
फाडकर नरसिंह रूप में प्रगट होकर प्रह्लाद की रक्षा की थी । वही ईश्वर सर्वत्र विद्यमान हैं और वही सबके रक्षक हैं ।
नारायण नाम का जप कर अजामिल पवित्र हो गए । नाम के कारण पत्थर भी तैरने लगे और प्रसिद्ध सेतु बन गया । अनेक भक्तों का उद्धार हुआ । अत्यंत पापी लोगों ने भी नाम का जप कर स्वयं को पावन और पवित्र कर लिया । परमेश्वर के अनेक नाम हैं । नित्यनियम से यदि उनका स्मरण किया, तो मनुष्य पार हो जाता है । नामस्मरणधारी को यमयातनाएं नहीं होतीं । परमेश्वर के अनंत नामों में से कोई भी नाम लेने से भगवान उसका उद्धार करते हैं । भगवान के असंख्य नामों में से मन से एक नाम जपते जाएं । नाम का स्मरण करते रहने से मनुष्य पुण्यात्मा बन जाता है । मनुष्य ने कुछ नहीं किया; परंतु अपनी वाणी से केवल रामनाम जपा, तब भी भगवान संतुष्ट होते हैं और भक्त का पालन करते हैं । नाम से पाप के बडे-बडे पर्वत नष्ट हो जाते हैं । नाम की महिमा इतनी अपरंपार है कि उसका संपूर्ण वर्णन करना संभव नहीं है । नामस्मरण से अनेक लोगों का उद्धार हो चुका है । रामनाम के कारण प्रत्यक्ष महादेव भी हलाहल विष से सुरक्षित बच गए । नाम सदैव लेना चाहिए और उसे लेते समय मन में भगवान के रूप का स्मरण करें । इस प्रकार तीसरी भक्ति बताई गई है ।
कबीर कहते हैं
राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट ।
अंत काल पछतायेगा, प्राण जायेगा छूट ॥
ईश्वर का भजन अत्यंत सुगम है । राम नाम जितना लूट सकते हैं, हमें अवश्य लूटना चाहिए ।
मृत्यु के समय राम नाम न ले पाने से अत्यंत दुख होगा ।
भगवान को अपनी अनन्य भक्ति करनेवाला भक्त जो सतत उनके ही स्वरूप का चिंतन करता रहता है, ऐसा भक्त ही सबसे अधिक प्रिय होता है । वह उसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते । उन्होंने दुर्योधन के राजसी पकवान ठुकराकर सतत कृष्ण स्मरण में रहने वाले विदुर और उनकी पत्नी के घर साधारण साग सब्जी ग्रहण करना स्वीकार किया था । विदुर के घर जब भगवान कृष्ण गए तब विदुर की पत्नी भक्ति में इतनी भाव विभोर हो गई कि अपना सुध-बुध ही खो बैठी और उसी अवस्था में भगवान को केले खिलाने लगी । भक्ति में डूबी वह केले के छिलके भगवान को देती और केले फेंक देती थी । भगवान भी तब उसकी भक्ति के अधीन बडे चाव से केले के छिलके ही खाते रहे । उसी चाव से भक्तवत्सल श्रीकृष्ण ने सुदामा के सत्तू खाए थे और श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर ।
गोंदवलेकर महाराज कहते हैं, ‘‘समझो, एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से मिलने हेतु ९ मील दूर स्थित स्थान पर जाना था; इसलिए वह घर से निकला; परंतु ३ मील जाने पर ही जिससे मिलना था, वह उसे मिल गया । ऐसे समय उसका काम बन गया; इसलिए वह और आगे जाने के लिए परिश्रम नहीं करेगा, उसी प्रकार तीसरी अर्थात स्मरणभक्ति करने से अगली ६ भक्तियों का फल मिलता है ।
स्मरणभक्ति के कारण भक्ति का आगे का मार्ग सुलभ होनेवाला है, यह ध्यान में रखते हुए हम भगवान का अधिकाधिक स्मरण करने का प्रयास करेंगे ।
स्मरणभक्ति कैसे करें ?
ईश्वर का स्मरण तो एक प्रकार से हमारा पुनर्जन्म ही होता है; क्योंकि उनका स्मरण करने से हमारे मन में चल रहे असंख्य विचारों का तूफान थम जाता है और हमारे मन को एक प्रकार की शांति मिलती है । ईश्वर का केवल स्मरण करने से ही हमें सभी पापों से मुक्ति मिल सकती है । उनके केवल स्मरण से हमारा संचित और प्रारब्ध नष्ट होता है, साथ ही हमारे सभी दोष-अहं और पाप धुल जाते हैं । यही तो है पुनर्जन्म !
लक्ष्य – सवेरे उठने से लेकर रात को सोनेतक हमारा प्रत्येक क्षण ईश्वर के स्मरण में कैसे व्यतीत हो, इसके लिए हम सभी प्रयास करेंगे । सवेरे जगने पर हम सबसे पहले ईश्वर अथवा हमारे इष्टदेवता का स्मरण करेंगे और यह कृतज्ञता व्यक्त करें कि आज भी मेरी सांस चल रही है । मुझे एक नया सवेरा और नया जीवन मिला है, जिसे मुझे पूर्णरूप से ईश्वर-स्मरण के आनंद में ही अनुभव करना है ।
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इसी प्रकार प्रत्येक कृत्य जैसे व्यक्तिगत कार्य, अल्पाहार तथा पानी पीते समय, प्रत्येक काम का आरंभ करने से पूर्व, साथ ही उसे करते समय बीच-बीच में उनका स्मरण करना और अंत में स्मरण कर कृतज्ञता व्यक्त करना; इस माध्यम से हमें अखंड भगवान के स्मरण में ही रहना है ।
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कई बार हम कठिन प्रसंग और कठिन परिस्थिति में होते हैं । उससे बाहर निकलना हमें संभव नहीं होता । हमारे मन पर उसी का तनाव होता है; परंतु भगवान का स्मरण ही उससे बाहर निकलने का उपाय है । ऐसी स्थिति में ‘भगवान का स्मरण कर उसमें भगवान को क्या अपेक्षित है ?, यह उन्हीं से पूछना और उसके अनुसार प्रयास करना’, इस दिशा में हम प्रयास करेंगे । इस सप्ताह हम इसी दिशा में प्रयास करेंगे ।
My wife expired on Saturday afternoon now i am totally blank so in this situation what can I do and suggest me that nitya namm smaran of wich bhagwan
Namaskar,
You can chant ‘Shri Gurudev Datta’ the name of Deity Dattatreya as much as possible for your deceased wife till her thirteenth day. Deity Datta is the one who gives momentum to the atma for its further sojourn in the higher subtle planes after death. Hence, along with chanting the name of Deity Datta, pray to Him to remove obstacles and provide momentum to upward sojourn of your wife’s soul.
After the thirteenth day also you can continue chanting the name of Deity Datta. Along with this chant, you can also do the chant of your family Deity.
To know about why and how to do these chants, please refer the following links –
1. https://www.sanatan.org/en/a/171.html
2. https://www.sanatan.org/en/a/130.html