जलप्रलय की दृष्टि सेे भौतिक स्तर पर क्या पूर्व तैयारी करनी चाहिए ? : भाग ४ 

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‘भीषण बाढ की प्रत्यक्ष स्थिति उत्पन्न होने पर क्या सावधानी बरतें ?’, इस संदर्भ के मार्गदर्शक सूत्र

वर्ष २०१९ में महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के कुछ शहरों में भीषण बाढ आने पर योग्य कृत्य करने का ज्ञान न होने के कारण अनेक नागरिक भ्रमित हो गए थे । ऐसे अवसर पर नागरिकों द्वारा अयोग्य कृत्य करने अथवा निर्णय लिए जाने की संभावना होती है । ऐसा होने से रोकने के लिए ‘भीषण बाढ की प्रत्यक्ष स्थिति उत्पन्न होने पर क्या सावधानी बरतनी चाहिए ? बाढ के कारण घर छोडकर सुरक्षित स्थान पर जाते समय क्या करना चाहिए ? तथा बाढ उतरने पर बरती जानेवाली सावधानी’, इस संदर्भ में मार्गदर्शक सूत्र आगे दिए हैं ।

भाग ३ पढने के लिए आगे बताई लिंक पर क्लिक करें : https://www.sanatan.org/hindi/a/30483.html

९. भीषण बाढ की प्रत्यक्ष स्थिति उत्पन्न
होने पर निम्नांकित सावधानी बरतकर सुरक्षित रहें !

अ. पानी का उपयोग मितव्ययिता से करें । उबला हुआ और कीटाणु रहित पानी पीना चाहिए । संभवतः बासी भोजन न करें तथा भोजन ढककर रखें ।

आ. विद्युत उपकरण पानी में जा रहे हों, तो उनका विद्युत प्रवाह त्वरित बंद करें । ऐसी परिस्थिति में उनका उपयोग न करें ।

इ. घर में पानी घुसा हो, तो बिजली के खंभे से घर में आनेवाला विद्युत प्रवाह खंडित करना चाहिए । पानी और बिजली का आपस में संपर्क होने पर बिजली का झटका लग सकता है ।

ई. घर की निचली मंजिर पर पानी आने पर उससे बचने के लिए ऊंचे स्थान पर (पहली मंजिल, दूसरी मंजिल, छत पर) रहने के लिए न जाएं । इसका कारण है कि पानी का स्तर अधिक बढने पर घर से बाहर निकलकर सुरक्षित स्थान पर जाना असंभव होता है । इसलिए सरकार द्वारा बाढ पीडितों के लिए बनाए गए आश्रय स्थान पर पहले ही( पानी का स्तर जब अल्प होता है) जाना चाहिए ।

उ. भ्रमणभाष का अत्यधिक उपयोग न कर आवश्यक होने पर ही उसका उपयोग करना चाहिए । वर्तमान में घर में सबके पास भ्रमणभाष होने के कारण संपर्क के लिए एक व्यक्ति के भ्रमणभाष का ही उपयोग कर सकते हैं । जिससे एक ही समय सबके भ्रमणभाष की बैटरियां ‘डिस्चार्ज’ होकर अडचन नहीं आएगी ।

ऊ. बाढ के पानी में वाहन फंसना, वाहनों की भीड होना, ऐसी घटनाएं घटती हैं । इस कारण बाढ पीडित क्षेत्र में दोपहिया अथवा चारपहिया वाहन न ले जाएं । घर अथवा अन्यत्र वाहन रखने पर वे जंजीर से बांधकर रखें, जिससे वे पानी के प्रवाह में नहीं बहेंगे ।

ए. घर के छोटे बच्चे, वृद्ध तथा अपंगों की ओेर विशेष ध्यान देना चाहिए, तथा उन्हें धीरज बंधाएं ।

ऐ. आपातकालीन स्थिति में कुछ अफवाहें सर्वत्र प्रसारित होती हैं । इसलिए किसी भी प्रकार की अफवाहों पर विश्‍वास न करें । सरकार द्वारा अधिकृत प्रसारित जानकारी पर विश्‍वास करें ।

 

१०. स्वास्थ्य की दृष्टि से बरती जानेवाली सावधानी !

१० अ. ‘संक्रामक रोग न हों’, इसकी सावधानी बरतना

अतिवृष्टि के कारण सर्वत्र सीलन और आर्द्रता उत्पन्न होती है । सूर्य बादलों से ढंक जाने के कारण स्वच्छ सूर्यप्रकाश का अभाव रहता है । परिणामस्वरूप रोग के कीटाणु फैलकर संक्रामक रोग होने की संभावना बढती है । इस अवधि में अशुद्ध पानी के कारण होनेवाले रोग (पीलिया, आंत्रज्वर (‘टायफॉईड’), अतिसार (‘डायरिया’), लेप्टोस्पाइरोसीस इत्यादि) हो सकते हैं । इसलिए स्वास्थ्य की विशेष चिंता करें ।

१० आ. मच्छर प्रतिबंधक अगरबत्ती का उपयोग करना

भीषण बाढ के समय बडी मात्रा में मच्छरों का प्रादुर्भाव होता है । इस कारण मलेरिया, डेंगू जैसे रोग हो सकते हैं । परिसर में मच्छरों का प्रादुर्भाव बढने पर मच्छरदानी अथवा मच्छरों को दूर करने के लिए मच्छर प्रतिबंधक अगरबत्ती, मच्छर न काटें, इसके लिए मल्हम (उदा. ‘ओडोमॉस’) आदि का उपयोग कर सकते हैं ।

 

११. आध्यात्मिक स्तर पर किए जानेवाले प्रयत्न !

११ अ. ईश्‍वर को प्रार्थना करना

भगवान श्रीकृष्ण, ग्रामदेवता, स्थानदेवता और वास्तुदेवता को प्रति १५ मिनट अथवा आधे घंटे से मनःपूर्वक प्रार्थना करें, ‘हे ईश्‍वर हम आपकी शरण में आए हैं । आप ही हमें इस विपत्ति से तारिए । मेरे द्वारा आपका नामजप निरंतर होने दीजिए । मेरे, मेरे परिजन तथा मेरे घर के चारों ओर आपके नामजप का सुरक्षा कवच निर्माण होने दीजिए ।’

११ आ. अधिकाधिक नामजप करना

संपूर्ण दिन का अधिकाधिक समय भगवान श्रीकृष्ण अथवा कुलदेवता अथवा इष्टदेवता का नामजप करें । कलियुग में ‘देवता का नाम ही आधार’ होने के कारण मन ही मन नामजप करते रहें । नामजप लगाने की सुविधा हो, तो भ्रमणभाष अथवा स्पीकर पर नामजप लगाएं । इससे नामजप करने का स्मरण होगा ।

११ इ. अन्यों को सहयोग करते समय भाव कैसा रखें ?

इस आपदा में सभी को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए तथा मानसिक आधार देकर ईश्‍वर के प्रति श्रद्धा बढाने का प्रयत्न करना चाहिए । ‘सामाजिक बंधुत्व का पालन करना’ प्रत्येक का धर्मकर्तव्य ही है; परंतु अन्यों को सहायता करते समय ‘मैं सहायता नहीं कर रहा हूं, अपितु ईश्‍वर ही मुझसे यह करवा रहे हैं’, इस भाव से नामजप करते हुए सहायता करें । इससे हमारे मन में कर्तापन के विचार नहीं आएंगे तथा उस व्यक्ति से लेन-देन भी निर्माण नहीं होगा ।

(प्रस्तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराईट) ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ के पास  संरक्षित हैं ।) 

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