हिन्दुओ, ‘मंदिर में पैसे चढाने के बजाय, वही पैसा मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को दें’, ऐसा कहकर भ्रमित करनेवाले और हिन्दू धर्मियों की श्रद्धा पर आघात करनेवाले आधुनिकतावादियों का कपट पहचानें !

मुझे अपने मित्र की वॉट्सएप द्वारा पोस्ट मिली, ‘मंदिर में १५-२० रुपये देने के बजाय वही पैसे मंदिर के बाहर बैठे किसी भिखारी को दें । उसे कम से कम ५ रुपये के बिस्कुट का एक पैकेट दें ।’’ इस सूत्र पर अपने मित्र से मेरी चर्चा हुई ।

 

१. हिन्दुओं की श्रद्धा और मान्यताओं पर
आक्रमण कथित प्रगतिशील विचारकों का एक हथकंडा है !

१ अ. केवल हिन्दुओं को ही क्यों लक्ष्य बनाया जाता है ?

(कथित) प्रगतिशील केवल हिन्दू धर्म का ऐसा अपप्रचार कर रहे हैं । इन लोगों को केवल हिन्दुओं द्वारा अर्पण किया नारियल और चढाया धन दिखाई देता है; परंतु उन्हें दरगाह (मजार) पर चढाई चादरें और चर्च में प्रदूषण करनेवाली मोमबत्तियां नहीं दिखाई देती । वे इस पर कभी एक शब्द भी नहीं बोलते हैं ।

१ आ. ऐसे समय पर जब सभी क्षेत्रों में पैसा पानी की भांति
बहाया जा रहा है, मंदिर में चढाए गए धन के संदर्भ में ऐसा अपप्रचार क्यों ?

‘इन (कथित) प्रगतिवादियों को असीम संपत्ति बटोरनेवाले राजनेता नहीं दिखाई देते ? जब कुछ लोग क्रिकेट खिलाडियों को ५ करोड रुपए वेतन देने की मांग करते हैं, तब क्या उन्हें निर्धन नहीं दिखाई देते ? हाल ही में सभी मंत्रियों का वेतन बढाया गया है । तब, इन प्रगतिशील लोगों ने क्यों विरोध नहीं किया ?’, जागृत हिन्दुओं के मन में ऐसा सवाल उठना स्वाभाविक है । इसका उत्तर मिलना चाहिए ।

१ इ. निर्धनता क्यों बढी है ?’ इसका विचार न करना

आज भारत की ४०% जनता निर्धन है । हिन्दू निर्धनों को दान देते हैं; परंतु गत ७० वर्षों में कितने निर्धनों को लाभ हुआ है ? वर्तमान सरकार ने निर्धनता की समस्या के मूल कारणों को जाने बिना कितने उपाय किए हैं ? सतही उपाय किए भी गए होंगे; परंतु सरकार इसे लागू करने में कितनी सफल रही ?’ क्या ये प्रगतिवादी इस पर विचार करेंगे ? क्या वे सरकार से इसका जवाब मांगेगें ?

१ ई. यदि इन प्रगतिशील लोगों को निर्धनों के लिए इतनी ही
सहानुभूति है, तो उनके लिए रोजगार का प्रबंध क्यों नहीं करते ?

हम अनेक स्थानों पर भिखारियों को देखते हैं । उनमें से अनेक युवा भी हैं । प्रगतिशील लोगों को यदि निर्धनों पर इतनी दया आ रही है, तो उन्हें अब तक इन युवाओं को रोजगार देना चाहिए था । उन्हें भीख मांगकर खाने की आदत क्यों लगाई ?

१ उ. देश हित के विचार को ध्यान में रखते हुए कुछ विकसित देशों ने भीख मांगना
प्रतिबंधित किया है । ऐसे में ठोस उपायों के अभाववश भारत में भिखारियों की संख्या में वृद्धि होना

आज, कुछ विकसित देशों में भीख मांगना प्रतिबंधित है; क्योंकि वे जानते हैं कि यदि आज कोई व्यक्ति भीख मांगने लगे, तो उसकी देखादेखी कर अन्य भी भीख मांगने लगेंगे और भिखारियों की संख्या बढ जाएगी । इन विकसित देशों ने केवल राष्ट्र हित का विचार किया । इसलिए, आज उस देश के नागरिक काम करने के लिए तैयार हैं । क्या प्रगतिशील लोग इन सब बातों पर विचार करेंगे ? भिखारियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है, प्रगतिवादी इस पर ठोस उपाय करे; न कि केवल हिन्दुओं को मानवता की घुट्टी पिलाती रहे !

 

२. भिखारियों को दिए गए पैसे का उपयोग कैसे किया जाएगा, चूंकि
इसकी गारंटी नहीं, इसलिए हिन्दुओं ‘अपात्रे दान’ करके पाप के भागीदार न बनें !

श्री. ईशान जोशी

कुछ भिखारियों की बात ही अनोखी है । नीचे दिए कुछ उदाहरणों से ज्ञात होगा कि भिखारियों पर कितना विश्‍वास रखा जा सकता है ।

अ. मुंबई के एक प्रकरण में यह ध्यान में आया कि एक भिखारी का अपना अच्छा घर था । उसका अपना दोपहिया वाहन है । जैसे कोई नौकरी करता हो, इस प्रकार वे महाशय प्रतिदिन अपने वाहन से आते और भीख मांगकर चले जाते ! अब क्या इन्हें गरीब कहेंगे ?

आ. कुछ स्थानों पर भिखारी भीख मांगकर मिले हुए पैसों से जुआ खेलना, शराब पीना, सिगरेट पीना जैसे कुकर्म करते हुए बडे पैमाने पर दिखाई देते हैं । इसलिए, ऐसे लोगों को पैसा देकर, हम पाप के भागीदार बन जाते हैं, इसलिए समाज को इस सवाल के बारे में पता होना चाहिए कि ‘हम किसे दान दे रहे हैं ?’

 

३. मंदिरों में धन का उपयोग निर्धनों के कल्याण के लिए भी किया जाना

‘मंदिरों में चढाया जानेवाला धन निर्धनों के कल्याण के लिए उपयोग किया जाता है ।

इससे पता चलता है कि सभी लोगों की सभी प्रकार की समस्याओं को सुलझाने के लिए केवल हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है और हिन्दुओं को एकजुट होकर इसके लिए काम करना चाहिए ! ’

– श्री. ईशान जोशी (आयु २० वर्ष), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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