दस नामापराध कौन से हैं ?

१. नामजपकर्ता के लिए धर्माचरण आवश्यक

नामधारक को धर्माचरण करना चाहिए । ऐसा न करनेपर, अपराधों के परिमार्जन में ही पूरी साधना व्यय हो जाती है । इससे आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती ।

 

२. नामजपकर्ता को इन १० अपराधों से बचना चाहिए !

उपर्युक्त दस अपराध नामजप में अहितकर माने गए हैं । अतः, नामधारकको इनसे बचना चाहिए; अन्यथा उन अपराधों के परिमार्जन में पूरी साधना व्यय हो जाती है तथा आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती, ये दस दोष ‘नामापराध’ कहलाते हैं । वे दस नामापराध कौन से हैं इस विषय में ‘विचारसागर’ में आता है –

1. सत्पुरुष की निंदा

2. असाधु पुरुष के आगे नाम की महिमा का कथन

3. विष्णु का शिव से भेद

4. शिव का विष्णु से भेद

5. श्रुतिवाक्य में अश्रद्धा

6. शास्त्रवाक्य में अश्रद्धा

7. गुरुवाक्य में अश्रद्धा

8. नाम के विषय में अर्थवाद ( महिमा की स्तुति) का भ्रम

9. ‘अनेक पापों को नष्ट करनेवाला नाम मेरे पास है’ – ऐसे विश्‍वास से निषिद्ध कर्मों का आचरण और इसी विश्‍वास से विहित कर्मों का त्याग

10. अन्य धर्मों (अर्थात नामों) के साथ भगवान के नाम की तुल्यता जानना

ये दस नामापराध हैं । जिस प्रकार अस्वस्थता की स्थिति में केवल औषधि लेने से हम स्वस्थ नहीं हो सकते, अपितु औषधि के साथ हमें परहेज भी करना पडता है, वैसे ही नामजप का फल मिलना है, तो नामजप करनेवाले साधक को दोषों से बचना चाहिए । अन्यथा हम जप करते हैं; परंतु लाभ नहीं हो रहा है, ऐसे कहकर हम नामजप या गुरु को दोष देते हैं । वास्तव में अयोग्य वर्तन हमसे ही हो रहा होता है ।

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