रामनाथी (गोवा) – नाडीपट्टिका के माध्यम से महर्षिजी ने किए मार्गदर्शनानुसार रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम पर ३ दैवी कलशों की अक्षय तृतीया को स्थापना हुई । कलशारोहण के पहले कलशों के नीचे नवग्रहों के पत्थर रखे गए । काल का प्रतिनिधित्व करनेवाले इन कलशों की स्थापना से आश्रम को मंदिर का स्वरूप प्राप्त हो गया है । इन कलशों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सर्व देवी-देवता तथा ८८,००० ऋषिगण आकाशमंडल से चैतन्य प्रक्षेपित करेंगे और सर्व साधकों को आशीर्वाद देंगे । सनातन का कार्य विश्वभर में फैले और घोर आपातकाल में साधकों की रक्षा हो, इसके लिए महर्षिजी साधकों पर इन कलशोंें के माध्यम से कृपा का वर्षाव कर रहे हैं, इसके लिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ !
कलश को स्पर्श करते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और मंत्रपठन करते हुए वेदमूर्ति केतन शहाणे गुरुजी
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उजागर कलश – स्थापना का कारण !
१०.२.२०१६ को महर्षिजी ने तांबे के तीन कलशों की पूजा वसंतपंचमी के दिन करने के लिए बताई थी । तदुपरांत उन्होंने १२.२.२०१६ को इन तीन कलशों की स्थापना करने का शास्त्र बताया ।
वास्तुशास्त्र की दृष्टि से अर्धगुंबज, मंदिरों के कलश, दक्षिण भारत के मंदिरों के गोपुर और पिरेमिड, इन सभी का आकार देखने से ध्यान में आता है कि निचले हिस्से में चौडा और ऊर्ध्व (ऊपर की दिशा) में संकीर्ण होता जाता है । मंदिर सैकडों फुट ऊंचे होते हैं और इस दृष्टि से उनकी लंबाई और चौडाई भी निर्धारित आकार के और वास्तुशास्त्र के नियमानुसार ही होती है । इसलिए उनमें प्रमाणित कंपनसंख्या के स्पंदन आकृष्ट, संग्रहित तथा प्रक्षेपित करने की क्षमता होती है । मंदिर के कलश का कार्य भ्रमणभाष के टॉवर अथवा दूरदर्शन के एंटिना जैसा होता है । जिस प्रकार किसी गांव में भ्रमणभाष का टॉवर होता है और उस टॉवर के कारण भ्रमणभाष को अच्छी रेंज मिलती हैे, वैसा ही कलशों का होता है । कलश अर्थात Antenna to receive Gods energy. (ईश्वरीय शक्ति की तरंगों को ग्रहण करनेवाला एंटिना) ब्रह्मांड से वैश्विक ऊर्जा तथा निर्गुण स्पंदन कलश में ग्रहण किए जाते हैं । इसलिए कलश की पूजा और स्थापना करने से ब्रह्मांड की सर्व प्रकार की ईश्वरीय तरंगें कलश में प्रवेश करेंगी और साधकों को सर्व देवताआें के आशीर्वाद भी मिलेंगे । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले