हनुमानजी द्वारा लंकादहन

ऐसे कहा जाता है कि रावणद्वारा पूंछ में आग लगाने के उपरांत
हनुमानजी ने लंकादहन तो किया; परंतु लंकादहन पर वे पछताए भी थे । ऐसा क्यों ?

उत्तर : महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में उल्लेख मिलता है कि हनुमानजी ने जब रावण की लंका जलाई तो उन्हें बहुत पश्‍चाताप हुआ । वाल्मीकि रामायण में श्‍लोक है ‘यदि दग्धात्वियं सर्वानूनमार्यापि जानकी । दग्धा तेन मया भर्तुहतमकार्यजानता।’ अर्थात लंका जलाने के उपरांत हनुमानजी के मन में विचार आया कि पूरी लंका जल गई तो निश्‍चितरूप से जानकी भी उसमें जल गईं होंगी । ऐसा करके मैंने निश्‍चितरूप से अपने स्वामी का बहुत बडा अहित कर दिया है । भगवान राम ने तो मुझे लंका माता सीता का पता लगाने भेजा था, परंतु मैंने तो यहां कुछ और ही कर दिया । जब माता सीता ही नहीं रहीं, तो राम भला कैसे जी पाएंगे । फिर सुग्रीव-राम की मित्रता का क्या अर्थ रह जाएगा । मैं अब श्रीराम को कैसे मुहं दिखाऊं ?

उस क्षण हनुमानजी राजसभाव में यह भूल गए थे कि जिस सीता ने थोडी देर पूर्व उन्हें अजर-अमर होने का आशीर्वाद दिया था, वे जनकनंदनी भला आग की भेंट कैसे चढ सकती हैं ?’अजर-अमर गुण निधि सुत होहू, करहिं सदा रघुनायक छोहू’ यही वजह थी कि ज्वालाओं से घिरे होने के उपरांत भी हनुमानजी की सेहत पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं था । वास्तविकता में माता सीता के प्रार्थना के कारण यह हुआ था । माता सीता को जब राक्षसियों ने सूचित किया कि रावणद्वारा हनुमानजीके पूंछ में आग लगाई जा रही है, तब सीता अग्निदेवता से प्रार्थना करती हैं कि हे अग्निदेवता, यदि मैं पतिव्रता हूं, तपस्विनी हूं, तो महाबाहु कपिश्रेष्ठ के लिए शीतल हो जाओ ।

हनुमानजी लंका जलाने के लिए जब स्वयं को अपराधी मान रहे थे, उस समय उन्हें अनेक शुभ शकुन दिखाई देने लगे । फिर उनके विचारों में नया मोड आया । जो सीता स्वयं अग्निस्वरूप हैं, जो पतिव्रता हैं, जो स्वयं प्रभु श्रीराम की पत्नी हैं, उन्हें अग्नि छू भी नहीं सकती । उसी समय हनुमानजी को दिव्य वाणी सुनाई दी – राक्षसों की लंका जल गई, पर सीता पर कोई आंच नहीं आई । तब हनुमानजी ने अपना मनोरथ पूर्ण समझा ।

 

हनुमानजी ने लंका दहन की, पर उसी लंका में स्थित विभीषण का घर क्यों नहीं जलाया ?

रामायण में कथा आती है कि हनुमानजी ने लंका के सभी घर जला दिए लेकिन विभीषण का घर नहीं जलाया। ‘जारा नगर निमिष इक माहिं, एक विभीषण कर गृह नाहिं । जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था । भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था । यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया ।

इससे हमें हनुमानजी की विशेषता ध्यान में आती है कि जो भी भगवान का भक्त है, उनकी रक्षा करने का कार्य हनुमानजी करते हैं ।

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