अनुक्रमणिका
१. अर्थ, कुछ अन्य नाम एवं रूप
अ. अर्थ
‘सरसः अवती’, अर्थात एक गति में ज्ञान देनेवालीं (गतिमति) । श्री सरस्वतीदेवी निष्क्रिय ब्रह्मा का सक्रिय रूप हैं; इसीलिए उन्हें ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’, तीनों को गति देनेवाली शक्ति कहते हैं ।
आ. कुछ अन्य नाम
१. शारदा : शारदा अर्थात षट्शास्त्रों के अध्ययन को अर्थात ज्ञान को आधार प्रदान करनेवाली । विशेषता यह है कि इस देवी की शक्ति श्री गणपति से संबंधित है और उनकी साडी का रंग लाल-गुलाबी है ।
२. वाक्, वाग्देवी, वागीश्वरी, वाणी, भारती, वीणापाणी, वाणीदायिनी, स्वरदायिनी, ज्ञान-दायिनी इत्यादि ।
इ. तारक एवं मारक रूप :
तारक रूप : श्री सरस्वतीदेवी कमल पर विराजमान हैं । उनके एक दाएं हाथ में वीणा है और दूसरा अभयहस्त है । उनके एक बाएं हाथ में वेद एवं दूसरे में कमल है । उनके मुख पर हास्य है । मुख देखने से शांति की अनुभूति होती है ।
मारक रूप : खडी हुईं एवं हाथ में ब्रह्मास्त्र धारण की हुई चतुर्भुज देवी श्री सरस्वतीदेवी का मारक रूप हैं । कलियुग में अधर्म से व्यवहार करनेवाले जीवों को दंड देने हेतु श्री सरस्वतीदेवीने मारक रूप धारण किया है ।
२. निर्मिति व निवास
अ. निर्मिति
‘ब्रह्मदेव कीr निर्मिति श्रीविष्णु से हुई । उस समय ९५ प्रतिशत ब्रह्मतत्त्व निर्गुण (अकार्यरत) अवस्था में एवं केवल ५ प्रतिशत ब्रह्मतत्त्व सगुण (कार्यरत) अवस्था में था । संपूर्ण ब्रह्मांड निर्मिति के लिए निर्गुण ब्रह्मतत्त्व का ५० प्रतिशत से अधिक मात्रा में कार्यरत होना अपेक्षित था । ब्रह्मतत्त्व को कार्यरत बनाने हेतु महासरस्वतीदेवी की निर्मिति की गई । इस रूप में निर्गुण तत्त्व अधिक मात्रा में है ।
आ. निवास
सरस्वतीलोक, ब्रह्मलोक का शक्ति रूपी उपभाग है । श्री सरस्वतीदेवी के दोनों रूप – तारक एवं मारक रूप, सगुणलोक के ब्रह्मलोक में होते हैं ।
इ. सरस्वतीलोक की विशेषताएं
सरस्वतीलोक में सर्वत्र प्रमुखतः श्वेत रंग का प्रकाश होता है । वहां सर्व ओर पानी के झरने बहते हैं । झरनों में सर्वत्र श्वेत रंग के कमल हैं । सरस्वतीलोक के मध्य में श्री सरस्वतीदेवी का महल है । महल के सामने बडा सरोवर है । महल के चारों ओर सरोवर का पानी फैंला हुआ है । सरोवर में एवं पानी में विविध प्रकार के कमल हैं । महल के मध्य में श्री सरस्वती देवी का कक्ष है । कक्ष की दाईं ओर उनका सिंहासन है । सिंहासन का आकार कमल समान है । महल में सर्वत्र वीणा का नाद निरंतर सुनाई देता है । यह नाद सुननेवाले के मन में श्री सरस्वतीदेवी के प्रति कृतज्ञता का भाव जाग्रत होता है; मन एकाग्र हो जाता है तथा ध्यान समान अवस्था में चला जाता है ।
३. श्री सरस्वतीदेवी के कोप से कष्ट एवं नरकप्राप्ति होना
अ. श्री सरस्वतीदेवी की अवहेलना करनेवालों को एवं दुष्कृत्य
करनेवालों को विद्या एवं कला प्राप्त न होना, आत्मज्ञान न होना तथा नरकप्राप्ति होना
ऐसे जीव कितनी भी साधना करें, उन्हें आत्मज्ञान अथवा आत्मसाक्षात्कार नहीं होता । दुष्कृत्य करनेवाले का आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत से अधिक हो, तो उसे कदाचित आत्मज्ञान अथवा आत्मसाक्षात्कार होगा; परंतु उसे उसका तत्काल विस्मरण हो जाएगा ।
किसी कारण श्री सरस्वतीदेवी धनवान, रूपवान एवं बलवान लोगों से रुष्ट हो जाएं, तो उनमें ज्ञानार्जन की इच्छा नष्ट हो जाती है । अनेक प्रयत्न करने पर भी उन्हें न विद्या प्राप्त होती है, न कला ! साधना से प्राप्त ज्ञान का दुरुपयोग होने पर श्री सरस्वतीदेवी रुष्ट हो जाती हैं; फिर चाहे उस जीवने कितनी ही साधना क्यों न की हो, उस जीव को नरकप्राप्ति होती है ।
आ. विद्या का अनुचित (अधर्म हेतु) उपयोग व श्री सरस्वतीदेवी का
निरादर करनेवालों का तीन जन्म अपंग होना, बुद्धि भ्रष्ट एवं मंद होना तथा नरकप्राप्ति होना
८० प्रतिशत जन्मजात मंदबुद्धि बालकों द्वारा गत जन्मों में श्री सरस्वतीदेवी का अपमान किया गया होता है ।
देवता, संत व महात्माओं का अपमान, उनके विषय में समाज को दिशाभ्रष्ट कर, अधर्म का प्रसार करने वालों का उसी जन्म में अपनी वाणी खो देना, अपंग होना, महारोगी होना एवं मृत्यु के पश्चात नरकप्राप्ति होती है ।