बिहार के पूर्वी चम्पारण जनपद के फुलवरिया गांव में हिन्दू संगठन सभा थी । इस गांव के युवकों ने यह सभा आयोजित की थी । इस गांव में कार्यक्रम के लिए आने के पश्चात सीमा पर नेपाल के संदर्भ में जो जानकारी सामने आई, वह उत्सुकता जगानेवाली थी ।
१. नेपाली चलन चलनेवाला गांव !
इस गांव से नेपाल की सीमा दो किलोमीटर की दूरी पर थी । गांव में आकाशवाणी चलाने पर नेपाली आकाशवाणी केंद्र आता है । गांव में ज्यादातर नेपाली चलन प्रचलित है । कुछ धर्मप्रेमी युवकों ने सनातन संस्था के ग्रंथ क्रय किए । उनमें से एक धर्मप्रेमी युवक ने ९ रुपए का लघुग्रंथ क्रय किया । उसने दो रुपए की तीन मुद्राएं और पांच रुपए का नेपाली नोट हमारे हाथ पर रखा । भारतीय मूल्य के अनुसार नेपाल के पांच रुपए भारत के तीन रुपए होते हैं । गणना में कुल नौ रुपए थे । हमने कहा, ‘नेपाल का ५ रुपए का यह नोट भारत में कैसे चलेगा ?’ वहां उपस्थित युवकों ने कहा, ‘‘इस गांव में सर्वत्र यह नोट चलता है ।’’ हमने कहा, इस गांव से बाहर जाने पर इस नेपाली पांच रुपए का मूल्य हमारे लिए शून्य है । अंत में उसकी अडचन और अपनी उत्सुकतावश हमने वह नोट अपने पास रख लिया ।
२. विशेषतापूर्ण नोट !
भारतीय रुपया जैसा उस पर महात्मा गांधी अथवा किसी नेपाली राजनेता का चित्र नहीं, अपितु इस नोट पर हिमालय का चित्र है । (इस नोट का छायाचित्र ऊपर दिया है ।) हिमालय एक संस्कृति है, ऐसा बताने का यह प्रयास है । सच तो यह कि भारत भी हिमालय की धरोहर है और भारत को यह बात विश्व को बताने की आवश्यकता है । ऐसे छोटे छोटे प्रयास हमारी विशेष बातों का प्रसार करते हैं । नेपाल ने नोट पर हिमालय दिखाकर वह साध्य किया है । भारत में ऐसे प्रयास कब होंगे ?
इस नोट की और एक विशेषता यह है कि उस पर सबसे ऊपर ‘श्री’ लिखा है । हिन्दू संस्कृति के अनुसार किसी भी डाकपत्र पर ‘श्री’ लिखने का प्रचलन है । ‘श्री’ अर्थात ऐश्वर्य और नोट ऐश्वर्य का ही प्रतीक है । यह नोट देखकर मन में एक ही प्रश्न आया कि भारत के नोट पर ‘श्री’ कब होगा ?’
३. खुली सीमा !
फुलवरिया गांव के पास भारत-नेपाल सीमा की विशेषता यह है कि यह संपूर्ण सीमा खुली है । यहां कोई सुरक्षारक्षक नहीं है । भारत की ओर से पचास मीटर की दूरी पर बीएसएफ के जवान थे; किंतु किसी को भी आने जाने से नहीं रोकते थे । उस पार नेपाल की सीमा पर कोई सैनिक नहीं था । हम उस भूमि पर खुलकर घूमे । सीमा खुली होने से भारत के श्रमिक नेपाल जाकर खेती करते हैं, तो नेपाल के श्रमिक भारत आकर ! अनेक भारतीय खेतिहरों के खेत नेपाल की सीमा में हैं । वे प्रतिदिन नेपाल जाकर अपनी खेती करते हैं ।
४. मिश्र संस्कृति का प्रतीक !
नेपाल की सीमा से सटा यह प्रांत ‘मधेशी’ नाम से जाना जाता है । यहां बिहार की संस्कृति है । लोगों की भाषा ‘भोजपुरी’ है और संस्कृति बिहारी । चंपारण जनपद के बिहारी युवकों के विवाह नेपाली अर्थात मधेशी कन्याओं से होते हैं और नेपाल के मधेेशी युवक बिहारी कन्याआें से विवाह करते हैं । सच में अध्यात्मप्रसार की सेवा के कारण ही भारत-नेपाल सीमा पर ऐसी मिश्र संस्कृति का प्रतीक देखने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ ! ऐसा भाग्य किसे मिलता है ?