
‘डरो मत…! – तुम्हारी रक्षा के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं !’ मराठी में ऐसा आशीर्वचन देनेवाले श्री स्वामी समर्थ । स्वामी समर्थ अर्थात प्रभु दत्तात्रेय के चौथे अवतार । उन्होंने अक्कलकोट, सोलापुर में बाईस वर्ष निवास किया । उनके निवास से पावन हुए अक्कलकोट में उनकी समाधि और पादुकाओं का आज भावपूर्ण दर्शन करते हैं ।
भक्तों को ‘डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूं !’
ऐसा अभयदान देनेवालेे अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ !
माघ कृष्ण पक्ष १, शक १३८०, इ.स. १४५८ में नृसिंह सरस्वती श्री शैल्य यात्रा के अवसर पर कर्दली वन में लुप्त हो गए । इसी वन में वे ३०० वर्ष प्रगाढ समाधि अवस्था में थे । चींटियों ने उनके दिव्य शरीर पर बहुत बडी बांबी बना दी थी । एक लकडहारे की असावधानी से उस बांबी पर उसकी कुल्हाडी से वार हो गया और श्री स्वामी बांबी से बाहर आ गए । वहां से पहले वे काशी में प्रकट हुए थे । तत्पश्चात कोलकाता जा कर उन्होंने कालीमाता के दर्शन किए । तदनंतर गंगा के तट से अनेक स्थानों पर भ्रमण कर गोदावरी के तट पर आए । वहां से हैदराबाद होते हुए १२ वर्ष मंगलवेढा में रहे । तत्पश्चात महाराष्ट्र में पंढरपुर, मोहोळ, सोलापुर होते हुए अक्कलकोट आए । यहां अंत तक अर्थात शक १८०० तक उनका निवास था । दत्त संप्रदाय में श्रीपाद, श्री वल्लभ और नृसिंह सरस्वती दत्तात्रेय के पहले और दूसरे अवतार माने जाते थे । श्री स्वामी समर्थ नृसिंह सरस्वती ही हैं; अर्थात दत्तावतार हैं ।




अक्कलकोट के परब्रह्म श्री स्वामी समर्थ अपने भक्तों को अभयदान देते हुए कहा करते थे,‘डरो मत, मैं तुम्हारे पास हूं !’ भक्तों को आज भी उसकी प्रचीति होती है । श्री स्वामी समर्थ अक्कलकोट में पहली बार महाराष्ट्र के खंडोबा के मंदिर में इ.स. १८५६ में प्रकट हुए । उन्होंने कई चमत्कार किए और जनजागृति का कार्य किया । जो मुझे सर्वस्व मानकर अनन्य भाव से नित्य मेरा मनन, चिंतन, उपासना एवं सेवा अर्पित करेंगे, उन प्रिय भक्तों के योगक्षेम का मैं पूरी तरह वहन करूंगा, उन्होंने भक्तों को ऐसा वचन दिया है । आज कोटि-कोटि श्रद्धालुओं को स्वामी के इस वचन की अनुभूति हो रही है ।
श्री स्वामी समर्थ महाराज की कृपा हमारे परिवार के ऊपर बरसती रहे। यही कामना है। ।। श्री स्वामी समर्थ जय जय स्वामी समर्थ।।