देवी की आरती कैसे करें ?

देवी का पूजन होने के उपरांत अंत में आरती की जाती है । ऐसा नहीं है कि आरती गाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आरती की चाल, उस समय कौन-से वाद्य बजाने चाहिए इत्यादि की जानकारी हो ही, इसलिए ये गलतियां कैसे टाली जा सकती हैं, इस लेख द्वारा हम उसे समझने का प्रयास करेंगे ।

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१. देवी की आरती गाने की उचित पद्धति क्या है ?

‘देवी का तत्त्व, अर्थात शक्तितत्त्व तारक-मारक शक्ति का संयोग है । इसलिए आरती के शब्दों को अल्प आघातजन्य, मध्यम वेग से, आर्त धुन में तथा उत्कट भाव से गाना इष्ट होता है ।

२. कौन-से वाद्य बजाने चाहिए ?

देवीतत्त्व, शक्तितत्त्वका प्रतीक है । इसलिए आरती करते समय शक्तियुक्त तरंगें निर्मिति करनेवाले चर्मवाद्य हलके-हाथ से बजाने इष्ट हैं ।

३. देवी की आरती कैसे उतारें – एकारती अथवा पंचारती से ?

यह देवी की आरती उतारनेवाले के भाव एवं उसके आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करता है ।

अ. पंचारती से आरती उतारना

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’पंचारती’ अनेकत्व का (चंचलरूपी माया का) प्रतीक है । आरती उतारनेवाला प्राथमिक अवस्था का साधक (50 प्रतिशत स्तर से न्यून स्तर का) हो, तो वह देवी की पंचारती उतारे ।

आ. एकारती उतारना 

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एकारती ‘ एकत्व’ का प्रतीक है । भावयुक्त और 50 प्रतिशत स्तर से अधिक स्तर का साधक, देवी की एकारती उतारे ।

इ. आत्मज्योति से आरती उतारना 

70 प्रतिशत से अधिक स्तर का एवं अव्यक्त भाव में प्रविष्ट आत्मज्ञानी जीव, स्वयं में विद्यमान आत्मज्योति से ही देवी को अपने अंतर् में निहारता है । आत्मज्योति से आरती उतारना, ‘एकत्व के स्थिरभाव’ का प्रतीक है ।

४. देवी की आरती उतारने की उचित पद्धति कौनसी है ?

‘देवी की आरती घडी के कांटों की दिशा में पूर्णवर्तुलाकार पद्धति से उतारें ।’ – एक विद्वान ((पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, २२.०२.२००५)

श्रीगुरुचरणों में प्रार्थना है कि इस लेख में आरती संबंधी बताया गया शास्त्र समझकर, उस प्रकार आरती करनेवाले सभी देवीभक्तों को देवी का कृपाशीर्वाद मिले ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित लघुग्रंथ ‘देवीपूजन से संबंधित कृत्यों का शास्त्र’

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