स्वामी विवेकानंद ने बताया हिन्दू धर्म का महत्त्व
यदि हिन्दू धर्म नष्ट हुआ, तो सत्य, न्याय, मानवता, शांति आदि सबकुछ समाप्त हो जाएंगे ! – स्वामी विवेकानंद
देवताओं की खण्डित मूर्तियां देखकर चिढनेवाले स्वामी विवेकानंद !
एक बार जब स्वामीजी अपने शिष्यों के साथ कश्मीर गए थे, तब उन्हें वहां क्षीर भवानी मंदिर के भग्नावशेष दिखाई दिए । उन्होंने बहुत दुखी होकर अपनेआप से पूछा, जब यह मंदिर भ्रष्ट और भग्न किया जा रहा था, तब लोगों ने प्राणों की बाजी लगाकर प्रतिकार क्यों नहीं किया ? यदि उस मैं समय वहां होता, तो ऐसी घटना नहीं होने देता । देवीमां की रक्षा के लिए मैं अपने प्राणों की आहुति देता ! इस प्रसंग से स्वामीजी का देवी भगवती के प्रति अपार प्रेम झलकता है !!
मंदिर ईश्वरीय चैतन्य प्रदान करनेवाले स्थान होते हैं । इसलिए उन्हें पवित्र रखें, भ्रष्ट न होने दें !
ऐसा ज्वलंत धर्माभिमान धारण करें !
वर्ष १८९६ मेें स्वामी विवेकानंद जलयान से नैप्ल्स से कोलंबो जा रहे थे । उनके साथ दो ईसाई पादरी भी थे । अकारण ही वे हिन्दू धर्म और ईसाई पंथ के बीच अंतर पर चर्चा करने लगे । स्वामीजी ने उनके प्रत्येक तर्क का अपने उचित उत्तर से खंडन किया । परंतु, हार न मानकर पादरी हिन्दू धर्म के विषय में अनर्गल बातें कहने लगे । हिन्दू धर्म का यह अनादर न सह पाने के कारण स्वामीजी ने उनमें से एक व्यक्ति की गलपट्टी (कॉलर) पकडी और गरजते हुए बोले, अब इसके आगे कुछ बकवास करोगे, तो उठाकर समुद्र में फेंक दूंगा !
ततपश्चात् उसने स्वामीजी से वादविवाद नहीं किया और पूरी यात्रा में उन्हें यथासंभव प्रसन्न करने का प्रयास करने लगा ।
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