‘अध्यात्म’ अथवा ‘स्पिरिच्युएलिटी’ का वास्तविक अर्थ क्या है ?
ध्यान, योग अथवा सकारात्मक सोच यही सब अध्यात्म में आता है क्या ?
आज अध्यात्म की परिभाषा सभी अपने-अपने ढंग से कर रहे हैं । कुछ लोग घरी की पूजा को, कुछ कर्मकांड को, कोई ध्यान को, तो कोई योग को और कोई अपने विचारों को अध्यात्म मान रहा है । परंतु अध्यात्म यह एक विज्ञान है । एक शास्त्र है । यह सब उसके अंग हो सकते हैं, पर हम इसे ही अध्यात्म नहीं कह सकते ।
फिर अध्यात्म क्या है ? अध्यात्म, यह शब्द अधि + आत्मन् अर्थात आत्मा को समझने का जो शास्त्र है, उसे अध्यात्म कहते हैं । यह एकमात्र शास्त्र ऐसा है जो मनुष्य को किसी भी स्थिति में आनंद में कैसे रहें, यह सिखाता है । यह अद्भूत और सरल विज्ञान है और यह ऐसा विज्ञान है कि कोई यह नहीं कह सकता कि मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है । इसलिए कि हर एक व्यक्ति आनंद चाहता है । कोई दुःख नहीं चाहता ।
कीडे-मकोडों से लेकर विकसित मानव तक, प्रत्येक जीव सर्वोच्च सुख प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है; परंतु किसी भी विद्यालय अथवा महाविद्यालय में यह नहीं सिखाया जाता कि सुख की प्राप्ति कैसे हो सकती है ।
खान-पान हो, मनोरंजन हो, किसी को कोई चीज
पसंद हो, तो वह करने से भी सुख मिलता है । फिर ऐसे में
अध्यात्मशास्त्र समझने की अथवा सीखने की क्या आवश्यकता है ?
हमें सबसे पहले तो यह समझना होगा कि सुख अलग है और आनंद अलग ! अध्यात्म आनंदमय जीवनयापन का मार्ग दिखाता है । आप जिस सुख की बात कर रहे हैं, उस सुख के साथ दुःख भी आता है, यह वास्तविकता भूल जाने से चलेगा ? जिन्हें लगता है कि ‘जीवन में आनेवाली दुःखद घडी में भी मैं स्थिर, सयंमी और शांत रह सकूं’ उन्हें अध्यात्म समझना ही होगा ।
सुख और आनंद में अंतर समझने के लिए एक उदाहरण बताता हूं । मान लीजिए किसी को गुलाबजामुन पसंद है । ४ गुलाबजामुन खाना उसके लिए सुख हो सकता है, परंतु जब वह १० गुलाबजामुन खा जाएगा, तब उसका सुख अब दुःख में अथवा शारीरिक कष्ट में परिवर्तित हो सकता है । जहां आप सुख ढूंढोगे, तो निश्चितरूप में वहां दुःख १०० प्रतिशत है । जैसे आज सभी दिनभर मोबाइल में कुछ न कुछ देखकर सुख ढूंढने का प्रयास करते हैं; परंतु फिर पूरा दिन निकल जानेपर हमें ध्यान में आता है कि आवश्यक काम किया ही नहीं, आलस बढ गया । आंखों में वेदना हो रही है । घर रहकर भी किसी से संवाद नहीं हुआ । घर में हमारे गलत बर्ताव के कारण तनाव उत्पन्न हो गया । परिणाम यह हुआ कि जो सुख लग रहा था, वह दुःख में परिवर्तित हो जाता है ।
अध्यात्म, हमारे जीवन का समतोल बनाकर हमें आनंद में रहने की कला सिखाता है । मन को संयमित रखने की प्रेरणा देता है । जैसे गाडी की गति को ‘ब्रेक’ नियंत्रित करते हैं । उसीप्रकार अध्यात्म हमें मन की गति को नियंत्रित करने की प्रेरणा देता है । जो दुःख परिस्थितिवश हमारे जीवन में आए हैं, उसके कारण हम अध्यात्म का अध्ययन कर, उसे समझकर स्थिर रह सकते हैं । इससे संतोष मिलता है । संक्षेप में सर्वोच्च एवं निरंतर टिकनेवाले सुख को आनंद कहते हैं । अध्यात्मशास्त्र ही ऐसा एकमात्र शास्त्र है, जो आनंद की प्राप्ति करवा सकता है । इसलिए अध्यात्म सीखना आवश्यक है ।