ज्येष्ठ नागरिकों की समस्याएं तथा उनके लिए आचरण में लाने हेतु आवश्यक सूत्र !

‘वर्ष २०१३ में देश की जनसंख्या १२१ करोड थी । इसमें ज्येष्ठ नागरिकों की संख्या १० करोड थी । ज्येष्ठ नागरिकों की संख्या इतनी होने पर भी इनमें से ६६ प्रतिशत नागरिकों को आर्थिक दृष्टि से दो समय का भोजन भी मिल पाना संभव नहीं होता । ९० प्रतिशत ज्येष्ठ नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य सुरक्षा भी उपलब्ध नहीं है । ७३ प्रतिशत नागरिक निरक्षर होने से वे केवल शारीरिक श्रम कर, जीवन-यापन कर सकते हैं । ३९ प्रतिशत ज्येष्ठ नागरिक अपने जीवन को दोषी मानकर अकेले ही जीते हैं । यह जानकारी ‘हेल्पेज इंडिया’ नामक सेवाभावी संस्था ने प्रकाशित की है । इन सभी सूत्रों पर भाष्य करनेवाला लेख यहां प्रकाशित कर रहे हैं ।

 

१. वृद्धाश्रम

विभक्त परिवार पद्धति, व्यक्ति के दोष, आर्थिक समस्याएं आदि विचारधाराओं के कारण वृद्धाश्रम चिंता का विषय बन गया है । इस आयु में ज्येष्ठ नागरिकों को प्रेम, ममता और अपनेपन की आवश्यकता होती है ।

 

२. एकत्र एवं विभक्त परिवार पद्धति के कारण समाज का विघटन आरंभ होना

अ. एकत्र परिवार पद्धति

‘ज्येष्ठ नागरिकों के सामाजिक भान का आविष्कार’, इस विषय पर विचार करने से पहले ही सामाजिक भान में परिवर्तन होते गए । समाजव्यवस्था में जब तक एकत्र परिवार पद्धति थी, तब तक घर की सभी आवश्यकताएं परिवार के सदस्यों की सहायता से पूरी होती थीं । घर की आर्थिक स्थिति कुछ मात्रा में ही सही, अच्छी हुआ करती थी । प्रत्येक व्यक्ति अन्यों का विचार करता था ।

आ. विभक्त परिवार पद्धति

इससे ‘मैं, मेरा’ की भावना में बढोतरी होती गई । इसका कारण आर्थिक भी हो सकता है; परंतु इससे आपसी दूरियां बढती गईं और एक-दूसरे की सहायता से होनेवाले घरेलु कामकाज भी कठिन हो गए । इसप्रकार समाज का विघटन कुछ वर्षों में बढने लगा ।

 

३. अधिकांश सुशिक्षित परिवारों में आर्थिक सुरक्षा के लिए एक ही बेटा
अथवा बेटी की भावना संस्कारित होना एवं पाश्‍चात्यों के अंधानुकरण के कारण ‘अंकल’,
‘आन्टी’ जैसे दिखावटी नाते ही बच्चों में प्रचलित होना, इन सभी से समाजव्यवस्था बिखर जाना

अधिकांश सुशिक्षित परिवारों में आर्थिक सुरक्षा के लिए ‘हम दो, हमारे दो’ से ‘हम दो, हमारा एक’, यह भावना संस्कारित होने लगी । एक ही बेटे अथवा बेटी को उच्च शिक्षा देकर बडा करने का ध्येय प्रत्येक घर में दिखाई देने लगा है । इसमें कुछ गलत नहीं; परंतु इससे परिवार के सदस्यों में आत्मीयता घटने लगी । परिणामस्वरूप लोग नाते-रिश्तों के अपनेपन को भूल गए और पाश्‍चात्यों के अंधानुकरण के कारण आज की पीढी ‘अंकल (चाचा), ‘आन्टी (मौसी)’, जैसे दिखावटी संबंध से ही परिचित है । ‘कजिन ब्रदर’ जैसे आप्तसंबंधों के कारण ममेरा भाई, चचेरा भाई, बुआ का बेटा (फुफेरा भाई ) जैसे आप्तसंबंधों का विस्मरण होता गया, परिणामस्वरूप समाजव्यवस्था बिखर गई ।

 

४. वृद्धावस्था में आवश्यक त्रिसूत्री

अ. वृद्धों को अपना मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए स्वयं जागरूक रहकर परिवार तथा समाज के सभी लोगों से प्रयत्नपूर्वक प्रेम से बोलना चाहिए ।

आ. अपने कारण किसी को कष्ट न हो, इसका भान रखना चाहिए ।

इ. संतुलित आहार, नियमित व्यायाम एवं मनःशांति,

इन तीन सूत्रों की वृद्धावस्था में आवश्यकता होती है ।

 

५. ‘मन का उत्साह’, वृद्धत्व का अत्यंत महत्त्वपूर्ण सूत्र

वृद्धावस्था में ‘मन का उत्साह’, सबसे महत्त्वपूर्ण होता है । मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य तथा वैचारिक उत्साह के कारण इस आयु में भी मन प्रफुल्लित रहता है । यह कठिन भी नहीं है ।

 

६. नकारात्मक विचारों को मन में स्थान न देना

अपने विचारों के अनुसार प्रकृति कार्य करती है । वृद्धावस्था में मन प्रसन्न रखना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि मन बेरंग हो जाने से सब कुछ बेरंग हो जाता है । ‘हमारी ओर कोई ध्यान नहीं देता’, ऐसी नकारात्मक सोच वृद्ध न रखें ।

 

७. नकारात्मक दृष्टिकोण के स्थान पर
सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से अपनी उत्तरायु भी सुखी होना

अपने पास सदैव कुछ न कुछ काम होना चाहिए और अपना मन प्रसन्न रखना चाहिए । जितने हो सके, उतने काम इस आयु में करने का प्रयास हमें करना चाहिए । अपने अहंकार को त्याग कर, सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए । अपने जीवन के अच्छे अनुभव दूसरों के साथ बांटने चाहिए । आवश्यकता होने पर दूसरों को मार्गदर्शन करना चाहिए । नकारात्मक दृष्टिकोण के स्थान पर सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से अपनी उत्तरायु भी सुखी हो जाएगी, इसमें कोई संदेह नहीं । ऐसा सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से दो पीढियों में विद्यमान अंतर अल्प हो सकता है । ज्येष्ठों के लिए ऐसा विचार करना सहज संभव है । ऐसा विचार कर विविध विकल्पों को जांचना महत्त्वपूर्ण है ।

 

८. जिनके बच्चे विदेश में नौकरी कर रहे हैं, ऐसे ज्येष्ठ नागरिकों की व्यथा

अ. अकेलेपन की भावना मन में संस्कारित होना आरंभ

वर्तमान में ऐसे अनेक ज्येष्ठ नागरिक हैं, जिनके बच्चे विदेश में नौकरी कर रहे हैं । ऐसे में अनेकों के मन में अकेलेपन की भावना संस्कारित होने लगती है । अकेलेपन का भान होने पर विदेश में रहनेवाले अपने पोते-पोतियों के तुतलाने की आवाज केवल दूरभाष पर सुन पाते हैं । उनकी प्रतीक्षा करते-करते समय बिताना कठिन हो जाता है ।

आ. बच्चों के पास हमारे लिए समय नहीं है, मन को दुःख देनेवाली भावना अल्प होती जाना

इन दिनों में भी ज्येष्ठों को अपने जीवन के आलेख का स्मरण करना चाहिए । अपनी युवावस्था के जोश का स्मरण होने पर ‘बच्चों के पास हमारे लिए समय नहीं है’, मन को दुःख देनेवाली यह भावना अल्प होती जाती है । ज्येष्ठों को यह भान भी अवश्य रखना चाहिए कि अपने साथ-साथ अपना जीवनसाथी भी थकता जा रहा है ।

इ. समाज में जैसे परिवर्तन हुए, वैसा परिवर्तन ज्येष्ठ भी
अपने में करें, तो उनका जीवन भी आनंदमय होने में सहायता होगी

वर्तमान स्थिति में सर्व ओर देखने से ध्यान में आता है कि समाज में परिवर्तन हुआ है, फिल्मों और नाटकों में परिवर्तन हुए हैं, सगे-संबंधियों की परिकल्पना में भी परिवर्तन आया है । यह सब क्या है ? क्या यह सब युवा पीढी के लिए है ? इसमें से ज्येष्ठों के लिए क्या है ? जब ज्येष्ठ समाज में विचरण करता है, तब यदि वह अपनी आयु की ओर थोडी-सी अनदेखी करे, तो उसे भी लगेगा कि यह सब मेरे लिए भी है ।

 

९. अधिकांश वृद्धों की समस्या

वृद्धों के लिए जो सामाजिक संगठन काम करते हैं, उनके पास सहायता मांगनेवाले वृद्धों की अधिकतर समस्या होती है, परिवार में उनके साथ किया जानेवाला हीन आचरण ।

हीन आचरण के संदर्भ में कहना हो, तो मां-बाप बच्चों के घर में रहते है या बच्चे मां-बाप के घर में रहते है ?, इस बात पर सोचना होगा । अधिकांश परिवारों में यह धधकती समस्या होती है । इस बात का दूसरे पक्ष पर विलक्षण मानसिक दबाव रहता है । अधिकांश परिवारों में बच्चे मां-बाप पर दबाव लाते हैं कि वे घर उनके नाम पर करवा दें । इसके लिए छलकपट भी किया जाता है । वृद्ध मां-बाप अपना घर बच्चों के नाम न करें, ऐसा मत सदैव व्यक्त किया जाता है; परंतु ऐसा न करने पर भी कई बच्चे मां-बाप को जीना दूभर कर देते हैं ।

 

१०. वृद्धों का आचरण भी कुछ मात्रा में बच्चों
द्वारा किए जानेवाले हीन आचरण के लिए कारणभूत होना

घर में वृद्धों का आचरण ऐसा हो कि परिवार द्वारा उन्हें प्रेम से अपनाया जाए । इसमें युवा पीढी की ओर देखा जाए, तो उन्हें अपनी समस्याएं होती हैं । प्रत्येक को दैनिक जीवन में अपना व्यक्तिगत तनाव रहता है । वृद्धों के समझ में यह बात नहीं आती अथवा वे उसे समझने का प्रयत्न नहीं करते । बच्चों के पास समय नहीं होता और वृद्ध अपना अकेलापन दूर करने के लिए उनके पीछे पडे रहते हैं । हमने बच्चों के लिए क्या नहीं किया, वे इसकी रट लगाए रहते हैं । कुछ मात्रा में वृद्धों का ऐसा आचरण भी इस स्थिति के लिए कारणभूत होता है । कई बार किसी कारण से वृद्धों के प्रति मन में आया क्रोध उनके साथ दुराचरण कर व्यक्त किया जाता है ।’

– सौ. विमल मधुसूदन खाचणे (संदर्भ : मासिक ‘अपेक्षा’, दीपावली २०१३)

Leave a Comment