सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव : कैसा न हो तथा कैसा हो ?

अनुक्रमणिका

 


 

भगवान श्री गणेश सर्व हिंदुओंके आराध्य देवता हैं । इसके साथ ही भगवान गणेश बुद्धीके देवता भी हैं । गणपति सभीको आनंद देनेवाले देवता हैं । ऐसे देवताका उत्सव हमें शास्त्रके अनुसार मनाना चाहिए, तभी हमपर गणपति देवताकी कृपा होगी । जब गणेशोत्सव आता है; तो हमें आनंद होता है न ?

हिंदूओंमें धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा बढे, उन्हें संगठित करनेमें सहायता हो, लोकमान्य तिलकने इस उदात्त हेतु सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ किया; परंतु आजकल सार्वजनिक गणेशोत्सवोंमें होनेवाले अनाचार एवं अनुशासनहीनताके कारण उत्सवका मूल उद्देश्य विफल होनेके साथ उसकी पवित्रता भी नष्ट होती जा रही है । ‘सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव कैसा न हो तथा कैसा हो’, आगे दिए सूत्रोंसे इसकी जानकारी हो सकती है ।

१. उत्सवमें कौन-सी बातें न हों ?

१ अ. बलपूर्वक चंदा उगाही

१ आ. अशास्त्रीय स्वरूपकी मूर्तियां

१ इ. ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’से बनी मूर्तियां

१ ई. विचित्र रूपकी मूर्तियां इ. विशालकाय मूर्तियां

१ उ. उत्सवमंडपसे संबंधित अनाचार

१ ऊ. मंडप बनाने हेतु ज्वलनशील पदार्थोंका प्रयोग

१ ए. मूर्तिकी सजावट, विद्युत जगमगाहट एवं संगीत कार्यक्रमपर अत्यधिक व्यय

१ ऐ. मंडपमें जुआ तथा मद्यपान

 

२. व्यावसायिक उद्देश्यसे किए विज्ञापनोंके माध्यमसे अनादर

श्रीगणेशको विविध रूपोंमें प्रदर्शित कर, उदा. ‘झंडु बाम’ लगानेवाले, ‘काइनेटिकपर सवारी करनेवाले’, ऐसे विज्ञापनोंद्वारा उनका अनादर करना

 

 

३. समाजविघातक विषयोंका प्रसार

सिगरेट, गुटका आदि हानिकारक पदार्थोंके उत्पादकोंसे (दानके स्वरूपमें) निधि लेकर, ऐसे उत्पादोंके विज्ञापनोंके संदेशोंद्वारा समाजको व्यसनाधीन बनानेमें सहायक होना, समाजमनपर अनुचित संस्कार डालनेवाले प्रसारण, चलचित्रके गीत, चलचित्रके संगीतपर / गीतोंकी तालपर आधारित उच्च स्वरमें देवताओंकी आरतियोंकी ध्वनिमुद्रिका (ऑडियो कैसेट) लगाना, वाद्यवृंद, पॉप संगीत एवं नृत्य जैसे संस्कारहीन कार्यक्रमोंका आयोजन, चलचित्रके गीत, संगीत एवं बिजलीकी सजावट आदिके फलस्वरूप ध्वनिप्रदूषण

 

४. जुलूसमें होनेवाले अनुचित प्रकरण

अ. आवागमन-तंत्रमें बाधक, कूर्मगतिसे चलनेवाला जुलूस
आ. अन्योंको बलपूर्वक गुलाल लगाना इ. मद्यपान
इ. विचित्र अंगचलन कर नाचना उ. महिलाओंके साथ असभ्य वर्तन
ई. बहरा कर देनेवाले पटाखे
उ. रात्रि १० बजेके उपरांत मूर्तिविसर्जन

 

५. उत्सवमें क्या होना चाहिए ?

अ. मूर्तिशास्त्रके अनुसार मूर्तिकी स्थापना
आ. पूजास्थान तथा उत्सवमंडपमें अनुशासन एवं पवित्रता
इ. धार्मिक विधि एवं देवताओंका अध्यात्मशास्त्रीय अर्थ समझकर, उत्सवकार्यको ‘सेवा’ मानकर करनेवाले कार्यकर्ता
ई. समाजसहायता, राष्ट्ररक्षा तथा धर्मजागृति हेतु कार्यक्रम

६. प्रवचन

अ. धर्म, साधना, गुरु, शिष्य जैसे आध्यात्मिक विषयोंसे संबंधित प्रवचनोंका आयोजन
आ. भ्रष्टाचार, जातिवाद, आतंकवाद, प्रांतवाद आदिके संदर्भमें जनताकी जागृति हेतु प्रवचन
इ. गुटका, मावा, मदिरा, एड्स इत्यादिसे संबंधित जनजागृति करनेवाले भाषण

६ अ. संगीत तथा भजन : राष्ट्रभक्तिकी प्रेरणा देनेवाले गीत, शास्त्रीय संगीत तथा संतरचित भजनोंके कार्यक्रम
६ आ. नाटक एवं पथनाट्य : देशभक्तिपर / सामाजिक समस्याओंपर आधारित
६ इ. राष्ट्ररक्षा तथा धर्मजागृतिसे संबंधित विषयोंपर ‘प्रश्नमंजूषा कार्यक्रम’
६ ई. अध्यात्मप्रसार, धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्य हेतु अधिकांश निधिका उपयोग

 

७. वर्षभर धर्मप्रसार एवं धार्मिक कार्यमें कार्यकर्ताओंका सक्रिय रहना ।

७ अ. श्रीगणेशोत्सवोंकी संख्या मर्यादित हो

‘एक गांव – एक गणेश’ तथा नगरोंमें (शहरोंमें) ‘एक विभाग – एक गणपति’ सूत्रका पालन करें ।

७ आ. उत्सवमें होनेवाले अनाचारोंपर रोक लगे, उत्सव आदर्शरूपसे मनाया जाए,
इस हेतु ‘सनातन संस्था’ एवं ‘हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा किए जानेवाले प्रयत्न

१. विविध अनुचित घटनाओंको उजागर करना
२. समाजविघातक अनुचित घटनाएं रोकने हेतु प्रत्येक स्थानपर भित्तिपत्रक (पोस्टर) तथा कपडेके फलक (बैनर) लगाना
३. अनाचार रोकने हेतु गणेशोत्सव मंडलोंसे मिलकर उनका प्रबोधन करना
४. बोधप्रद फलक लिखना : वर्ष २०१२ में गणेशोत्सवके समय महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यमें ६४१ स्थानोंपर ऐसे फलक लिखनेका नियोजन किया गया ।
५. धर्मशिक्षा फलक लगाना, उसी प्रकार क्रांतिकारियोंके इतिहाससंबंधी एवं ‘पैâक्ट’ निर्मित कश्मीरी हिंदुओंपर अत्याचार दर्शानेवाली प्रदर्शनी लगाना : वर्ष २०१२ में गणेशोत्सवके समय महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं देहली (दिल्ली) आदि राज्योंमें १५० स्थानोंपर ऐसी प्रदर्शनी आयोजित की गई ।
६. अनुचित घटनाएं रोकने हेतु सामाजिक संगठन, प्रशासकीय अधिकारी एवं पुलिससे निवेदन करना
७. मूर्तिशास्त्रानुसार मूर्ति बनाने हेतु मूर्तिकारोंका प्रबोधन करना
८. ‘श्रीगणेशका उपासनाशास्त्र एवं श्रीगणेशोत्सव आदर्श पद्धतिसे मनाने हेतु’ संबंधित विषयपर प्रवचनोंका आयोजन करना
९. सनातन-निर्मित दृश्यश्रव्य-चक्रिका (वीडियो सीडी) ‘श्रीगणेशोत्सव : वास्तविकता एवं आदर्श’, ‘श्रीगणेश समग्र दर्शन (शास्त्रीय ज्ञान)’ तथा ‘पटाखोंके दुष्परिणाम’का प्रसारण करना : वर्ष २०१२ में गणेशोत्सवके समय भारतमें ५१ केबलद्वारा ३५,१९,००० दर्शकोंतक ‘गणेशोत्सव अध्यात्मशास्त्रीय पद्धतिसे कैसे मनाएं’, यह विषय कुछ मराठी दृश्यश्रव्य-चक्रिकाओंद्वारा पहुंचानेका नियोजन किया गया ।
१०. बोधप्रद नाटिका प्रस्तुत करना
११. आकाशवाणीपर भेंटवार्ता (इंटरव्यू) अथवा प्रवचन करना
१२. ‘राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति’के विषयपर विद्यार्थियोंके लिए ‘प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताका कार्यक्रम’ आयोजित करना

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘श्री गणपति’

८. शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?

८ अ. सार्वजनिक गणेशोत्सव मनानेके पीछेकी पार्श्वभूमि

८ अ १. लोगोंमें संकीर्णता दूर होकर ‘मेरा गांव मेरा गणपति’, यह व्यापक विचार मनपर अंकित करना

लोकमान्य तिलकद्वारा सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाना आरंभ किया गया । हम पहले घर-घर गणपति बैठाते थे और आज भी वह परंपरा चली आ रही है । तब भी लो. तिलकद्वारा सार्वजनिक उत्सव क्यों आरंभ किया गया ? वह इसलिए कि हमारी संकीर्णता घरतक ही सीमित न रहे, अपितु पूर्ण गांव एवं नगरमें सर्व लोग अपना भेदभाव एवं लडाई-झगडे भुलाकर एकत्र आएं और सभीमें संघभावना बढे । ‘मेरा घर मेरा गणपति’ इसकी अपेक्षा ‘मेरा गांव और मेरा गणपति’, यह व्यापक विचार प्रत्येकके मनपर अंकित हो, इसके लिए यह उत्सव सार्वजनिक किया गया ।

 

८ अ २. संगठितता बढाना

उस समय अंग्रेज अत्याचार कर रहे थे । ऐसी स्थितीमें हम सभी संगठित रहें, यही लोकमान्य तिलकका उद्देश्य था । आज देशके सामने आतंकवादके साथ-साथ अनेक समस्याएं हैं और उन्हें दूर करनेके लिए हम सभीको संगठित रहना चाहिए ।

 

९. धर्मशिक्षा न होनेके कारण शास्त्र ज्ञात न होनेसे अनेक अनाचारोंका समावेश होना

गणेशोत्सव शास्त्रके अनुसार मनाना चाहिए, तब ही हमपर गणपतिकी कृपा होगी । हमें धर्मकी शिक्षा न दी जानेके कारण ‘गणेश’के नामका भावार्थ भी नहीं ज्ञात है, गणेशपूजन शास्त्रके अनुसार कैसे मनाएं, यह भी ज्ञात नहीं; इसलिए आज अपने उत्सवोंमें अनेक अनाचार हो रहे हैं । उन्हें रोकनेसे ही हमपर गणपतिकी कृपा होनेवाली है ।

 

श्री गणेश चतुर्थी दृश्यपट (Shri Ganesh Chaturthi Video)

 

१०. शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?

अ. उत्सवके लिए बनाए जानेवाली श्री गणेशकी झांकी अथवा साज-सज्जा

१. साज-सज्जा सात्विक तथा पर्यावरणके लिए घातक न होनेवाली होनी चाहिए

 

हम गणपति आनेसे दो दिन पूर्व सजावट करते हैं । सजावट सात्विक और पर्यावरणके लिए घातक नहीं होनी चाहिए । भगवान गणेशजीका मंडप बांससे बनाएं । उसकी साज-सज्जाके लिए केलेके तनेका उपयोग कर सकते हैं । नैसर्गिक वस्तुओंका अधिकाधिक उपयोग करनेसे उन वस्तुओंको विसर्जित कर सकते हैं और उनसे पर्यावरणपर घातक परिणाम भी नहीं होता है । इसके साथ ही यदि उनमेंसे टिकाऊ वस्तुएं यदि घरमें रह जाएं, तब भी उनमें आए हुए गणेशतरंगोंके चैतन्यका लाभ गणेशोत्सवके उपरांत भी घरके सभी सदस्योंको प्राप्त होता है और घरका वातावरण आनंदमय रहता है ।

आ. कागदी पताकाका उपयोग करना

साज-सज्जाके लिए कागदकी पताकाओंका उपयोग कर सकते हैं । इससे साज-सज्जा अच्छी होती है । तदुपरांत कागद विसर्जित कर सकते हैं ।

इ. आमके पत्तोंका बंदनवार बनाएं

आमके पत्तोका बंदनवारका अधिकाधिक उपयोग करें । इस कारण वातावरणकी गणेश तरंगोंका अधिकाधिक लाभ होता है एवं किसी भी प्रकारका प्रदूषण नहीं होता है ।

ई. अयोग्य प्रकारकी तथा पर्यावरणके लिए घातक साज-सज्जा टालना

१० ई १. थर्मोकोलके कारण प्रदूषणमें वृदि्ध होना : आजकल हमें शास्त्र ही ज्ञात न होनेके कारण साज-सज्जाके लिए थर्मोकोलका अत्यधिक उपयोग किया जाता है । थर्मोकोल पानीमें विसर्जित करनेपर वह पानीमें घुलता नहीं । जलानेसे वातावरणमें प्रदूषित वायु छोडी जाती हैं । इससे हम एक-प्रकारसे प्रदूषण ही बढाते हैं । यह गणपतिको अच्छा लगेगा क्या ? हमें प्रदूषणमुक्त साज-सज्जा करनी चाहिए अथवा नहीं ?

१० ई २. विद्युत दीपोंका अनावश्यक उपयोग करना : वर्तमानमें हम साज-सज्जाके लिए रोशनाईका अत्यधिक उपयोग करते हैं । अनेक रंगीन दीपकोंका उपयोग, उसी प्रकार बडे प्रमाणमें बिजलीकी मालाओंका उपयोग करते हैं । इससे बिजलीका अनावश्यक उपयोग होता है और बिजली व्यर्थ होती है । इससे गणेशतरंगोंका अधिक लाभ नहीं होता है ।

बिजली बचाना, यह अपना राष्ट्रीय कर्तव्य है । इससे हमपर भगवान गणेशकी कृपा ही होनेवाली है । इस गणेशोत्सवमें हमें बिजलीका अत्यंत अल्प उपयोग करके राष्ट्रकी ऊर्जा बचानी है । हम देख ही रहे हैं कि अनेक गावोंमें बिजली नहीं है । शहरोंमें भी अनेक घंटे बिना बिजलीके रहना पडता है । तब राष्ट्रके एक दक्ष नागरिकके रूपमें राष्ट्रके प्रति अपना कर्तव्य निभाना आवश्यक है । यही गणेशजीको अच्छा लगेगा ।

 

११. श्री गणेशजी की मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?

११ अ. मूर्ति अतिभव्य नहीं होनी चाहिए : श्री गणेशजी की मूर्ति १ से २ फुटकी होनी चाहिए । मूर्तिशास्त्र ज्ञात न होनेसे २० से २५ फुटकी मूर्ति लाई जाती है । ऐसी भव्य मूर्तिकी योग्य निगरानी करना भी कठिन होता है । इस मूर्तिका विसर्जन करते समय उसे ढकेला जाता है, इससे देवताका अनादर होता है । अपने गणेशजीका ऐसा अनादर होते देख हमें अच्छा लगेगा क्या ? नहीं न ? इसलिए बडी मूर्ति लानेके लिए विरोध करना चाहिए ।

११ आ. ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्तिकी अपेक्षा प्रदूषण विरहित चिकनी मिट्टीकी मूर्ति लाएं : अपने धर्मशास्त्रमें बताए अनुसार गणेशमूर्ति चिकनी मिट्टीकी होनी चाहिए । वह प्रदूषण विरहित होती है । आजकल हम ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्ति लाते हैं । वह शीघ्र पानीमें नहीं घुलती है एवं मूर्तिके अवशेष पानीके बाहर आ जानेसे मूर्तिका अनादर होता है । क्या ऐसा अनादर होने देना चाहिए ? नहीं न ? फिर हमें ही लोगोंका प्रबोधन करके चिकनी मिट्टीकी ही मूर्ति लानेके लिए आग्रह करना चाहिए ।

११ इ. कागदकी लुगदीसे बनाई गई मूर्तिका उपयोग करना अयोग्य : कागदकी लुगदीसे बनाई गई मूर्ति भी न लाएं; वह इसलिए कि शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टीकी मूर्तिमें वातावरणमें विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करनेकी क्षमता अधिक होती है । वह क्षमता कागदमें नहीं है । अर्थात पूजकको श्री गणेशजी की तरंगोंकी पूजा करनेसे लाभ नहीं होगा ।

११ ई. रासायनिक रंगोंकी मूर्ति न लाकर नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्तिका उपयोग करें : मूर्ति रंगनेके लिए रासायनिक रंगोंका उपयोग किया जाता है; परंतु शास्त्रानुसार नैसर्गिक रंगोंका उपयोग करना चाहिए । जिससे मूर्ति विसर्जित करनेपर उन रंगोंके कारण प्रदूषण नहीं होगा । अपने धर्मशास्त्रने पर्यावरणका सखोल विचार किया है । हमें लोगोंको बताना चाहिए कि नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्तिका ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसीसे पर्यावरणकी रक्षा होगी ।

११ उ. श्री गणेशजी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारोंमें न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूपमें मूर्ति बनाएं : मूर्ति चित्र-विचित्र आकारोंमें नहीं बनानी चाहिए । आजकल किसी भी आकारकी मूर्ति बनाई जाती है । यह योग्य है क्या ? किसी नेता अथवा किसी संतके रूपमें मूर्ति बनाते हैं । हमें इसका विरोध करना चाहिए । अपने माता-पिताजीको अलग रूपमें दिखाया जाना आपको अच्छा लगेगा क्या ? श्री गणेशजी जैसे मूल रूपमें हैं, वैसी ही मूर्ति होनी चाहिए, तब ही श्री गणेशजीकी शक्ति उस मूर्तिमें आएगी एवं हमें उस शक्ति लाभ होगा । इसलिए हमें ऐसी मूर्ति लानेका विरोध करना चाहिए । करेंगे न ?

१२. गणेशोत्सवके लिए की जानेवाली सजावटके बारेमें

आजकल गणेशोत्सवके लिए की जानेवाली सजावटमें विविध प्रकारके रंगबिरंगे एवं चमकीले कागज, थर्मोकोल, प्लास्टिक इत्यादिका उपयोग किया जाता है । साथही रंगबिरंगे प्रकाश देनेवाले बिजलीके बल्बकी मालाओंका भी उपयोग करते हैं । ये वस्तुएं कृत्रिम एवं रासायनिक पदार्थासे बनी होती हैं । इस कारण ऐसी वस्तुओंमें रज-तमका प्रमाण भी अधिक होता है । स्वाभाविक है कि ऐसी वस्तुओंकी ओर वातावरणकी रज-तमात्मक एवं कष्टदायक तरंगें आकृष्ट होती हैं । इस कारण वहांके वातावरणपर भी इन तरंगोंका प्रभाव होता है । इसीलिए रज-तमात्मक तरंगें आकृष्ट करनेवाले कृत्रिम एवं रासायनिक पदार्थासे बनी वस्तुओंका उपयोग सजावटके लिए नहीं करना चाहिए । अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे प्रत्येक देवताका एक विशिष्ट तत्त्व होता है । यह देवतातत्त्व विशिष्ट रंग, सुगंध, आकार इत्यादिकी ओर अधिक प्रमाणमें आकृष्ट होता है । ऐसे विशिष्ट रंग, सुगंध तथा आकारवाली वस्तुओंसे आकृष्ट तरंगोंको अधिक समय तक संजोए रखकर उन्हें प्रक्षेपित करनेकी क्षमता भी अधिक होती है । जिस कारण इन तरंगोंका लाभ उस वातावरणमें आनेवाले सभी व्यक्तियोंको अधिक समय तक मिलता है । गणेशचतुर्थीके समय पृथ्वीपर आनेवाले गणेशतत्त्वको अधिक प्रमाणमें आकृष्ट करनेके लिए सात्त्विक वस्तुओंका उपयोग लाभदायक होता है । जैसे प्राकृतिक पुष्प-पत्तोंसे बने बंदनवार,लाल रंगके फूल एवं दूर्वा, शमी तथा मदारके पत्ते, श्री गणेशजीकी तत्त्वतरंगें आकर्षित करनेवाली रंगोली इ.

सात्त्विक एवं देवतातत्त्व आकर्षित करनेवाली सजावट होनेसे उस स्थानका वातावरण सात्त्विक बननेमें सहायता मिलती है एवं देवतातत्त्वका लाभ भी अधिक मिलता है ।

 

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