आज से हम जो भी कृति करेंगे वह ईश्वर का स्मरण करते हुए और जैसी ईश्वर को अच्छी लगेगी, वैसी करेंगे । फिर हम उसे ईश्वर को समर्पित करेंगे । इसके लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि जो भी कृति करें वह केवल कृति न हो, अपितु ऐसी हो कि ईश्वर को अच्छी लगे । इसके लिए आज से हम तय करेंगे कि सवेरे उठने से लेकर रात को सोने तक प्रत्येक कृति प्रार्थना के साथ तथा भावपूर्ण करेंगे । प्रत्येक कृति करते समय ईश्वर को अनुभव करने का प्रयास करेंगे । हम भावपूर्ण जो भी कृति करते हैं वह ईश्वर तक पहुंचती ही है। जब हम अपने सब कार्य इस भाव से करते हैं कि हम अपने ईश्वर की सेवा कर रहे हैं, तब हमें भाव बढाने में सबसे अधिक लाभ होता है । हम एक क्षण के लिए रुकेंगे और कल्पना करेंगे कि ईश्वर स्थूल रूप में हमारे घर पर आए हैं और हमें दिनभर उनकी सेवा करनी है । तब हमारे कृत्य और वृृत्ति कैसी होगी । ऐसा करने से हमारे घर में आध्यात्मिक स्पंदन बढने लगेंगे और उनमें सकारात्मक परिवर्तन होंगे । इसके साथ ही भाव में वृद्धि होगी ।
सबसे पहले जब हम सवेरे उठते हैं, तब बिस्तर पर ही बैठ कर हम अपनी दोनों हथेलियों को निकट लाकर हथेली की ओर देखकर प्रार्थना करते हैं –
‘कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती ।
कर मूले तू गोविंदा, प्रभाते कर दर्शनम् ॥
इसका अर्थ क्या है सर्वप्रथम यह जान लेते हैं – इसके साथ ही हमने अपने इष्ट देवता को धन्यवाद दिया कि हे ईश्वर, आपने मुझे आज का नया दिन देखने दिया है और पूरी रात आपने ही मेरा ध्यान रखा और मेरी रक्षा की । आपकी ही कृपा से नींद में जब मुझे अपने ही अस्तित्व का भान नहीं था, तब भी मेरी श्वास चल रही थी । इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूं और प्रार्थना करती हूं कि आज के दिन भी आप मुझसे योग्य कृति करवा लीजिए । मुझसे अच्छे कार्य करवा लीजिए और करते हुए मैं निरंतर आपके स्मरण में रह पाऊं । यह प्रार्थना करने के बाद धरती पर अपने पैर रखने से पूर्व भूमि देवता को प्रार्थना करेंगे कि हे भूमि माता ! मैं अपना पैर आपके ऊपर रख रही हूं इसके लिए मुझे क्षमा कीजिए और आप हम सभी जीवों को संभाल रहे हैं । इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूं । कृतज्ञ हूं ।
हम अपने नित्य कर्म करते समय भी नामस्मरण कर सकते हैं क्योंकि नामजप को कोई बंधन नहीं है और ईश्वर हमारी हर स्थिति में रक्षा करते हैं ।
सुबह उठकर बिस्तर ठीक करते समय यह बिस्तर तो राधाजी का बिस्तर है, बिस्तर को ठीक करते समय ध्यान रख रही हूं कि कहीं इसमें कोई सलवट न रह जाए । कारण यह कि राधारानी तो बहुत ही कोमल हैं, इसलिए सलवट के कारण कहीं उन्हें कष्ट न हो । जलग्रहण करते समय मैं कुलदेवी के श्रीचरणों का तीर्थप्राशन कर रही हूं । इस तीर्थ का हर एक अंश मेरे पेशी-पेशी में पहुंचकर कुलदेवी का तत्त्व संपूर्ण शरीर में फैला रहा है । इससे नकारात्मक शक्ति नष्ट होकर, मुझे उत्साह और चैतन्य प्राप्त हो रहा है । उसके उपरांत जब हम दांत साफ करते हैं तब ये मेरे हाथ नहीं अपितु श्रीकृष्ण के हाथ हैं । अब स्नान करते समय जो जल मैंने भर कर लिया है वह सप्तनदियों का जल है, ऐसे भाव रखकर उनसे ही प्रार्थना करेंगे कि आपके पवित्र जल से मैं स्नान कर रही हूं मेरे स्थूल देह के साथ-साथ मुझमें जो अयोग्य संस्कार हैं, उन्हें भी आप स्वच्छ कर दीजिए ।
इसके उपरांत हमने अपने घर के मंदिर में पूजन किया उस समय हमें कैसा भाव रखना है यह हमने पिछले सत्संग में सीखा था । बच्चों को नहलाते समय मैं बालकृष्ण को नहला रही हूं । जैसे कृष्ण नटखट थे वैसे ही बच्चे नटखट होते हैं, इसलिए उन्हें प्यार से समझा रही हूं । ईश्वर ने अपनी ही लीलाओं को अनुभव करने का अवसर मुझे दिया है । स्नान के बाद जब मैं स्वयं का शृंगार कर रही हूं, तब मुझमें ही दुर्गादेवी हैं । यह शृंगार में अपने माध्यम से दुर्गादेवी का ही कर रही हूं । मेरे ये केश, दुर्गादेवी के हैं । मैं उन्हें संवार रही हूं । माथे पर कुमकुम लगाते समय दुर्गादेवी का तत्व मुझमें जागृत हो गया है । अब मैं दुर्गादेवी को मैं अलंकार पहना रही हूं । उन्हें चूड़ियां पहना रही हूं । पुरुष ऐसा भाव रख सकते हैं कि जब माथे पर तिलक लगा रहे हैं तब उनके अंदर जो शिव हैं, वे जागृत हो गए हैं ।
अब नाश्ता बनाते समय ऐसा भाव रखेंगे कि यह मैं अपने इष्ट देवता के लिए ही अथवा कुलदेवी के लिए ही नैवेद्य (प्रसाद) बना रही हूं, इसलिए उसे मैं अत्यंत भावपूर्ण बनाने का प्रयास करूंगी ।
इसके उपरांत नाश्ता ग्रहण करते समय मैं प्रार्थना करूंगी, ‘‘हे अन्नपूर्णा माता ! आपका ही दिया हुआ यह प्रसाद में ग्रहण कर रही हूं । इसका हर एक अंश मेरे अंदर नामजप की शक्ति प्रदान करे, जिससे मेरा आरोग्य उत्तम रहे । मेरे अंदर की सभी नकारात्मकता इससे नष्ट हो जाए, ऐसी आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है ।’’
इसके उपरांत बर्तन धोते समय हम इसप्रकार प्रार्थना कर सकते हैं – ‘‘हे ईश्वर इस बर्तन को धोते समय जैसे यह स्वच्छ हो जाता है, उसीप्रकार इसको धोते-धोते मेरे अंतर्मन की जो अस्वच्छता है, वह दूर होकर मेरा मन निर्मल बने, ऐसी आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है ।’’
घर की स्वच्छता करते समय मैं कृष्ण के महल की स्वच्छता कर रही हूं अथवा मंदिर में स्वच्छता की सेवा कर रही हूं । मेरी यह कृति मेरे मंदिर में उपस्थित सभी देवी-देवता देख रहे हैं । अथवा इस घर में अभी कुछ ही देर में सभी देवी-देवता आनेवाले हैं । मुझे यह घर अच्छे से स्वच्छ करना है ।
झाड़ू-पोछा उठाने से पूर्व उनसे प्रार्थना करना कि मेरे घर की गंदगी आपके ही कारण दूर होती है, इसके लिए आपके प्रति मैं कृतज्ञ हूं । जलदेवता से प्रार्थना करना कि आप तो हर गंदगी को स्वच्छ कर देते हो । आप हमें निरंतर स्वच्छ करते हो । इसके लिए हम आपके प्रति कृतज्ञ हैं । आप जैसे स्वयं का त्याग करके दूसरों का ध्यान रखते हैं, हममें भी निरंतर सीखने की वृत्ति निर्माण कीजिए ।
घर की वस्तुएं ठीक से लगाते समय ऐसा भाव रख सकते हैं कि इन सभी वस्तुओं का उपयोग इस महल में रहनेवाले श्री कृष्ण ने किया है अतः सभी वस्तुओं में उनका चैतन्य हैं । मैं उन्हें बहुत ही भाव से स्वच्छ कर, उन्हें यथास्थान रख रही हूं । प्रत्येक वस्तु को कृष्ण का स्पर्श हुआ है, इसलिए प्रत्येक वस्तु जागृत है । जब मैं वस्तु की स्वच्छता करती हूं, तो वह मुझसे आनंदित होकर बातें करती हैं और प्रसन्न होती हैं ।
कपडे धोते समय हम भाव रख सकते हैं कि श्री कृष्ण भगवान के वस्त्रों को ही धो रही हूं । देवी मां की ही साडी धो रही हूं । इसे धोते समय इसमें जो ईश्वरीय चैतन्य है, वह मैं ग्रहण कर पा रही हूं । कपडे सूखने डालते समय, ये वस्त्र कृष्ण के हैं, इसलिए मैं बहुत व्यवस्थित तरीके से सूखने डाल रही हूं और मैं सूर्यदेवता से प्रार्थना कर रही हूं कि हे सूर्यदेवता ! आपकी कोमल किरणें मेरे कान्हा के वस्त्रों पर पडने दें । हे वायु देवता ! आपके स्पर्श से कान्हा के कपड़े और अधिक आनंदित हो जाएंगे । आप धीमी गति से आकर मेरे कान्हा के वस्त्र को सहलाकर सुखा दीजिए । कपडे सूखने के पश्चात भाव रखें कि ‘‘मैं अपने कान्हा के कपडे और दुर्गा देवी के कपडे बहुत ही अच्छे ढंग से लगाकर, अलमारी में उत्तम प्रकार से रख रही हूं, जिससे कि जब कान्हा अपने कपडों की ओर देखेंगे, तो उन्हें प्रसन्नता होगी । दुर्गामां मेरी इस कृति से प्रसन्न होंगी ।
वाहन चलाते हुए हम देवता से प्रार्थना कर सकते हैं कि ‘‘आपके ही माध्यम से मैं अपने गंतव्य स्थान तक जा पाती हूं । आप ही मुझे सुरक्षित मेरे ध्येय तक पहुंचाएं ।’’ मैं बाजार से सब्जी लेने जाती हूं अथवा कुछ खाद्यपदार्थ संबंधित चीजें लेने जाती हूं, तब ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि ईश्वर आपको क्या पसंद है ? मैं आपके लिए क्या लूं ? और उसप्रकार से हम चीजें खरीद सकते हैं ।
- जब हम प्रत्येक छोटी-छोटी कृतियों में ईश्वर को बताते हैं, उनसे पूछते हैं तो वे भी हमारे प्रश्नों का उत्तर देते हैं । हमसे बात करते हैं परंतु इसके लिए हमेशा इसका अभ्यास करते रहना होगा ।
- घर में चप्पल ठीक करते समय यह देवी-देवताओं की चरणपादुका ही हैं । उसे मुझे हमेशा व्यवस्थित ही रखना है ।
- कंप्यूटर अथवा मोबाइल का उपयोग करते समय इसमें भी ईश्वर का अंश है । मैं उनके प्रति धन्यवाद व्यक्त कर रही हूं कि आपकी सहायता से ही मेरा जीवन में अनेक कार्य सुलभ हो गए हैं । आपको जो बताया जाता है वह आप सब करते हो, आप में जो ईश्वरीय अंश है, मैं उन्हें प्रणाम करती हूं । इसलिए कि मुझे यह ज्ञात हुआ है कि ईश्वर तो कण-कण में है । इसके साथ ही मैं मन से इन उपकरणों को ईश्वरचरणों में भी अर्पण करती हूं ।
- सोने से पहले हम ईश्वर के चरणों में आत्मनिवेदन करेंगे, ‘‘आज दिनभर में मुझसे जो भी अयोग्य कृति हुई है, जो भी प्रतिक्रिया आई है, मन में गलत विचार आए हैं उसके लिए मैं आपके श्रीचरणों में क्षमा मांगती हूं और अब इसके पाप से आप ही मुझे मुक्त कीजिए ।’’ ऐसी प्रार्थना कर, मैं श्रीईश्वरचरणों में शांत निद्रा ग्रहण करूंगी । रात को सोते समय मैंने बिस्तर से प्रार्थना की है, ‘‘मैं आपकी गोद में ही सोनेवाली हूं । आपमें ईश्वरीय शक्ति है । आप ही पूरी रात मेरी रक्षा कीजिएगा । इसके उपरांत तकिए के स्थान पर ईश्वर के श्रीचरण ही है जिस पर मैं अपना मस्तक रख कर सो रही हूं, ऐसा भाव रखेंगे और पूरी रात ईश्वर ही मेरी रक्षा करनेवाले हैं ।
हम सब जानते ही हैं अपनी दिनचर्या के सब कर्म करते हुए भी
ईश्वर के ही चिंतन में मग्न रहना । इसका उत्तम उदाहरण है गोपियां !
गोपियां गायों का दूध दुहती थीं, तो उनका ऐसा भाव रहता था हमारा कान्हा अपने साथियों के साथ आकर दूध पीनेवाला है । धान आदि कूटते समय, दही बिलोते समय, आंगन लीपते समय, वह कान्हा की लीलाओं को स्मरण करते हुए ही करती थीं । बालकों को झुलाते समय, रोते हुए बच्चों को लोरी सुनाते समय उन्हें लगता यह बाल गोपाल श्रीकृष्ण ही हैं । गोपियां घरों में छिडकाव करते समय तथा झाडू लगाते समय प्रेमपूर्ण चित्त से, आंखों में आंसू भरे, गदगद वाणी से श्रीकृष्ण के गुणगान किया करतीं । गोपियों का जागना, सोना, खाना-पीना, चलना-फिरना, श्रृंगार करना, गीत गाना, बातचीत करना यह सब भी वह श्रीकृष्ण के लिए ही करती थीं । गोपियों का श्रृंगार करना भी भक्ति थी । यदि परमात्मा को प्रसन्न करने के विचार से श्रृंगार किया जाए, तो वह भी भक्ति है ।