‘भा’ + ‘व’ अर्थात भाव । यहां ‘भा’ का अर्थ है ‘तेज’ एवं ‘व’ अर्थात वृद्धि करनेवाला । अर्थात हममें तेजतत्व की वृद्धि करनेवाला ।
भाव शब्द की व्याख्या कैसे करेंगे ?
भाव अर्थात ईश्वर का सतत भान रहना ।
भाव अर्थात ईश्वर को जानने की तीव्र लगन ।
भाव अर्थात ईश्वर के प्रति अत्यधिक प्रेम, निकटता और शरणागति से अंत:करण में उत्पन्न हुआ स्नेह ।
भाव अर्थात ईश्वर की अनुभूति लेना ।
भाव का अर्थ है ईश्वर की ‘सत-चित-आनंद’, इस अवस्था की ओर बढने के लिए प्रयास करना ।
अब हम परमेश्वर के उन सात स्वरूपों को समझ कर
लेनेवाले हैं जिन्हें एकत्र करने पर,‘सत-चित-आनंद’ अवस्था प्राप्त होती है ।
निर्गुण निराकार ईश्वर की विशेषताएं यह हैं कि वह अमर है । आनंदस्वरूप है, जिसकी प्राप्ति से हमें आनंद मिलता है । वे शक्तिसंपन्न हैं, जिन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड का, संपूर्ण विश्व का निर्माण किया है, इसलिए वह कितने सामर्थ्यवान होंगे । परमशक्ति और शक्तिसंपन्नता, यह उनकी विशेषताएं हैं । जो ज्ञानियों के भी ज्ञानी हैं, ऐसे परमेश्वर ज्ञानस्वरूप हैं ।
सभी जीवों पर, सजीव-निर्जीव सभी पर अपार प्रेम करनेवाले ईश्वर प्रेमस्वरूप हैं ।
शांति के सागर, ऐसे ईश्वर शांतिस्वरूप हैं ।
ईश्वर सौंदर्यनिधान हैं । उनका सौंदर्य अलौकिक और बहुत ही मनमोहक है ।
तो ये हैं परमेश्वर के सत-चित-आनंद अवस्था के सात स्वरूप । इसी ‘सत-चित-आनंद’ अवस्था की ओर बढने के प्रयास को ‘भाव’ कहते हैं ।
भाव तथा उसके रंग
भाव की विशेषताओं में आज हम भाव तथा उसके रंग इसके बारे में भी समझ कर लेंगे ।
कुछ लोगों के मन में प्रश्न आ सकता है कि भाव तो सूक्ष्म हैै फिर उसे हम स्थूल रूप से रंगों में कैसे दर्शा सकते हैं । इसका उत्तर यह है कि अध्यात्म का यह सिद्धांत है कि ‘शब्द, रूप, रस, गंध तथा शक्ति एकत्र होती हैं । अध्यात्म के इस सिद्धांत के अनुसार भाव के प्रकार के अनुसार उससे संबंधित रंग दिखाया जा सकता है । भाव लहरियों का रंग होता है ।
रजोगुणी भाव, शक्ति का दर्शक होता है और उसका रंग लाल होता है ।
सत्वगुणी भाव, शांति का दर्शक होता है और उसका रंग श्वेत होता है । सत्व – रजोगुणी भाव, जिसमें सत्वगुण की मात्रा अधिक होती है, उसकी दो प्रकार से निर्मिति होती है ।
१. जिज्ञासा से जिस भाव की निर्मिति होती है । वह ज्ञानदर्शक होता है और उसका रंग पीला होता है ।
२. शरणागति से जिस भाव की निर्मिति होती है, वह भक्ति का दर्शक है और उसका रंग नीला होता है ।
भाव के अनुसार साधक के सर्व ओर जो
चैतन्य का कवच बनता है, उनका रंग कैसा होता है ?
१. मारक भाव के चैतन्य के कवच का रंग लाल होता है ।
२. जिज्ञासारूपी भाव के चैतन्य के कवच का रंग पीला होता है ।
३. भक्तिभाव के चैतन्य के कवच का रंग नीला होता है ।
४. साक्षिभाव के चैतन्य के कवच का रंग श्वेत होता है ।