जब प्रभु रामचंद्रजी के अवतार की समाप्ति का समय आया तब श्रीरामजी ने सोचा कि सरयू नदी में वे इस देह को त्याग देंगे । तब अयोध्या में उपस्थित सभी उनके पीछे-पीछे नदी तट तक आए ।
सभी यह सोचने लगे कि अब हम जीकर क्या करेंगे, जब हमारे प्रभु श्रीरामजी ही हमारे साथ नहीं होंगे । किंतु प्रभु ने प्रत्येक को कार्य सौंपा । उन्होंने बिभीषण से कहा, ‘‘आप लंका लौट जाएं, अंगद से किष्किन्धा लौटकर राज्य करने के लिए कहा । फिर जब हनुमानजी की बारी आई तो प्रभु ने पूछा, ‘‘हनुमान तुम्हें क्या करना है ?’’ हनुमानजी ने कहा, ‘‘प्रभु मैं तो आपका दास हूं, आप मेरे स्वामी हैं, आप जैसा कहेंगे मैं करूंगा । इस पर श्रीराम ने कहा, ‘‘आप ईश्वर के नाम का प्रसार होने हेतु यहीं रुकना । जो भक्त ईश्वर के नाम का प्रसार करते हैं, उनकी सहायता करना ।
तब से लेकर आज तक जहां राम-नाम का स्मरण होता है, जहां रामकथा होती है, वहा साधकों को मदद करने के लिए हनुमानजी सूक्ष्मरूप से उपस्थित रहते हैं ।
महावीर, महाकाय, महाबली, महापराक्रमी, महातेजस, धैर्यवान, महाशक्ति के स्वामी, महाद्युत अर्थात सबसे तेज, चिरंजीवी, महाज्ञानी, राक्षसों का वध करनेवाले, परविद्या परिहार, शत्रुओं के शौर्य को खंडित करनेवाले, ऐसे केसरी नंदन हनुमानका बल, बुद्धि और गति में बराबरी करनेवाला कोई नहीं है । कंचनकांतिवाले पवनसुत संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान और तपस्या के अनुष्ठान में तो देवगुरू बृहस्पति की बराबरी करते हैं । ऐसे असंख्य गुणों से सुशोभित हनुमानजी दास्यभक्ति के सर्वोत्तम उदाहरण हैं । इस कथा से स्वामी भक्ति कैसी होनी चाहिए, यह सीखने मिलता है । हनुमानजी के स्मरणमात्र से मन में भक्तिभाव जागृत हो जाता है । उनके स्मरण से चैतन्य एवं शक्ति मिलती है । हमें साधना में आगे जाने की प्रेरणा मिलती है ।
अष्टचिरंजीवियों में महाबली हनुमान अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं और ‘राम से अधिक राम के दास’ की उक्ति चरितार्थ होती है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं- जब मानव पर कोई विपत्ति आती है, तब वह उससे मुक्ति पाने के लिए मेरी शरण आते हैं, परंतु जब मुझ पर कोई संकट आता है तब मैं उसके निवारण के लिए पवनपुत्र का स्मरण करता हूं । जरा विचार कीजिए ! हनुमानजी पर भगवान श्रीराम का कितना अनुग्रह है कि वे अपने लौकिक जीवन के संकटमोचन का श्रेेय उनको प्रदान करते हैं और कैसे शक्तिपुंज हैं हनुमान, जो भगवान श्रीरामजी के कष्टों का भी तत्काल निवारण कर सकते हैं ।
हनुमानजी तो स्वयं देवता हैं । तब भी उनका प्रभु श्रीरामजी के प्रति कितना भाव था । अब हम देखेंगे कि कैसे मनुष्य को ईश्वर के प्रति भावजागृत करना चाहिए ? देवताओं के चरित्र से प्रेरणा लेकर हम अपने में भी भावभक्ति निर्माण करने के लिए हम उन्हीं की शरण जाकर प्रार्थना करेंगे ।