प्रकृतिनुसार वस्त्रोंका रंग

सारिणी

१. आयुर्वेदानुसार शरीरकी प्रकृति

२. त्रिगुणोंके अनुसार प्रकृति

३. उद्देश्यानुसार वस्त्रोंका रंग

४. वस्त्रोंमें रंगोंकी रुचि-अरुचि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरकी होती है ।

५. प्रत्येक ऋतुमें प्रयोग करने योग्य विशेष रंगोंके वस्त्रोंका शास्त्रीय आधार

५ अ. वस्त्रोंका रंग
५ आ. ग्रीष्म एवं शरद ऋतु
५ इ. वर्षाऋतु
५ ई. शीत ऋतु
५ उ. वसंतऋतु


१. आयुर्वेदानुसार शरीरकी प्रकृति

आयुर्वेदानुसार शरीरकी प्रकृति तीन प्रकारकी होती है – वात, पित्त एवं कफ ।

 

प्रकृति वस्त्रका प्रकार वस्त्रका रंग
१. वात सूती अथवा रेशमी लाल अथवा पीला
२. पित्त सूती श्वेत, हरा अथवा नीला
३. कफ ऊनी लाल

 

२. त्रिगुणोंके अनुसार प्रकृति

व्यक्तिकी रुचि-अरुचि उसकी प्रकृतिके अनुरूप होती है एवं प्रकृति उसमें विद्यमान सत्त्व, रज एवं तम, इन त्रिगुणोंपर आधारित होती है ।

 

प्रकृतिका प्रधान गुण प्रकृतिका लक्षणस्वरूप गुण / दोष मनोनीत रंग
१. सत्त्व मिलनसार, नम्र, एकाग्र इत्यादि श्वेत, पीला एवं नीला
२. रज साहसी, स्वाभिमानी, निरंतर कार्यरत, महत्त्वाकांक्षी इत्यादि लाल एवं सिंदूरी
३. तम क्रोधी, संकीर्ण स्वभावका, लालची, आलसी इत्यादि धूसर, भूरा, गहरा लाल, जामुनी एवं काला

 

व्यक्तिपर जिस गुणका प्रभाव अधिक होता है, उस गुणका रंग उसे भाता है ।

२ अ. अध्यात्ममें सत्त्वगुण महत्त्वपूर्ण है । जैसे-जैसे व्यक्तिकी आध्यात्मिक उन्नति होती जाती है, वैसे-वैसे उसमें सत्त्वगुण बढते हुए रज-तम गुण घटते जाते हैं । अनेकसे एकमें जाना भी अध्यात्मका एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है । जैसे-जैसे व्यक्तिकी आध्यात्मिक उन्नति होती है, वैसे-वैसे वह अनेकसे एकमें जाने लगता है, उदा. विविध देवताओंकी उपासनासे एक देवताकी उपासनातक आना । यही नियम वस्त्रोंके संदर्भमें भी लागू होता है । सत्त्वगुणी व्यक्ति श्वेत अथवा तत्सम हलके रंगके वस्त्र पहनते हैं; जबकि तमोगुणी व्यक्ति सप्तरंगी एवं सप्तरंगोंके मिश्रणसे बने विविध रंगोंके वस्त्र पहनते हैं ।

३. उद्देश्यानुसार वस्त्रोंका रंग

इसके दो उदाहरण आगे दिए हैं ।

३ अ. अन्न-ग्रहणके महत्त्वका वर्णन इन शब्दोंमें किया गया है । इसे उदरभरण (पेट भरना) नहीं; अपितु यज्ञकर्म मानिए । यज्ञकर्म पवित्र है । शुभ्र रंग भी पवित्रताका प्रतीक है । इसीलिए पहले स्त्रियां भोजन बनाते एवं परोसते समय शुभ्र रंगकी साडी (पवित्र वस्त्र) पहनती थीं; जबकि पुरुष भोजनके समय शुभ्र पवित्र वस्त्र अथवा धोती पहनते एवं कंधेपर उत्तरीयके रूपमें गमछा रखते थे ।

३ आ. अंत्ययात्रामें सम्मिलित होनेवाले श्वेत रंगके वस्त्र पहनते हैं; क्योंकि श्वेत रंग वैराग्यका दर्शक है ।

४. वस्त्रोंमें रंगोंकी रुचि-अरुचि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरकी होती है ।

४ अ. शारीरिक स्तर

साधारणत व्यक्तिको वे रंग नहीं भाते, जो उनकी त्वचाके रंगसे नहीं मिलते-जुलते । उदाहरणार्थ, सांवले व्यक्तिको लाल रंगका वस्त्र भडकीला लगता है ।

४ आ. मानसिक स्तर

मनकी विविध भावनाओंके अनुरूप व्यक्तिकी रंगोंसंबंधी रुचि-अरुचिमें भी परिवर्तन होता रहता है । यह परिवर्तन तात्कालिक स्वरूपका होता है । इसके कुछ उदाहरण आगे दिए हैं –

४ आ १. विहार (घूमने) के लिए जाते समय लोग रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं ।

४ आ २. युवावस्थामें गुलाबी रंग अधिक भाता है एवं जैसे-जैसे आयु बढती जाती है, वैसे-वैसे उस रंगका विस्मरण होता जाता है ।

४ आ ३. किसी प्रिय व्यक्तित्वके प्रभावमें भी रंगोंकी रुचिमें परिवर्तन हो सकता है ।

४ आ ४. जैसे चलचित्रमें (फिल्ममें) अभिनेता-अभिनेत्रीद्वारा पहने गए वस्त्रोंके रंग युवावर्गको भाने लगते हैं तथा कुछ दिनोंके लिए वह एक फैशन बन जाता है ।

४ आ ५. पाकिस्तानद्वेषी भारतीयोंको हरे रंगसे चिढ होती है, जबकि हिंदुओंसे द्वेष करनेवाले कुछ पंथियोंको भगवे रंगसे चिढ होती है ।

४ इ. आध्यात्मिक स्तर

४ इ १. त्रिगुणोंके अनुसार जैसी प्रकृति होती है, उसके अनुरूप रंगोंका चयन होता है ।

४ इ २. पूर्व जन्ममें यदि हरे रंगकी वेशभूषा धारण किए किसी कुकर्मीद्वारा हत्या की गई हो अथवा धोखा दिया गया हो, तो पीडित व्यक्तिको अगले जन्ममें हरे रंगके प्रति घृणा हो सकती है ।

४ इ ३. साधनाके स्तरानुसार भी रंगोंकी रुचिमें परिवर्तन होता है । जब साधक भावके स्तरपर होता है, तब उसे नीला रंग भाता है । जब वह चैतन्यके स्तरपर होता है, तब उसे पीले रंगमें रुचि होती है । आगे शांतिके स्तरपर पहुंचनेपर उसे श्वेत रंग भाता है । – सनातनकी साधक-चित्रकार श्रीमती जाह्नवी शिंदे, रामनाथी, गोवा.

५. प्रत्येक ऋतुमें प्रयोग करने योग्य विशेष रंगोंके वस्त्रोंका शास्त्रीय आधार

हिंदू धर्मने ऋतुके अनुसार, अर्थात कालके स्तरपर कार्यरत सृष्टिचक्रोंके नियमानुसार विशिष्ट समय विशिष्ट स्तरपर अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्रदान करनेकी दृष्टिसे रंगोंका प्रयोजन किया है ।

 

५ अ. वस्त्रोंका रंग

शुक्ल शांत्यर्थ जाण । रक्तासवे वशीकरण ।

अभिचारी कृष्णवर्ण । पीतवर्ण धनागमी ।।
अर्थ : श्वेत रंग शांतिका प्रतीक है । वशीकरणके लिए लाल रंग, तो बुरे कर्मके लिए काले रंगका प्रयोग किया जाता है । पीला रंग धनसंपदाका दर्शक है ।

१. ऋतु अनुसार वस्त्रोंका रंग
ऋतु वस्त्रोंका रंग
१. ‘ग्रीष्म एवं शरदऋतु श्वेत । श्वेत वस्त्र सूर्यकिरण परावर्तित
करते हैं; इसलिए शरीर ठंडा रहता है ।
२. वर्षा श्वेत अथवा पीला
३. शिशिरऋतु
(शीतकाल)
लाल, पीला अथवा काला ।
४. वसंतऋतु लाल अथवा अन्य गहरा रंग

 

५ आ. ग्रीष्म एवं शरद ऋतु

इस कालमें ब्रह्मांडमें उष्ण तरंगोंका संक्रमण अधिक होता है । इसलिए इस संक्रमणके प्रवाहमें, ब्रह्मांडमंडलमें अनेक प्रकारकी अनिष्ट शक्तियोंका आगमन होता है । इन अनिष्ट शक्तियोंके तीव्र आगमनात्मक संचारसे रक्षण होनेके लिए इस कालमें निर्गुण स्तरपर प्रतिकार करनेवाले श्वेत रंगका प्रयोजन किया जाता है । यह संक्रमण अनिष्ट शक्तियोंके आगमनके लिए पोषक होता है । इसलिए इस कालमें आगमनके लिए सिद्ध अनिष्ट शक्तियां अप्रकट स्थितिमें अधिक रहती हैं । प्रकट स्थितिकी अपेक्षा अप्रकट स्थिति अधिक सूक्ष्म एवं घातक है । अतः इस सूक्ष्म एवं अबोध (समझके परे) आक्रमणका सामना करनेके लिए श्वेत रंगका प्रयोजन किया जाता है ।

५ इ. वर्षाऋतु

वर्षाऋतुमें ब्रह्मांडमें आपतत्त्वरूपी सगुण तरंगोंके प्रवाहकी प्रबलता अधिक रहती है । अतः इस ऋतुमें ब्रह्मांडमंडलमें सगुण-निर्गुण स्तरपर कार्य करनेवाले अनेक कनिष्ठ एवं उच्च देवी-देवताओंके तत्त्वोंका न्यूनाधिक स्तरपर आगमन होता रहता है । इसलिए इस कालमें सगुण-निर्गुण तत्त्वोंके प्रवाह हेतु पोषक पीले एवं श्वेत रंगका उपयोग अधिक होता है । विशिष्ट परिस्थितिके लिए पोषक विशेष रंगके उपयोगसे विशिष्ट कालमें ब्रह्मांडमें संचारण अवस्थामें विद्यमान विशेष देवताओंके तत्त्व ग्रहण होते हैं । परिणामस्वरूप उस विशिष्ट कालमें जीवकी आध्यात्मिक उन्नति वेगसे होनेकी संभावना बढ जाती है ।

५ ई. शीत ऋतु

शीतकालमें वायुमंडलमें शक्तिरूपी तरंगोंका प्रक्षेपण बढता है । इस प्रक्षेपणकी प्रवृत्ति अधिक घनीभूत होनेकी ओर होती है । लाल रंग शक्तिरूपी तरंगोंके घनीकरणकी प्रक्रियाके लिए पोषक है; जबकि पीला रंग शक्तिका रूपांतर चैतन्यमें कर, उच्च स्तरपर शक्तिका लाभ करवानेमें अग्रणी है । इसलिए लाल रंगके साथ सदैव पीले रंगकी प्रबलता पाई जाती है; क्योंकि पीले रंगका सगुणरूपी चैतन्य, सूक्ष्म स्तरपर शक्तिरूपी कार्यको निरंतर गति एवं वेग प्रदान करता है । इसलिए अधिकांशतः लाल एवं पीले रंगका संयोजन दिखाई देता है । अतः पूजाविधिमें हलदी-कुमकुमका संयोजन सदा लाभदायक होता है ।

इसी कालमें मकरसंक्रंति आती है । मकरसंक्रंतिके दिन वातावरणमें रज-सत्त्व कणोंकी प्रबलता होती है । अतः काले रंगका कष्ट नहीं होता । तमोगुणको घनीभूत करनेके लिए काला रंग पोषक होता है । तमोगुणका स्पर्श उष्ण होता है । इसलिए शीतऋतुकी ठंडसे देहके बाह्य रक्षण हेतु काले रंगका प्रयोग किया जाता है । काला रंग स्थूल स्तरपर कार्य करनेके लिए उपयोगी प्रमाणित होता है; परंतु इस रंगसे सामान्य जीवको कष्ट होनेकी ही आशंका अधिक होती है । इसलिए केवल ठंडसे रक्षण हेतु काले रंगका उपयोग करना घातक प्रमाणित होता है ।

५ उ. वसंतऋतु

वसंतऋतुमें ब्रह्मांडमंडलमें देवताओंकी सगुण तरंगोंका अधिकतम प्रमाणमें आगमन एवं अस्तित्व रहता है । इसलिए इन सगुण तरंगोंकी कार्यरतताके लिए पोषक अर्थात सगुणकी प्रबलता दर्शानेवाले लाल रंगका उपयोग कर, सगुण तरंगोंका अधिकतम लाभ प्राप्त किया जाता है । गहरा रंग भी सगुण स्तरपर, अल्प प्रमाणमें ही सही; शक्तिरूपी स्पंदनोंसे विशिष्ट देवताके तत्त्व आकृष्ट करनेके लिए पोषक प्रमाणित होता है । इसलिए लाल रंग उपलब्ध न हो, तो अन्य गहरे रंगके वस्त्र पहने जाते हैं । ऐसा प्रतीत होता है, कि हिंदू धर्मने ऋतुके अनुसार, अर्थात कालके स्तरपर कार्यरत सृष्टिचक्रोंके नियमानुसार विशिष्ट समय विशिष्ट स्तरपर अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्रदान करनेकी दृष्टिसे रंगोंका प्रयोजन किया है । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यमसे, फाल्गुन कृष्ण एकादशी, कलियुग वर्ष ५११० ३.३.२००८, दिन ११.१२)

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘आध्यात्मिक दृष्टिसे कपडे कैसे हों ?’

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